‘ऑल वेदर रोड प्रोजेक्ट’ के नाम से प्रचलित ‘चारधाम परियोजना’ के निर्माण कार्यों को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित ‘हाई पावर कमेटी’ कमेटी ने गंभीर सवाल उठाए हैं. अंग्रेजी भाषी अखबार ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में इस पत्र को लेकर एक विस्तृत रिपोर्ट छपी है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित हाई पावर कमेटी के अध्यक्ष, पर्यावरणविद और पीपुल्स साइंस इंस्टीट्यूट के निदेशक रवि चोपड़ा ने 13 अगस्त केंद्रीय पर्यावरण सचिव को पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने परियोजना के निर्माण कार्यों में वन एवं वन्यजीव कानूनों का बड़े पैमाने पर उल्लंघन होने की बात कही है.
पत्र में लिखा है कि परियोजना के तहत कई कार्य बिना अधिकृत मंजूरी के किए गए, विभिन्न जगहों पर पेड़ों की अवैध कटाई की गई जिसके चलते हिमालय की पारिस्थितिकी को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचा है, जिसके दीर्घकालिक परिणाम बेहद खतरनाक होंगे.
पत्र में बेहद गंभीर टिप्पणी करते हुए लिखा गया है कि, परियोजना के निर्माण कार्यों में नियम कायदों का इस तरह उल्लंघन किया गया, मानो कानून का शासन मौजूद ही नहीं है. पत्र में कानूनों के उल्लंघन को लेकर पर्यावरण मंत्रालय से कड़ी कार्रवाई करने को कहा गया है.
गौरतबह है कि केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय द्वारा उत्तराखंड में चारधाम परियोजना (आल वेदर रोड) का निर्माण किया जा रहा है.
12 हजार करोड़ रुपये की लागत से बनने वाली इस परियोजना के तहत प्रदेश के चार धामों, बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री के साथ ही अन्य पर्वतीय क्षेत्रों में सड़क विस्तारीकरण का काम किया जा रहा है.
चारधाम परियोजना के तहत प्रदेश में लगभग 900 किलोमीटर सड़क चौड़ीकरण का काम होना है.
प्रदेश में विधानसभा चुनाव से दो महीने पहले 27 दिसंबर, 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देहरादून में इस परियोजना का शिलान्यास किया था. तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि इस परिजोयना के जरिए उत्तराखंड की सड़कों को विश्व स्तरीय बनाया जाएगा.
चीन के साथ भारत के तनावपूर्ण संबंधों को देखते हुए सामरिक दृष्टि से इस परियोजना को बेहद अहम माना जा रहा है. परियोजना के शिलान्यास के वक्त इसके वर्ष 2021 तक पूरा होने की बात कही गई थी.
जानकारी के मुताबिक अभी तक ढाई सौ किलोमीटर से अधिक काम पूरा हो चुका है तथा लगभग 400 किलोमीटर सड़क पर काम चल रहा है. करीब 320 किलोमीटर सड़क पर पर्यावररणीय मंजूरी के चलते अभी काम शुरू नहीं हुआ है.
दिसंबर 2016 में प्रधानमंत्री द्वारा परियोजना की घोषणा के बाद से ही इसको लेकर पर्यावरणविद और भू-वैज्ञानिक सवाल उठाते रहे हैं.
जानकारों का तर्क है कि पर्यावरण की दृष्टि से बेहद संवेदनशील इलाकों में इतने बड़े पैमाने पर पहाड़ों को काटने से पारिस्थितिकी को बड़ा नुकसान पहुंचेगा.
इन सब चिंताओं को लेकर कुछ सामाजिक संगठनों ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में याचिका दायर की, जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा.
सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2019 में रवि चोपड़ा की अध्यक्षता में एक उच्च अधिकार प्राप्त समिति (हाई पावर कमेटी) का गठन किया जिसे चारधाम परियोजना से हिमालय की पारिस्थितिकी पर होने वाले असर का अध्ययन, जांच और सुधारात्मक उपायों की सिफारिश करने की जिम्मेदारी दी गई है.
समिति ने बीते जुलाई के महीने दो रिपोर्ट सौंपी हैं जिनमें समिति ने अहम सुझाव दिए हैं.
यह भी पढ़ें :प्रणव सिंह चैंपियन की वापसी : उत्तराखंड के स्वाभिमान का ‘चीरहरण’
Discussion about this post