जयसिंह रावत, वरिष्ठ पत्रकार
विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की शासन व्यवस्था को संचालित करने वाला विश्व का सबसे बड़ा संविधान न केवल लिखित है, बल्कि हस्तलिखित भी है. हाथ से लिखा गया सुलेख भी ऐसा कि जो इस दस्तावेज के एक एक शब्द को निखारता है और उस पर भी उस जमाने के महान कलाकारों ने ऐसा चित्रण किया है जिसमें भारत के गौरवमय इतिहास, दर्शन, संस्कृति एवं आकांक्षाओं के दर्शन होते हैं.
नये भारत की यह तकदीर प्रेम बिहारी रायजादा (सक्सेना) ने अपने हाथों से लिखी थी जबकि उस पर भारत के भूत, वर्तमान और भविष्य की तस्बीर विख्यात चित्रकार नन्दलाल बोस और उनके शिष्यों ने अपनी विलक्षण चित्रकारी से उकेरी थी.
दुनिया के इस बेमिसाल ग्रन्थ की पाण्डुलिपि जहां संसद की लाइब्रेरी की शोभा बढ़ा रही है वहीं एक अन्य प्रति देहरादून में भारतीय सर्वेक्षण विभाग के शानदार अतीत की गवाह के रूप में सुरक्षित है.
इसी विभाग को भारत का संविधान मुद्रित करने की ऐतिहासिक जिम्मेदारी सौंपी गयी थी.
संविधान की मूल प्रति प्रेम बिहारी नारायण रायजादा (सक्सेना) ने हाथ से लिखी थी. यह पाण्डुलिपि बेहतरीन कैलीग्राफी के जरिए इटैलिक अक्षरों में हिन्दी और अंग्रेजी में लिखी गई है. इसके हर पन्ने को उस दौर के बेहतरीन कलाकार नन्द लाल बोस के नेतृत्व में शांतिनिकेतन के कलाकारों ने सजाया था.
प्रेम बिहारी का जन्म 17 दिसम्बर 1901 में एक परम्परागत कैलीग्राफिस्ट कायस्थ परिवार में हुआ था. इनके दादा रामप्रसाद आदिकालीन ‘‘कैथी‘‘ या ‘‘कैथिली’’ भाषा के विद्वान एवं विख्यात सुलेखक थे. इसीलिये प्रेम नारायण की ख्याति जवाहरलाल नेहरू तक पहुंच गयी थी.
संविधान लिखने के लिये पूना से हस्त निर्मित कागज मंगाया गया था. इस लेखन कार्य में उन्हें कुल छह माह का समय लगा. संविधान की मूल प्रति के प्रत्येक पृष्ठ पर इनके कापीराइट के तहत इनका नाम तथा अंतिम पेज पर इनके नाम के साथ इनके दादाजी मास्टर राम प्रसाद जी सक्सेना का नाम अंकित है.
बताया जाता है कि इसी शर्त पर रायजादा ने संविधान लिखने की शर्त पंडित जवाहरलाल नेहरू से रखी थी. आश्चर्य की बात यह है कि 251 पृष्ठों के इतने लम्बे संविधान दस्तावेज को हाथ से लिखने में न तो कहीं कोई असंगति का निशान है और ना ही कहीं कोई गलती है.
हिन्दी और अंग्रेजी में इटैलिक शौली में लिखा गया यह ग्रन्थ कैलीग्राफी या सुलेखन का सर्वोत्तम उदाहरण है. 22 इंच लम्बे और 16 इंच चैड़े आकार की संविधान की पाण्डुलिपि की हजार साल मियाद वाली चमड़े की बाइंडिंग के साथ संसद के पुस्तकालय में रखी मेज पर हीलियम से भरी केस में सुरक्षित रखा गया था, जो कि वर्तमान में नाइट्रोजन गैस से भरे केस में नमी मीटर एवं अन्य आधुनिक तकनीक से सुरक्षित रखा गया है.
प्रेम फाउण्डेशन के अनुसार प्रेम बिहारी नारायण ने इस महान ग्रन्थ को लिखने में 432 पेन होल्डरों, उन पर 303 निबों और 254 स्याही की दवातों का प्रयोग किया.
संविधान निर्माताओं ने जिन प्रावधानों को शब्दों में प्रस्तुत किया उनको तो हम पढ़ ही लेते हैं, परंतु जिन बातों को संकेत के रुप में चित्रांकित किया है या सांकेतिक अभिव्यक्ति दी गयी वह कमाल पश्चिम बंगाल के विख्यात चित्रकार नन्दलाल बोस एवं उनके सहयोगी ब्योहर राममनोहर सिन्हा के नेतृत्व में शांति निकेतन, विश्वभारती (कोलकता) के चित्रकारों ने कर दिखाया है.
संविधान के कुल 22 भागों में नंदलाल बोस ने प्रत्येक भाग की शुरुआत में 8-13 इंच के चित्र बनाए जिन्हें बनाने में चार साल लगे. वास्तव में ये चित्र भारतीय इतिहास की विकास यात्रा हैं. सुनहरे बार्डर और लाल-पीले रंग की अधिकता लिए हुए इन चित्रों की शुरुआत भारत के राष्ट्रीय प्रतीक अशोक की लाट से की गयी है.
भारतीय संविधान की प्रस्तावना को सुनहरे बार्डर से घेरा गया है, जिसमें मोहन जोदड़ो की सभ्यता को दर्शाने के लिये घोड़ा, शेर, हाथी और बैल के चित्र बने हैं. दस्तावेज के प्रत्येक पृष्ठ के बार्डर में शतदल कमल के चित्रांकन से सुसज्जित किया गया है.
अगले भाग में शिष्यों के साथ ऋषि के आश्रम का चित्र दिया गया है. कहीं गुप्तकालीन नालंदा विश्वविद्यालय की मोहर दिखाई गई है तो एक अन्य भाग में उड़ीसा की मूर्तिकला को दिखया गया है.
बारहवें भाग में नटराज की मूर्ति, तेरहवें भाग में महाबलिपुरम मंदिर पर उकेरी गई कलाकृतियां और 14वां भाग में मुगल स्थापत्य कला को जगह दी गई है. 16 वें भाग में टीपू सुल्तान और महारानी लक्ष्मी बाई को अंग्रेजी फौजों से लड़ते हुए दिखाया गया है. 17 वें भाग में गांधी जी की दांडी यात्रा और 19वें भाग में नेताजी सुभाष चंद्र बोस आजाद हिंद फौज का सैल्यूट ले रहे. इस प्रकार 20वें भाग में हिमालय के उत्तंग शिखरों को दिखाया गया है तो अगले भाग में रेगिस्तान का चित्रण है. अंतिम भाग में समुद्र का चित्र है.
भारत का संविधान विश्व के किसी भी गणतांत्रिक देश का सबसे लंबा लिखित संविधान है जो 465 अनुच्छेद, 12 अनुसूचियों और 22 भागों में विभाजित है. जबकि इसके निर्माण के समय मूल संविधान में 395 अनुच्छेद, जो 22 भागों में विभाजित थे इसमें केवल 8 अनुसूचियां थीं. डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद की अध्यक्षता वाली संविधान सभा में 8 मुख्य समितियां एवं 15 अन्य समितियां थी. संविधान सभा पर अनुमानित खर्च 1 करोड़ रुपये आया था.
संविधान 26 नवंबर, 1949 में अंगीकार किया गया था, इसलिये देश में 26 नवंबर को संविधान दिवस के तौर पर मनाया जाता है.
संविधान सभा द्वारा 2 वर्ष, 11 माह, 18 दिन में कुल 114 दिन की बहसों के बाद तैयार किये गये संविधान का ढांचा जब 26 नवम्बर 1949 को अंगीकृत किया गया तो उसे प्रकाशित करने की भी एक चुनौती थी क्योंकि मसौदा समिति और खास कर जवाहरलाल नेहरू लोकतंत्र के इस पवित्र ग्रन्थ की मौलिकता, स्वरूप और स्मृतियों को अक्षुण बनाये रखने के लिये उसे उसी हस्तनिर्मित साजसज्जा के साथ हूबहू प्रकाशित करना चाहते थे.
चूंकि उस समय प्रिंटिंग की आज की तरह अत्याधुनिक सुविधाएं उपलब्ध नहीं थीं और उस समय के लिहाज से सबसे बड़ा एवं सुसज्जित छापाखाना केवल देहरादून स्थित भारतीय सर्वेक्षण विभाग या सर्वे आफ इंडिया के पास ही उपलब्ध था. इसलिये इस ऐतिहासिक जिम्मेदारी का निर्वहन करने का दायित्व उसी को सौंपा गया.
विभाग के देहरादून स्थित नार्दन प्रिंटिंग ग्रुप ने पहली बार संविधान की एक हजार प्रतियां प्रकाशित की. इसे फोटोलिथोग्राफिक तकनीक से प्रकाशित किया गया. यादगार के तौर पर संविधान की एक प्रति आज भी देहरादून के सर्वे ऑफ इंडिया के म्यूजियम में सुरक्षित है.
भारतीय सर्वेक्षण विभाग, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अधीन राष्ट्रीय सर्वेक्षण और मानचित्रण के लिए भारत सरकार का एक प्राचीनतम वैज्ञानिक विभाग है. यही विभाग देश की रक्षा जरूरतों के साथ ही विकास कार्यों के लिये प्रमाणिक मानचित्र अपनी विशालकाय प्रिंटिंग मशीनों से मुद्रित करता रहा है. ईस्ट इंडिया कम्पनी द्वारा इसकी स्थापना 1767 में की गई थी.
सन 1757 में, प्लासी की लड़ाई में, ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल के शासक सिराज-उद-दौला को हरा कर भारत में अपनी जड़ें जमानी शुरू तो अन्य क्षेत्रों को जीतने और सैन्य अभियान चलाने के लिये उस समय के नक्शों की कमी थी. इसलिए उन्होंने भारत का नक्शा तैयार करने का फैसला किया.
इस उद्देश्य से सन 1767 में क्लाइव ने मेजर रेनेल को सर्वेयर जनरल आफ बंगाल नियुक्त किया. 10 अप्रैल 1802 से मेजर विलियम लैम्बटन ने जी टी एस का कार्य प्रारम्भ किया था और मद्रास वैधशाला के नजदीक कैप कैमरिन से बेंगलूरु तक आधार रेखा के मापन द्वारा ग्रेट आर्क को मापने का कार्य प्रारम्भ किया और आर्क को बाद में हिमालय के उत्तर में बहुत परिशुद्धता से मसूरी की पहाड़ियों में बिनोग तक बढ़ाया.
सन् 1815 में कर्नल कालिन मैकेंजी भारत के महासर्वेक्षक बने तो उन्होंने ज्योडीय सर्वेक्षण का कार्य विलियम लैम्बटन के नेतृत्व में आगे बढ़ाया एवं सन् 1818 में कैप्टन जार्ज एवरेस्ट इस कार्य में शामिल हुये.
सन 1930 में कर्नल जार्ज एवरेस्ट विधिवत भारत के महासर्वेक्षक बन गये. सन 1843 में कर्नल जार्ज एवरेस्ट की सेवानिवृत्ति के पश्चात एंड्रयू स्काटबाग भारत के महासर्वेक्षक बने. उन्होंने इस कार्य को आगे बढाते हुये सन 1863 में वृहत त्रिकोणीयन श्रृंखला समायोजित कराया, जिसका परिणाम प्रथम श्रेणी श्रृंखला के अन्र्तगत पाया गया.
सन् 1878 में भारत के नये महासर्वेक्षक जेम्स टी वाकर ने टोपोग्राफिकल सर्वेक्षण एवं ग्रेट ट्रिगनोमेट्रीकल सर्वेक्षण को एकीकरण कर उसका मुख्यालय देहरादून बना दिया.
वर्तमान में भारतीय सर्वेक्षण विभाग को 8 जोनों, 23 भू-स्थानिक आंकड़ा केन्द्रों/क्षेत्रीय निदेशालयों, 6 विशिष्ट निदेशालयों और 29 राज्यों तथा 9 स्वायत्तशासी क्षेत्रों को समाहित करते हुए 1 शिक्षण निदेशालय में संगठित किया गया है.
भारतीय संविधान का निर्माण करने वाली संविधान सभा का गठन जुलाई, 1946 में किया गया था. जिनमें 292 ब्रिटिश प्रांतों के प्रतिनिधि, 4 चीफ कमिश्नर क्षेत्रों के प्रतिनिधि एवं 93 देशी रियासतों के प्रतिनिधि थे. सभा की पहली बैठक 9 दिसम्बर 1946 को हुई. जिसमें वरिष्ठतम सांसद सचिदानंद सिन्हा अस्थाई अध्यक्ष बने, जबकि 11 दिसम्बर 1946 को डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद स्थाई अध्यक्ष चुने गये.
देश के विभाजन से यह सदस्य संख्या घट कर 299 रह गई. जिन्ना के नेतृत्व वाली मुस्लिम लीग की मांग पर पाकिस्तान के लिये माउण्टबेटन के प्लान के तहत 3 जून 1947 को अलग संविधान सभा बनायी गयी.
भारत के संविधान की आत्मा उसकी प्रस्तावना में निहित है, जिसकी शुरूआत ‘‘हम भारत के लोग’’ से होती है. इसका अभिप्राय कश्मीर से कन्या कुमारी तक और पूरब से पश्चिम तक हर जाति, धर्म, भाषा, संस्कृति और क्षेत्र से है.
लेकिन राजनीतिक लाभ के लिये जहां हम भारत के लोग शब्दों का प्रयोग होना था वहां अब ‘‘हम’’ के आगे हिन्दू, जाति विशेष, मुसलमान, सिख, इसाई, भाषा भाषी, क्षेत्र विशेष आदि शब्दों का प्रयोग कर संविधान की ‘‘हम भारत के लोग’’ की भावना को खण्डित किया जा रहा है.
पन्थ निरपेक्षता की भावना को तो रौंदा ही जा रहा था लेकिन अब तो समाजवाद की बात को भी शनैः शनैः गुजरे जमाने में धकेला जा रहा है. श्रम कानूनों में बदलाव और सरकारी प्रतिष्ठानों का निजीकरण इसका उदाहरण है.
गरीब के लिये जितना कठिन न्याय और तरक्की के समान अवसर प्राप्त करना है उतना ही कठिन न्याय पाना भी है. इन मुद्दों से एक सोची समझी योजना के तहत आम आदमी का ध्यान हटाया जा रहा है.
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