उत्तराखंड की राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने गैरसैंण को प्रदेश की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने के राज्य सरकार के निर्णय पर मुहर लगा दी है. राज्यपाल ने आज इस फैसले पर स्वीकृति दी.
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस वर्ष चार मार्च को भराड़ीसैंण विधानसभा सत्र में गैरसैंण को प्रदेश की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की घोषणा की थी. राज्यपाल द्वारा इस निर्णय पर स्वीकृति दिए जाने के बाद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने उनका आभार जताया.
मुख्यमंत्री ने कहा, ‘सवा करोड़ उत्तराखंड वासियों की भावनाओं का सम्मान करते हुए मुझे बेहद खुशी हो रही है कि आज भराड़ीसैंण (गैरसैंण) को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित किए जाने की अधिसूचना जारी कर दी गई है. राज्य आंदिलनकारियों, मातृशक्ति व शहीदों के सपनों को साकार करने की दिशा में यह मील का पत्थर साबित होगा.
वहीं प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने सरकार के इस फैसले पर चुटकी लेते हुए स्थाई राजधानी का सवाल उठाया है.
सोशल मीडिया साइट फेसबुक पर उन्होंने लिखा है, ‘मैं त्रिवेंद्र सिंह जी को बधाई दूंगा कि, उन्होंने भराड़ीसैंण को उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी नोटिफाई कर दिया है. मगर इतना जरूर उनसे चाहूंगा कि, यदि भराड़ीसैंण, गैरसैंण ग्रीष्मकालीन राजधानी है और देहरादून अस्थाई राजधानी है, जिसको केंद्र सरकार ने राज्य बनाते वक्त अस्थाई राजधानी कहा है, तो फिर राज्य की राजधानी कहां है ? तो यह एक बड़ा यक्ष प्रश्न है कि, राज्य की राजधानी कहां है ?’
उत्तराखंड क्रांति दल, भाकपा माले तथा अन्य संगठनों ने इस निर्णय को राज्य की जनता के साथ छल बताया है. उत्तराखंड क्रांति दल के नेता और पूर्व विधायक काशी सिंह ऐरी ने इन निर्णय को उत्तराखण्ड के शहीदों और आंदोलनकारियों का अपमान बाताया है.
उन्होंने सोशल मीडिया साइट फेसबुक पर लिखा है, ‘आज उत्तराखण्ड सरकार ने गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी अधिसूचित कर दिया है. हम इसका प्रतिकार करते हैं. तेरह जिलों के एक छोटे राज्य, जिसके पास आज इतने भी संसाधन नहीं हैं कि वह समय पर अपने कर्मचारियों को वेतन दे पाये, उस पर दो-दो राजधानियां थोप दी जा रही हैं.
यह उत्तराखण्ड के शहीदों और आन्दोलनकारियों का अपमान है और उत्तराखण्ड की जनता का शोषण. भाजपा की तत्कालीन केन्द्र सरकार ने राजधानी के मुद्दे उत्तराखण्ड की जनता ने उस समय भी छल किया था, उत्तराखण्ड राज्य के विधेयक में राजधानी का क्लाज जानबूझकर डाला ही नहीं गया था, दूसरा छल आज की प्रदेश सरकार कर रही है.
उत्तराखण्ड की प्रस्तावित राजधानी निर्विवाद रुप से गैरसैंण थी, पहले तो इसे धोखे से देहरादून में अस्थाई बना दिया गया, फिर तत्कालीन भाजपा की अनन्तिम सरकार ने उसे एक आयोग को सौंप दिया, आयोग को उसके बाद आई कांग्रेस की सरकार भी पोसती रही फिर उसकी रिपोर्ट भी भाजपा की ही सरकार के समय में विधान सभा में रखी गई, जिस पर आज तक सदन में बहस नहीं कराई गई है और आज फिर से ग्रीष्मकालीन राजधानी का झुनझुना पकड़ाया जा रहा है.
यह बिल्कुल बर्दाश्त नहीं किया जायेगा, उत्तराखण्ड क्रान्ति दल इसका पुरजोर विरोध करता है और जनता के साथ मिलकर हम फिर से आन्दोलन करेंगे और उत्तराखण्ड की जनता की भावना के अनुरुप गैरसैंण को स्थाई राजधानी बनाकर ही दम लेंगे.’
भाकपा (माले) नेता इन्द्रेश मैखुरी ने भी इस निर्णय को जनता के साथ छल बताया है. प्रेस बयान जारी करते हुए उन्होंने लिखा, ‘गैरसैंण को उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाये जाने की राज्य सरकार की घोषणा पर राज्यपाल की मोहर लगाया जाना प्रदेश की जनता के साथ त्रिवेंद्र रावत सरकार द्वारा किये गए छल को वैधानिकता प्रदान करने की कार्यवाही है.
यह राज्य आंदोलन की भावना और दृष्टिकोण के साथ विश्वासघात है. राज्य आंदोलन के समय किसी ने,कभी भी गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की मांग नहीं की. मांग गैरसैंण को उत्तराखंड की स्थायी राजधानी बनाने की थी,जिसके पीछे तार्किक कारण थे.
दो राजधानियों की अवधारणा भारत में अंग्रेज ले कर आये थे. यदि आजादी के 72 वर्षों बाद भी उत्तराखंड सरकार को दो राजधानियों के औपनिवेशिक मॉडल की याद आ रही है तो स्पष्टतः त्रिवेंद्र रावत सरकार अंग्रेजी राज की गुलामी के औपनिवेशिक खुमार की गिरफ्त में है. 13 जिलों के छोटे से प्रदेश में दो राजधानियां औचित्यहीन और जनता के धन की बर्बादी है.
हम मांग करते हैं कि ग्रीष्कालीन-शीतकालीन के तमाशे को खत्म कर उत्तराखंड राज्य आंदोलन के सपने और दृष्टिकोण का सम्मान करते हुए गैरसैंण को उत्तराखंड की स्थायी राजधानी घोषित किया जाए.’
कांग्रेस नेता, पूर्व राज्यमंत्री और इन दिनों वनाधिकार आंदोलन चला रहे किशोर उपाध्याय ने भी गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने के निर्णय का विरोध किया है.
उन्होंने कहा कि यह निर्णय राज्य आन्दोलन की भावना की हत्या करता है. छोटे राज्य में दो-दो राजधानियों को राज्य की जनता का उपहास बताते हुए किशोर उपाध्याय ने कहा, ‘अंगेजों ने ग्रीष्म व शीतकालीन राजधानियों का निर्माण अपने सुख को लेकर किया था, ताकि वे मौसम की प्रतिकूलता से बच सकें और उसी मानसिकता का परिचय यह निर्णय है.’ उन्होंने कहा कि सरकार इस निर्णय को वापस ले और राज्य की राजधानी घोषित करे.
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