विश्वव्यापी कोरोना महामारी के साये में हरिद्वार महाकुंभ 2021 के 7 स्नान पर्व और संन्यासियों के शाही स्नान निकलने के साथ ही एक करोड़ से कहीं अधिक श्रद्धालु गंगा स्नान करके निकल गए और अब भारत सरकार को संसार के इस सबसे बड़े धार्मिक समागम से महामारी फैलने की आशंका नजर आ रही है.
राज्य सरकार की नींद तो अभी भी नहीं खुली, क्योंकि मुख्यमंत्री यह मानने का तैयार नहीं कि गंगा स्नान से भी कभी कोरोना हो सकता है.
जबकि महाकुंभ में बिखरे कोराना महामारी के बीच देश के कोने-कोने से आए श्रद्धालु और संयासी अपने साथ ‘प्रसाद’ के तौर पर ले कर चले गए.
सरकार ने कहीं तो 20 से अधिक लोगों को शमशान में तक एकत्र होने नहीं दिया और धर्म के नाम पर हरिद्वार में करोड़ों लोग बिना सुरक्षा इंतजाम के एकत्र कर दिए.
मोदी जी की अपील, लेकिन बहुत देर कर दी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर से और गृहमंत्री अमित शाह की बैरागी अखाड़े के अध्यक्ष राजेन्द्र दास से मात्र सांकेतिक कुंभ की अपील तब आई है, जबकि संन्यासियों के सारे शाही स्नानों के साथ ही कुल 7 स्नान पर्व निकल गए.
प्रधानमंत्री की अपील के बाद नागा संयासियों के सबसे बड़े जूना अखाड़ा द्वारा कुंभ विसर्जन की घोषणा कर दी गई. इस घोषणा में जूना के साथ अग्नि, आह्वान और किन्नर अखाड़ा भी शामिल हैं.
पंचायती अखाड़ा निरंजनी और तपोनिधि आनंद अखाड़ा ने पहले ही कुंभ विसर्जन कर दिया था. देखा जाए तो अब केवल बैरागी अखाड़ों का 24 अप्रैल को रामनवमी स्नान तथा 27 का चैत्र पूर्णिमा का शाही स्नान ही बाकी रह गया है.
अगर सरकारी आंकड़ों पर ही भरोसा करें, तो कुंभ की घोषणा के बाद अकेले अप्रैल माह में ही लगभग 1 करोड़ से अधिक स्नानार्थी पवित्र डुबकी लगा कर वापस चले गए.
स्नान घाटों और अखाड़ों में लाखों की भीड़ के समय जब कोरोना से बचाव के लिए नियमों का पालन होना था तब हुआ नहीं अब तो जो होना था सोे हो ही चुका है.
लाखों लोग ले गए हरिद्वार से कोराना ?
कुंभ नगरी हरिद्वार में कोरोना का विस्फोट खतरनाक स्थिति तक पहुंच गया है. वहां शायद ही ऐसी कोई गली हो, जिसमें महामारी का सक्रमण न पहुंचा हो.
संन्यासियों के सभी 13 अखाड़ों में संक्रमण पाया गया, मगर कोई भी कंटेनमेंट जोन के दायरे में नहीं आया. एक-एक अखाड़े में कुंभ के दौरान हजारों संन्यासी ठहरे हुए थे, जहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु संतों का आशीर्वाद लेने पहुंचे.
शुरू में इन संयासियों की कोविड टेस्ट की जरूरत ही महसूस नहीं की गई. जूना अखाड़े के 9 संत भी पाॅजिटिव मिले हैं. हरिद्वार जिले में अब तक 20 से अधिक साधु-संत संक्रमित पाए गए.
महानिर्वाणी अखाड़े के महामंडलेश्वर स्वामी कपिल देव और हरियाण के रुद्राक्ष बाबा की कोरोना से मौत हो गई. जबकि अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेन्द्र गिरी और महामंत्री नरेन्द्र गिरी जैसे कई बड़े संतों की जान बचाने के लिए उन्हें अस्पताल पहुंचाने पड़ा.
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जैसे कई वीआइपी हरिद्वार से लौटने के बाद संक्रमित हो गए. कई अखाड़े खाली हो गए हैं और कुछ खाली हो रहे हैं.
ये संयासी कहां गए और किस हाल में गए, इसकी जानकारी किसी के पास नहीं है. उनके न तो पहले और ना ही बाद में कोराना टेस्ट हुए. हरिद्वार कुंभ के स्नानार्थियों की ट्रेसिंग और ट्रैकिंग की कोई व्यवस्था नहीं है.
गंगा नहाने से कोरोना भगाने का किया प्रचार
महाकुंभ के बाद अगर कोरोना के संक्रमण का विस्फोट होता है, तो इसका दोष उत्तराखंड सरकार के सिर तो मढ़ा ही जाएगा, क्योंकि मेले के संचालन की जिम्मेदारी राज्य सरकार की ही थी जिसके लिए केंद्र सरकार लगभग 405 करोड़ रुपये की सहायता दे चुकी थी.
वर्तमान तीरथ सिंह रावत सरकार से पहले भाजपा की ही त्रिवेंद्र सरकार न केवल दुविधा से ग्रस्त रही अपितु उसका ध्यान मेले की व्यवस्थाओं से अधिक केंद्र सरकार से मिलने वाली रकम पर रहा.
तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कुंभ में 15 करोड़ श्रद्धालुओं के आने का इस्टीमेट प्रधानमंत्री को दिया था. जबकि कोरोना के साये में इतने बड़े जमघट की कल्पना ही भयावह थी.
यही नहीं लोगों को आकर्षित करने के लिए त्रिवेंद्र सरकार निरंतर भव्य और दिव्य कुंभ के आयोजन के दावे करती रही. लेकिन जब तैयारियों की पोल खुली, तो आनन फानन में त्रिवेंद्र सिंह रावत की जगह तीरथ सिंह रावत की ताजपोशी कर दी गई, मगर नए मुख्यमंत्री के ऊल-जुलूल बयानों ने स्थिति को संभालने के बजाय और बिगाड़ दिया.
तीरथ सिंह रावत ने सत्ता संभालते ही हरिद्वार जा कर देशभर के श्रद्धालुओं को बेरोकटोक हरिद्वार पहुंचने की अपील करने के साथ ही यह ज्ञान भी दे दिया कि गंगा नहाने से कारोना भाग जाता है. जबकि गंगा नहाने के बाद वह स्वयं भी कारोना पाजिटिव हो गए.
तीरथ यहां तक कह गए कि कोराना मरकज में शामिल तब्लीगियों में फैल सकता है, मगर गंगा में स्नान करने वालों में नहीं.
अब समझा जा सकता है कि उत्तराखंड की सरकार इस अति गंभीर स्थिति में कितनी अगंभीर थी और धर्म के नाम पर करोड़ों लोगों के जीवन को संकट में डाल रही थी.
केंद्र सरकार की सहमति से ही जुटे करोड़ों लोग
अगर केंद्र सरकार चाहती, तो नौबत यहां तक नहीं आती. बिना केंद्र सरकार की सहमति से इतना बड़ा आयोजन संभव ही नहीं था.
कोरोना गाइड लाइन में चुनावी राज्यों से अधिक छूट हरिद्वार कुंभ में केंद्र सरकार ने दे रखी थी. केंद्र की ओर से कुंभ की तैयारियों का फीडबैक स्वयं प्रधानमंत्री और गृह मंत्री नियमित रूप से ले रहे थे.
कोविड एसओपी के अनुसार कोई आदमी मर जाता है, तो उसकी शव यात्रा में बीस से अधिक लोग शामिल नहीं हो सकते. शादी-ब्याह में भी 100 से अधिक लोगों के एकत्र होने पर मनाही है.
देहरादून में शनिवार-रविवार लाॅकडाउन लगाने के साथ ही सम्पूर्ण उत्तराखण्ड में रात्रि कर्फ्यू लगा दिया गया, जबकि पहाड़ी राज्य वैसे ही रात को सन्नाटे में डूब जाता है.
लोग बाघ के डर से भी रात को बाहर नहीं निकलते. मगर जिस हरिद्वार में करोना का विस्फोट शुरू हो गया वहां कोई बंदिश नहीं लगाई गई.
प्रधानमंत्री की सोशल डिस्टेंसिंग और जब तक दवाई नहीं तब तक ढिलाई नहीं की अपीलों से हरिद्वार को मुक्त कर दिया गया.
इतिहास की ओर भी आंख मूंदी आयोजकों ने
वास्तव में अपनी धार्मिक पहचान अमिट करने के लिए केन्द्र और राज्य सरकार ने कुंभ में महामारियों के इतिहास पर ध्यान नहीं दिया.
जबकि कुंभ और महामारियों का चोली दामन का साथ रहा है. राॅयल सोसाइटी ऑफ ट्राॅपिकल मेडिसिन एण्ड हाइजीन के संस्थापक सर लियोनार्ड राॅजर्स (द कण्डीसन इन्फुलेंयेसिंग द इंसीडेंस एण्ड स्पे्रड ऑफ काॅलेरा इन इंडिया) के अनुसार सन 1890 के दशक में हरिद्वार कुंभ से फैला हैजा पंजाब होते हुए अफगानिस्तान, पर्सिया रूस और फिर यूरोप तक पहुंचा था.
सन् 1823 की प्लेग की महामारी में केदारनाथ के रावल और पुजारियों समेत कई लोग मारे गए थे. गढ़वाल में सन 1857, 1867 एवं 1879 की हैजे की महामारियां हरिद्वार कुंभ के बाद ही फैलीं थी.
सन 1857 और 1879 का हैजा हरिद्वार से लेकर भारत के अंतिम गांव माणा तक फैल गया था. वाल्टन के गजेटियर के अनुसार, हैजे से गढ़वाल में वर्ष 1892 में 5,943 मौतें, वर्ष 1903 में 4,017, वर्ष 1906 में 3,429 और 1908 में 1,775 मौतें हुईं.
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