साधो…आखिरकार वह पल आ ही गया..! जिस ‘जीरो टालरेंस’ का राग तीन साल से अलापा जा रहा था वो अब जाकर ‘पूर्णता’ को प्राप्त हुआ है.
राज्य गठन के दो दशक बाद प्रदेश में पहली बार कोई ‘ईमानदार’ ‘बेदाग’ और जनसरोकारों से ‘अथाह प्रेम करने वाला’ अफसर ड्राइविंग सीट पर बैठाया गया है.
अब देखना, विकास का पहिया किस रफ्तार से दौड़ता है. अब देखना, वर्षों से लटकी फाइलें कैसे झटपट ‘क्लीयर’ होती हैं.
पहली बार ऐसे अफसर को कमान सौंपी गई है जिन पर कोई ‘दाग’ नहीं है. जो ‘होली काऊ’ से भी ‘पवित्र’ हैं, जिनके नाम के साथ कोई विवाद नहीं जुड़ा है.
विवाद जुड़ेगा भी कैसे, नाम ही इतना ‘उजला’ है कि किसी विवाद की काली छाया छू भी नहीं सकती. जिनका ‘निर्विवाद व्यक्तित्व’ हर ब्यूरोक्रेट के लिए मिसाल है.
जिनके अब तक के कार्यकाल पर कोई ‘सवाल’ नहीं है. अब तक का जिनका सेवा काल ‘उपलब्धियों’ से भरा पड़ा है. जिनकी कार्यशैली सबके लिए ‘प्रेरणादायक’ है.
जो न तो किसी ‘सारंगी’ की तरह किसी मुखिया के मुंहबोले हैं, और न ही किसी ‘शर्मा’ की तरह सत्ताधीशों के राजदार. जो चौबीस कैरेट प्यौर हैं.
कितने ही आरोप लगाए गए, बदनाम करने के लिए कितने ही षड़यंत्र रचे गए, मगर वो काजल की कोठरी से हर बार बेदाग होकर निकले.
उत्तराखंड से जिन्हें इतना प्रेम है कि हर पल बस पहाड़ की ही फिक्र रहती है. जो अब तक न जाने कितने पहाड़ी इलाकों की खाक छान चुके हैं, न जाने कितनी पगडंडियां नाप चुके हैं, न जाने कितनी रातें पहाड़ के गांवों में गुजार चुके हैं.
ड्यूटी की मजबूरी के चलते जो रहते भले ही देहरादून में हैं मगर उनका मन हर्षिल की ‘एप्पल बेल्ट’ में विचरण करता है, जो बैठते तो सचिवालय में है, मगर दूर दराज के इलाकों की हर खबर से अपडेट रहते हैं.
जिस दिल्ली में हर छोटा-बड़ा अधिकारी शीश नवाता है, उस दिल्ली की तरफ पीठ कर जो पहाड़ के हो चुके हैं. जिनकी रग-रग में पहाड़ बस चुका है. जिनका हर पल उत्तराखंड के ‘कल्याण’ को समर्पित है.
ऐसे कर्तव्यनिष्ठ अफसर को कमान देकर इस राज्य के अब तक के ‘सबसे लोकप्रिय’ मुखिया ने जीरो टालरेंस की ऐसी नजीर पेश की है जिस पर अन्य प्रदेशों के मुखिया भी रश्क कर जाएं, कि काश इतना सर्वगुण संपन्न अफसर उनके पास भी होता.
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