उत्तराखंड की अस्थाई राजधानी देहरादून के सबसे बड़े कोविड अस्पताल, दून अस्पताल से बेहद हैरान करने वाली खबर सामने आई है.
बीती 27 अप्रैल को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एवीबीपी) के कुछ कार्यकर्ता कोरोना संक्रमित मरीजों के इलाज के लिए बनाए गए बेहद संवेदनशील आईसीयू वार्ड में पहुंच गए और वहां भर्ती मरीजों को जूस पिलाया.
इसके बाद अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के आधिकारिक एकाउंट से इसकी तस्वीरें यह बताते हुए पोस्ट की गईं कि कोरोना काल में एवीबीपी के कार्यकर्ता संक्रमितों की सेवा करने में जुटे हुए हैं.
कुछ अन्य फेसबुक अकाउंट्स पर भी इसकी तस्वीरें ओर वीडियो डाले गए.
इस रिपोर्ट से संबंधित वीडियो का लिंक – कोरोना संक्रमितों के आईसीयू वार्ड में पहुंचे एवीबीपी कार्यकर्ता, जूस बांट कर खिंचवाई तस्वीरें
सवाल यह है कि क्या एबीवीपी कार्यकर्ताओं का इतने हाई रिस्क जोन में जाना सही था, वह भी तब जब कोरोना की दूसरी लहर पहले से कई गुना ज्यादा रफ्तार के साथ त्राहि-त्राहि मचाए हुए है.
ऐसे वक्त में जब कोरोना संक्रमित मरीजों के परिजनों तक को अस्पताल के गेट से अंदर आने की इजाजत नहीं है, जब कोरोना से जान गंवाने वालों के शवों को छूने की मनाही है, जब डॉक्टर और अन्य मेडिकल स्टाफ बेहद सावधानी बरतते हुए संक्रमितों का इलाज करने में जुटे हैं, तब अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एवीबीपी) के कार्यकर्ता देहरादून के दून अस्पाताल में कोरोना मरीजों के लिए बनाए गए बेहद संवेदनशील आईसीयू सेंटर में आखिर कैसे पहुंच गए ?
बकायदा एवीबीपी का स्टिकर लगी पीपीई किट पहने ये कार्यकर्ता दिखा रहे हैं कि कैसे संकट के वक्त कोरोना संक्रमितों का ध्यान रख रहे हैं.
सवाल यह है कि एवीबीपी कार्यकर्ताओं को कोरोना संक्रमित मरीजों के आईसीयू वार्ड में जाने की इजाजत आखिर किसने दी ? क्या यह सामान्य बात है ? क्या पीपीई किट पहन लेने से संक्रमण का खतरा पूरी तरह खत्म हो जाता है ? अगर ऐसा है तो फिर संक्रमितों के परिजनों को भी उनकी तीमरदारी में नहीं लगा देना चाहिए ?
कोरोना को लेकर बनाए गए प्रटोकाल के मुताबिक डॉक्टरों तथा अन्य संबंधित मेडिकल स्टाफ के अलावा कोई भी व्यक्ति संक्रमितों के इलाज के लिए बनाए गए वार्ड में प्रवेश नहीं कर सकता है.
वायरस की मारक क्षमता इतनी खतरनाक है कि संक्रमित व्यक्ति को छूने भर से ही इसके फैलने का खतरा बढ़ जाता है.
कोरोना काल में पीपीई किट पहनने के बावजूद देभ भर में कई डॉक्टर एवं अन्य मेडिकल स्टाफ इस संक्रमण का शिकार हो चुके हैं.
यही वजह है कि कोरोना संक्रमित व्यक्ति की मौत होने पर अंतिम संस्कार की प्रक्रिया कोविड गाइडलाइन के मुताबिक संपन्न की जा रही है.
इस सबके बीच शर्मनाक है कि कल यह खबर कुछ अखबारों, न्यू पोर्टल्स में इस तरह प्रकाशित हुई मानो एवीबीपी के कार्यकर्ताओं ने कोरोना वार्ड में पहुंचकर बहुत सराहनीय काम किया हो.
सत्ता की चरण वंदना में लीन संपादकों, मीडिया कर्मियों को क्या इतनी भी समझ नहीं है कि यह कितना गंभीर मामला है ?
बहरहाल इस घटना के तूल पकड़ने पर कुछ न्यूज चैनल और वेबसाइट ने इस खबर को उठाया और संबंधित अधिकारियों से सवाल पूछे.
न्यूज-18 में छपी खबर के मुताबिक इस घटना को लेकर दून मेडिकल कॉलेज के प्रधानाचार्च डॉक्टर आशुतोष सयाना ने कहा कि अस्पताल में भीड़ नियंत्रित करने के लिए स्वयंसेवकों की सेवाएं ली जा रही हैं लेकिन उनके (स्वयंसेवकों) कोविड वार्ड में पहुंचने की बात उनके (डॉक्टर सयाना) संज्ञान में नहीं है. डॉक्टर सयाना के कहा कि वे इस बारे में जानकारी जुटा रहे हैं.देहरादून के जिलाधिकारी डॉक्टर आशीष श्रीवास्तव का कहना है कि उन्होंने इस बारे में दून मेडिकल कॉलेज से विस्तृत रिपोर्ट मांगी है.
लेकिन सवाल यह है कि आखिर दून मेडिकल कालेज के प्रधानाचार्य और जिलाधिकारी को इतनी बड़ी घटना का पता क्यों नहीं चल पाया ?
क्या सेवा के नाम पर संक्रमितों के इलाज के लिए बने आईसीयू वार्ड में किसी बाहरी व्यक्ति का पहुंचना कोई सामान्य बात है, वह भी उस अस्पताल में जो पूरे प्रदेश का सबसे बड़ा और सबसे वीआईपी कोविड अस्पताल है.
इमेज बिंल्डिंग’ के नाम पर क्या यह लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ नहीं है ?
कोरोना काल में जिस वक्त लोग दवाइयों की कालाबाजारी से परेशान हैं, मरीजों को बिस्तर नहीं मिल पा रहे हैं, आईसीयू के लिए परेशान हैं, आक्सीजन सिलेंडर के लिए लोग मारे-मारे फिर रहे हैं, तब यदि किसी भी संगठन को सेवा करनी ही है तो इन मोर्चों पर करनी चाहिए, ना कि बेहद संवेदनशील आईसीयू वार्ड में जाकर संक्रमण का खतरा बढ़ाकर.
पिछले साल एक कांग्रेसी नेता सूर्यकांत धस्माना ने भी ऐसा ही ‘सेवाभाव’ दिखाया था जिसके बाद उनकी न केवल आलोचना हुई थी बल्कि उन्हें क्वारंटीन भी किया गया था.
तब भी दून अस्पताल पर सवाल उठे थे और आज एक बार फिर अस्पताल प्रशासन कटघरे में आ गया है.
क्या दून अस्पताल प्रशासन इसका जवाब देगा ? क्या देहरादून के जिलाधिकारी इस पर एक्शन लेंगे ? क्या मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत इसका संज्ञान लेंगे ?
ये लापरवाही नहीं, अपराध है और इस अपराध की जवाबदेही तय होनी चाहिए.
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