किसी सरकार के लिए इससे ज्यादा फजीहत की बात और क्या हो सकती है कि अपने किसी निर्णय को अमली जामा पहनाने के लिए वह अपने ही पक्ष के विधायकों को तैयार न कर सके.
और यदि ऐसा प्रचंड बहुमत वाली सरकार के कार्यकाल में हो तो उसकी ‘आन’ ‘बान’ और ‘शान’ पर कई तरह के सवाल खड़े होना लाजमी है.
उत्तराखंड की प्रचंड बहुमत वाली सरकार की आन, बान और शान इन दिनों अपने ही विधायकों के चलते सवालों के घेरे में आ गई है.
कोरोना संकट के बीच त्रिवेंद्र सरकार एक ऐसे निर्णय को अपने विधायकों पर ही लागू नहीं करा पा रही है, जिसे कोरोना संकट के बीच बड़े फैसले के रूप में बढ़ा-चढ़ा कर प्रचारित किया जा रहा है.
दरअसल उत्तराखंड की सत्ताधारी भाजपा सरकार अपने कई विधायकों को उस वेतन कटौती के लिए तैयार करा पाने में नाकाम रही है, जिसे कोरोना के खिलाफ लड़ाई में सहयोग राशि के रूप में लिए जाने का निर्णय त्रिवेंद्र सरकार ने लिया था.
केदारनाथ विधानसभा के विधायक मनोज रावत (कांग्रेस) ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट, (फेसबुक) पर इससे जुड़े दस्तावेज जारी किए हैं.
इन दस्तावेजों से खुलासा होता है कि भारतीय जनता पार्टी के 57 तथा एक मनोनीत (एंग्लो इंडियन) को जोड़ कर कुल 58 विधायकों में से मात्र 13 विधायक ही ऐसे हैं जो त्रिवेंद्र सरकार के निर्णय का सम्मान करते हुए अपने वेतन का निर्धारित हिस्सा, 57600 रुपये प्रतिमाह कोरोना के खिलाफ लड़ाई के लिए अंशदान के रूप में दे रहे हैं.
भाजपा के अन्य विधायकों में से 16 विधायक ऐसे हैं जो अपने वेतन से 30000 रुपये की कटौती करा रहे हैं. 13 विधायक ऐसे हैं जो प्रतिमाह 9000 रुपये ही कटवा रहे हैं जबकि चार विधायक हर माह 12600 रुपये कटवा रहे हैं.
दूसरी तरफ विपक्षी कांग्रेस पार्टी के सभी विधायक राज्य सरकार द्वारा तय की कई राशि यानी 57600 रुपये प्रतिमाह अंशदान के रूप में कटवा रहे हैं.
केदारनाथ विधायक मनोज रावत का कहना है कि उनके द्वारा मांगी गई सूचना में विधानसभा ने मुख्यमंत्री, विधानसभा अध्यक्ष, विधानसभा उपाध्यक्ष और मंत्रियों के संबंध में सूचना नहीं दी है.
उनका कहना है कि मुख्यमंत्री, स्पीकर और सभी मंत्रियों द्वारा वेतन भत्तों से की जाने वाली कटौती की जानकारी भी सार्वजनिक की जानी चाहिए.
गौरतलब है कि दो महीने पहले, आठ अप्रैल को त्रिवेंद्र सरकार ने प्रदेश में कोरोना महामारी के खिलाफ लड़ाई के लिए प्रदेश के सभी मंत्रियों, विधायकों के वेतन-भत्तों में 30 फीसदी कटौती का निर्णय लिया था.
तब राज्य सरकार ने इस निर्णय को अपनी बड़ी उपलब्धि बताते हुए इसका खूब प्रचार भी किया था.
हालांकि तब विपक्षी दल कांग्रेस ने त्रिवेंद्र सरकार के इस निर्णय पर यह कहते हुए नाराजगी जताई थी कि इस निर्णय से पहले सभी विधायकों को भरोसे में लिया जाना चाहिए था.
बहरहाल नाराजगी के बाद भी नेता प्रतिपक्ष समेत सभी कांग्रेस विधायक प्रदेश द्वारा तय धनराशि कोरोना के खिलाफ अंशदान के रूप में दे रहे हैं.
नेता प्रतिपक्ष डाक्टर इंदिरा हृदयेश (कैबिनेट स्तर का पद होने के चलते) अपने वेतन से 75600 रुपये कटवा रहीं हैं, जबकि बाकी 10 विधायक वेतन-भत्तों का तीस फीसदी यानी 57600 रुपये कटावा रहे हैं.
केदारनाथ विधायक मनोज रावत का कहना है कि यूं तो लोकतांत्र में राज्य सरकार को इस निर्णय से पहले विपक्ष को भी भरोसे में लेना चाहिए था, मगर तानाशाही रवैये के चलते सरकार ने ऐसा सोचने तक की जहमत नहीं उठाई.
बावजूद इसके कोरोना संकट के बीच कांग्रेस ने जन हित में इन निर्णय का पालन करने का निर्णय लिया है. मगर दुखद है कि इस संकट भरे समय में सत्ताधारी दल के विधायक ही सरकार के फैसले की अवमानना कर रहे हैं.
बहरहाल इस खुलासे ने प्रचंड बहुमत वाली त्रिवेंद्र सरकार की साख पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं.
यह भी पढ़ें : जिस जीरो टालरेंस का राग तीन साल से अलापा जा रहा था, वो अब जाकर ‘पूर्णता’ को प्राप्त हुआ है.
Discussion about this post