• मुख पृष्ठ
  • उत्तराखंड
  • देश-दुनिया
  • जनपक्ष
  • समाज-संस्कृति
  • इतिहास
  • वीडियो
Sunday, January 24, 2021
Uttarakhand Gazetteer
  • मुख पृष्ठ
  • उत्तराखंड
  • देश-दुनिया
  • जनपक्ष
  • समाज-संस्कृति
  • इतिहास
  • वीडियो
No Result
View All Result
  • मुख पृष्ठ
  • उत्तराखंड
  • देश-दुनिया
  • जनपक्ष
  • समाज-संस्कृति
  • इतिहास
  • वीडियो
No Result
View All Result
Uttarakhand Gazetteer
No Result
View All Result

नैनीताल : एक ऐतिहासिक शहर जो बीमार पड़ता जा रहा है

प्रमोद साह

September 18, 2020
0
तस्वीर साभार : गूगल

तस्वीर साभार : गूगल

Share on Facebook

सन 1842 के बाद एक शहर के रूप में अस्तित्व में आए नैनीताल को वैदिक काल से ‘त्रिऋषि सरोवर’ नाम से जाना जाता रहा है, लेकिन ब्रिटिश भारत में शाहजहांपुर में सक्रिय शराब व्यवसाई बैरन और उस वक्त के कुमाऊं कमिश्नर वेटन की दोस्ती इस शहर को खोजने का कारण बन गई.

उससे पहले नैनीताल शहर के आठ-दस किलोमीटर के दायरे में कोई बसासत नहीं थी. घने बांज के जंगल, पशुओं के लिए फैले विस्तृत चारागाह के मध्य लगभग तीन किलोमीटर लंबी और आधा किलो मीटर चौड़ी झील, हाड़ कंपाती सर्दी और बांज के पेड़ें से छन कर आती धूप के बीच नैनीताल एक परी लोक का सा दृश्य प्रस्तुत करता था.

घुमक्कड़ बैरन पहले ही इस अद्भुत दृश्य को देखकर मंत्रमुग्ध हो चुका था और सन 1842 में वह वाया भीमताल एक बड़ी नाव लेकर फिर नैनीताल पहुंचा था.

कमिश्नर बेटन और बैरन सहित जब कुछ अंग्रेज नैनी झील में नौकायन के लिए उतरे तो नैकाना, बेलुवाखान के ग्रामीणों ने अंग्रेजों को घेर लिया.

घेराव करने वाले इन ग्रामीणों में नैनी झील और उसके आसपास की भूमि पर अपना हक जताने वाले थोकदार नरसिंह बोरा भी शामिल थे, जिन्होंने इस भूमि के मालिकाना हक के लिए पहले ही कमिश्नर की अदालत में एक वाद दायर किया था.

तस्वीर साभार : गूगल
तस्वीर साभार : गूगल

कमिशनर बेटन इन्हें पहचान गया. उसने साथ नौका विहार के लिए मनुहार किया, नौका विहार के बाद जब थोकदार नरसिंह वापस लौटे तब तक परिस्थितियां बदल चुकी थी. नौकायन के मध्य थोकदार के उत्पीड़न और प्रहशन संबंधित कई किस्से प्रचलित हैं.

बहराल नैनीताल, जिस की आबोहवा पूरी तरह लंदन से मिलती थी, को कमिश्नर बेटन और शराब व्यवसाई बैरन ने छोटी विलायत के रूप में ही विकसित किया. कोई हड़बड़ी नहीं, सब कुछ व्यवस्थित तरीके से वह करना चाहते थे.

इसके लिए अल्मोड़ा में निवास कर रहे ठेकेदार, आर्किटेक्ट और अंग्रेजों के विश्वसनीय श्री मोती राम साह को नैनीताल के डिजाइन और विकास की जिम्मेदारी दी गई.

मोतीराम साह जब नैनीताल आए, तो दुर्लभ परी लोक सा यह स्थान खूबसूरत होने के साथ ही डरावना भी था. कहां से क्या शुरू किया जाए, और कैसे इसको नगर स्वरूप दिया जाए, यह उनकी बड़ी चिंता थी. आज जहां बोट हाउस क्लब है, उसी स्थान पर एक साधु तपस्या रत थे.

अपनी दुविधा को मोतीराम साह जी ने साधु से साझा किया. साधु महाराज ने कहा कि यह देवी का स्थान है. देवी को स्थापित कर, उनकी आज्ञा से ही आगे कुछ करना उचित होगा.

मोतीराम साह धर्म परायण व्यक्ति थे. उन्होंने बोट हाउस क्लब के पास ही सबसे पहले मंदिर का निर्माण किया. यही मंदिर नैना देवी मंदिर कह लाया.

देवी मां की आराधना और स्तुति के बाद नैनीताल शहर की स्थापना का श्रीगणेश शुरू हुआ, सबसे पहली और बड़ी इमारतों में जिसे पहले राजभवन के रूप में भी जाना जाता है, रैमजे भवन बना.

फिर मोतीराम साह भवन, मॉडर्न हाउस, स्नोव्यू का राज भवन, चर्च, शेरवुड कॉलेज का भवन जो थोड़े दिन राजभवन भी रहा और कुछ गिनती के ही भवन प्रारंभ में बने.

तराई से नजदीकी और विलायत का सा मौसम, इन दो कारणों ने नैनीताल को धीरे-धीरे अंग्रेजों की सबसे पसंदीदा जगह बना दिया.

यहां बड़ी संख्या में अंग्रेजों तथा अन्य विदेशी सैलानियों का आना-जाना शुरू हो गया. कुछ होटल बने उनमें सबसे प्रसिद्ध और बड़ा होटल आज के रोप वे के पास विक्टोरिया होटल था.

उस दौर में भी नैनीताल में कब्जा कर लेने की आपाधापी शुरू हो गई थी. अंग्रेजों का शहर होने के बाद भी विकास अनियंत्रित हो रहा था.

अंतिम नियामक के रूप में प्रकृति फिर सामने आई और 18 सितंबर 1880 को एक बहुत बड़ा भूकंप जिसमें स्नो भ्यू की पूरी पहाड़ी नीचे आ गई.

वहां स्थित राज भवन जमींदोज हो गया, झील ने अपना आकार बदला , विस्तृत फ्लैट का निर्माण हुआ पहले से बना नैना देवी मंदिर भी गर्भ में चला गया. अनियंत्रित विकास को प्रकृति की यह बड़ी चेतावनी थी.

तस्वीर साभार : अमित साह
तस्वीर साभार : अमित साह

यह चेतावनी इसलिए भी असरकारक हुई कि तब के विक्टोरिया होटल में 151 विदेशी पर्यटक मारे गए. भारतीयों का हिसाब नहीं, यह बहुत बड़ी घटना थी.

सन 1855 में कमिश्नर रैमजे कुमाऊं कमिश्नरी को छोटी विलायत ला चुके थे. वह बहुत विजनरी कमिश्नर थे. नैनीताल के विकास के उनके स्वप्न को मानो ग्रहण लग गया, लेकिन यहां से वह चेते थे.

पहला जतन नैनीताल की परिस्थितिकी को समझ उसके अनुरूप ही विकास करने का मॉडल तय किया गया. अंधाधुन हो रहे निर्माण कार्यों पर रोक लगा दी गई.

सबसे पहले नैनीताल को बांधने वाले निकासी नाले बनाए गए. शुरुआत में यह 72 बड़े नाले थे और 234 छोटी नालियां इनसे जुड़ती थीं. व्यवस्था ऐसी की गई की इंच भर की मिट्टी ना खिसके, नाले और नालियों से पहाड़ को मजबूती देने का यह डिजाइन दार्जिलिंग से लाया गया.

कालांतर में यह नाले घटकर 26 रह गए इन नालों से नगर नियोजन के प्रति अंग्रेजों की प्रतिबद्धता को समझा जा सकता है.

सन 1880 के भूस्खलन के बाद नैनीताल में निर्माण और विकास में तमाम सावधानियां बरती गईं और मेविला तथा स्नो भ्यू कि पूर्वी पहाड़ी को कमजोर मानते हुए अधिकांश सार्वजनिक निर्माण के कार्य पश्चिमी पहाड़ी यानी आयारपाटा की तरफ किए जाने लगे.

यहीं बाद के वर्षों में आज का राजभवन (1900 ) अस्तित्व में आया.

बेहतर शिक्षा के लिए सेंट जोसेफ,सेंट मैरी, शेरवुड जैसे राष्ट्रीय महत्व के स्कूल यहां स्थापित हुए. विलायती खुशगवार मौसम के कारण नैनीताल हमेशा अंग्रेजों की पहली पसंद बना रहा.

श्री मोतीराम साह जी के पुत्र अमरनाथ साह द्वारा जमींदोज हो चुके नैना देवी मंदिर को अपनी निजी भूमि में 100 मीटर पश्चिम दिशा, जहां आज नैना देवी मंदिर है वहां स्थापित किया गया. वर्तमान में श्री राजीव लोचन साह इस मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं.

कुल मिलाकर नैनीताल एक बेहतर शहर के रूप में पूरी दुनिया में जाने जाने लगा. बॉलीवुड ने भी इसे नई पहचान दी. यहां स्थापित अंग्रेजी विद्यालय और बाद में सीआरएसटी इंटर कॉलेज ने शिक्षा में बड़ी छलांग लगाई और जिस कारण इस शहर के नागरिकों का चेतना का स्तर हमेशा बेहतर रहा.

अंग्रेजों के वक्त ही शहर में आजादी की लड़ाई के बहुत स्वर्णिम अध्याय लिखें गए. यहां माल रोड में गांधी का मार्च, सन 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन और बहुत कुछ ऐतिहासिक घटता गया.

एक शहर के रूप में नैनीताल बढ़ता संवरता गया. उत्तर भारतीय पर्यटन को वैश्विक पहचान देने में नैनीताल की महत्वपूर्ण भूमिका है.

आजादी के तुरंत बाद नैनीताल शहर के पहले पालिका अध्यक्ष मनोहर लाल साह ने भी इस शहर को बनाने बसाने और सेवा के अद्भुत मानदंड कायम किए.

तस्वीर साभार : अमित साह
तस्वीर साभार : अमित साह

पालिका के यह वह अध्यक्ष थे जो संयुक्त प्रांत के पहले मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत और प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को पैदल ही माल रोड पर टहलाते थे. इसी माल रोड में वह खुद भी सफाई में जुट जाते थे. स्वप्निल शहर को बसाने में कुछ ऐसे ही दिल से जुटना होता है.

शिक्षा के केंद्र के रूप में स्थापित होने के बाद साहित्य और नाटक की दुनिया में भी नैनीताल ने खूब नाम कमाया, सॉन्ग एंड ड्रामा डिवीजन नैनीताल ने इसके विकास में बड़ी भूमिका अदा की.

बैंड स्टैंड पर कैप्टन राम सिंह का बैंड जब बजता था तो मानो पूरा शहर झूम रहा होता था. खेलों को पहचान देने के लिए दशकों तक गर्मी के दिनों में हॉकी का ऑल इंडिया टूर्नामेंट, ट्रेडर्स कप यहां की शान रही. हॉकी के राष्ट्रीय खिलाड़ी यहां से निकले.

बाद के दिनों में युग मंच ने नाटकों के जरिए नैनीताल को राष्ट्रीय पहचान दी. नाटकों की यहां की अभिरुचि एनएसडी में भी छा गई, उसे नैनीताल स्कूल ऑफ ड्रामा कहा जाने लगा.

अंग्रेजी नफासत के बाद भी यह शहर जन आंदोलनों की गर्भ भूमि बना रहा, विश्वविद्यालय आंदोलन, नवम्बर 1977 की जंगल की नीलामी विरोध से वन आंदोलन की चिंगारी, नशा नही रोजगार दो और उत्तराखंड राज्य आंदोलन के कुछ खास अध्याय नैनीताल में ही लिखे गए.

प्रतीकात्मक तस्वीर : उत्तराखंड आंदोलन
प्रतीकात्मक तस्वीर : उत्तराखंड आंदोलन

1990 का वर्ष देश के साथ ही नैनीताल के इतिहास के लिए भी खास बनकर आया. कश्मीर में आतंकवाद के बढ़ने के साथ ही नैनीताल में पर्यटन व्यवसाय ने उछाल मारा. अखिल भारतीय बिल्डर की गिद्ध दृष्टि नैनीताल पर पड़ी.

विकास प्राधिकरण से सेटिंग रंग दिखाने लगी, ऐतिहासिक नाले कब्जाए गए, शहर की रूमानी हवा में लालच की गंध आने लगी. बेतरतीब और अनियंत्रित बढ़े हुए पर्यटन ने नैनीताल के फेफड़े फुला दिए.

सन् 2000 में उच्च न्यायालय की स्थापना ने यह दबाव और बढ़ा दिया है. हांलाकि उच्च न्यायालय इस दबाव से नैनीताल को कभी भी मुक्त कर सकता है. ऐसे राहत भरे समाचार भी समय समय पर मिल रहे हैं.

वर्ष 2015 के बाद जून माह में मीलों लंबे जाम के जो दृष्य देखने को मिल रहे हैं, उसने नैनीताल के विशेष पर्यटन को प्रभावित किया है.

कुल मिलाकर आज एतेहासिक नैनीताल शहर जनसंख्या व यातायात के अत्यधिक दबाव से हांफ रहा है. इसकी नैसर्गिक सुषमा भी संकट में है ।
अप्रैल 2003 में ऑस्ट्रेलियाई नागरिक रेन्को आन्सेटन ने राजीव लोचन साह जी सहित कुछ वरिष्ठ नागरिकों को झकझोरते हुए कहा कि आपका शहर दुनिया के हजारों शहरों में बेहतरीन है, इसकी कोई तुलना नहीं लेकिन यह बीमार पड़ रहा है. इसे बचाने को कुछ करो, जागरूकता के लिए नैनीताल सफाई दिवस मनाओ जैसे हमने पर्थ में किया.

बात समझ में आई. नगर पालिका और स्थानीय प्रशासन के सहयोग से वर्। 2007 से प्रतिवर्ष 18 सितंबर को नैनीताल के अस्तित्व के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए जन सहभागिता से सफाई का कार्यक्रम चलाया जा रहा है.

वर्ष 2013 में यह क्रम टूट गया. इस वर्ष नए युवाओं के जुड़ने के साथ 18 सितंबर को जनसहभागिता से नैनीताल स्वच्छता कार्यक्रम फिर प्रारम्भ हो रहा है. हम जिसकी सफलता की कामना करते हैं.

उम्मीद है कि संयुक्त राष्ट्र संघ विश्व धरोहर के रूप में नैनीताल शहर का संरक्षण करें, अब सिर्फ कठोर निर्णय के साथ ही यह स्वप्निल शहर बचाया जा सकता है.

यह भी पढ़ें : चार धाम परियोजना पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला : बहुत देर कर दी, हुजूर आते-आते

ShareSendTweet
Previous Post

चार धाम परियोजना पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला : बहुत देर कर दी, हुजूर आते-आते

Next Post

पुण्यतिथि : शमशेरदा तुम गए थोड़े हो, हममें समा गए हो !

Related Posts

वीडियो

किसान आंदोलन की तरह उत्तराखण्ड में चल रहा ये आंदोलन

चमोलीः लोगों का अनोखा विरोध, बनाई 19 किलोमीटर लंबी मानव श्रृंखला

Read more
by ukgazetteer
0 Comments
उत्तराखंड

नंदप्रयाग-घाट सड़क आंदोलन के समर्थन में उमड़ा जन सैलाब

नंदप्रयाग-घाट सड़क आंदोलन के समर्थन में उमड़ा जन सैलाब

चमोली जिले के विकासनगर घाट में चल रहा सड़क आंदोलन और तेज हो गया है. 19 किलोमीटर लंबी सड़क को डेढ़ लेन चौड़ा किए जाने की मांग को लेकर चल रहे आंदोलन के समर्थन में आज विकासनगर घाट में विशाल रैली निकाली गई. रैली में हजारों की संख्या में स्थानीय जनता ने भागीदारी की. रैली के बाद धरनास्थल पर सभा का आयोजन किया गया. सभा में वक्ताओं ने त्रिवेंद्र सरकार के खिलाफ आक्रोश जाहिर किया और उन पर वादाखिलाफी का आरोप लगाया. रैली को समर्थन देने पहुंचे भाकपा (माले) नेता इंद्रेश मैखुरी ने त्रिवेंद्र सरकार पर खूब निशाने साधे. उन्होंने नंदप्रयाग-घाट सड़क चौड़ीकरण की मांग को जायज मांग बताते हुए कहा कि दो-दो मुख्यमंत्रियों द्वारा की गई घोषणा के बावजूद चौड़ीकरकण न किया जाना सरकार की नाकामी को बयान करता है. मैखुरी ने कहा कि वर्ष 2018 में हुए थराली उपचुनाव में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने स्थानीय जनता को विकास का भरोसा दिलाया था, मगर चुनाव जीतने के बाद आज उनकी सरकार एक सड़क का चौड़ीकरण तक नहीं करा सकी है. घाट-नंदप्रयाग सड़क को डेढ़ लेन करने की मांग को लेकर पिछले 49 दिनों से आंदोलन चल रहा है. आंदोलन के समर्थन में पिछले 12 दिनों ने आमरण अनशन भी चल रहा है. वर्तमान में व्यापार संघ अध्यक्ष चरण सिंह नेगी, ग्राम सभा उस्तोली के प्रधान प्रधान महावीर सिंह बिष्ट, व्यापार संघ के सदस्य सुरेंद्र सिंह कठैत और पूर्व ग्राम प्रधान प्रधान दिनेश नेगी आमरण अनशन पर बैठे हैं. अनशन पर बैठे आंदोलनकारियों के स्वास्थ्य में लगातार गिरावट आ रही है. इससे पहले बीती दस जनवरी को आंदोलनकारियों ने 19 किलोमीटर लंबी मानव श्रंखला बना कर ऐतिहासिक प्रदर्शन किया था. जिसके बाद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने सकड़ मार्ग के चौड़ीकरण के लिए परीक्षण के आदेश दिए थे, मगर आंदोलनकारियों का कहना है कि मुख्यमंत्री के निर्देश कोरे आश्वावन के सिवा...

Read more
by ukgazetteer
0 Comments
उत्तराखंड

उत्तराखंड के दिनभर के प्रमुख समाचार : 18 जनवरी 2021

उत्तराखंड के दिनभर के प्रमुख समाचार : 14 दिसंबर 2020

उत्तराखंड कोरोना अपडेटः कोरोना से 6 लोगों की मौत, 120 नए संक्रमित उत्तराखंड में कोरोना  संक्रमण में कमी देखने को मिल रही है. बीते 24 घंटे के भीतर कोरोना संक्रमण के 120 नए मामले सामने आए हैं. वहीं 6 मरीजों की मौत हो गई है. वहीं, रविवार को 330 मरीजों को ठीक होने के बाद घर भेजा गया. प्रदेश में संक्रमित मरीजों की मौत की संख्या 1617 पहुंच गई है. कुल संक्रमितों का आंकड़ा 94923 हो गया है. जबकि 2136 सक्रिय मरीजों का उपचार चल रहा है. कुल मिला कर अब तक 89882 मरीज स्वस्थ हो चुके हैं. साथ ही रिकवरी दर 94.69% फीसदी है. वैक्सीन लगने के बाद भी में कोरोना को लेकर ना बरते लापरवाही उत्तराखंड में में जो हेल्थ वर्कर कोविड-19 वैक्सीन की पहली खुराक ले चुके हैं. वे भी कोरोना वायरस संक्रमण को लेकर लापरवाही ना बरतें. वैक्सीन की दूसरी खुराक लेने के 14 दिन बाद ही शरीर में एंटीबॉडी का सुरक्षा चक्र विकसित हो पाएगा. ऐसे में वैक्सीन लगवाने वालों को भी आम लोगों की तरह कोविड नियमों का पालन कर मास्क पहनना, हाथ धोना और दो गज की दूरी रखनी जरूरी होगी. बता दें कि उत्तराखंड में कोविड टीकाकरण की शुरुआत के साथ कोरोना वायरस के खिलाफ जंग शुरू हो चुकी है. उत्तराखंड में पहले चरण में 50 हजार हेल्थ वर्करों को कोविशील्ड वैक्सीन की खुराक लगाई जाएगी, लेकिन जिन हेल्थ वर्करों को वैक्सीन की पहली खुराक दी गई है, उन्हें भी संक्रमण से बचाव के लिए पूरी तरह से सतर्क और नियमों का पालन करना होगा. वैक्सीन की दूसरी खुराक 28 दिन के भीतर लगनी है. इसके 14 दिन बाद ही शरीर में एंटीबॉडी का सुरक्षा चक्र विकसित होगा. यानी पहली खुराक लगने के 42 दिन और दूसरी खुराक के 14 दिन बाद एंटीबॉडी बननी शुरू होगी. कक्षा छह से 12वीं तक के छात्र-छात्राओं के लिए...

Read more
by ukgazetteer
0 Comments
जनपक्ष

हाशिए पर जनसरोकार, कटघरे में ‘ताकतवर’ सरकार

हाशिए पर जनसरोकार, कटघरे में ‘ताकतवर’ सरकार

दो महीने होने जा रहे हैं नए कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली बार्डर पर चल रहे किसान आंदोलन को, तकरीबन इतने ही दिन से उत्तराखंड के सीमांत चमोली जिले के घाट क्षेत्र में एक अदद सड़क की मांग को लेकर आंदोलन चल रहा है. इन दोनो आंदोलनों को एक साथ देखें तो उत्तराखंड की ताकतवर त्रिवेंद्र सरकार कटघरे में नजर आती है. आप सोच रहे होंगे कि दिल्ली बार्डर पर चल रहे किसान आंदोलन और चमोली के घाट में चल रहे सड़क आंदोलन का आपस में क्या सरोकार हो सकता है ? सरोकार है, मौजूदा परिदृश्य में दोनो आंदोलनों का गहरा सरोकार एक ऐसी ताकतवर सरकार से है जो जनता के प्रति संवेदनशील होने का दम भरती है. यह सरोकार सरकार की मंशा, उसकी प्राथमिकता और जनता के प्रति संवेदनशीलता से तो है ही, उस आशंका से भी है जो दिल्ली बार्डर पर बैठा किसान जता रहा है. दरअसल दिल्ली बार्डर पर आंदोलन कर रहा किसान नए कृषि कानून में  खेती की जमीन को लीज पर दिए जाने और कांट्रेक्ट फार्मिंग की जिस व्यवस्था को लेकर आशंकित है, वह व्यवस्था तो उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सरकार खेती किसानी के हक में बताते हुए साल भर पहले यह कहकर कर चुकी है कि इससे राज्य के लोगों की आमदनी बढ़ेगी और पलायन रुकेगा. यह अलग बात है कि साल भर में न किसानों की आमदनी बढ़ी और न पलायन ही रुका. सरकार की संवदेनशीलता का हाल यह है कि दो-दो मुख्यमंत्रियों की घोषणा के बावजूद सरकार घाट क्षेत्र की सडक चौड़ी नहीं करा पा रही है. आज किसान आंदोलन और राज्य के सीमांत क्षे़त्र में सड़क के लिए चलाए जा रहे आंदोलन के आलोक में देखें तो साफ है कि उत्तराखंड के साथ छल हो रहा है. दोनों आंदोलन इस बात का प्रमाण हैं कि ताकतवर सरकार जनता की नहीं, कॉरपोरेट...

Read more
by ukgazetteer
0 Comments
Load More
Next Post

पुण्यतिथि : शमशेरदा तुम गए थोड़े हो, हममें समा गए हो !

शमशेर सिंह बिष्ट : जन सरोकारों की बुलंद आवाज

शमशेर सिंह बिष्ट : जन सरोकारों की बुलंद आवाज

Discussion about this post

No Result
View All Result
चमोलीः लोगों का अनोखा विरोध, बनाई 19 किलोमीटर लंबी मानव श्रृंखला
वीडियो

किसान आंदोलन की तरह उत्तराखण्ड में चल रहा ये आंदोलन

Read more
नंदप्रयाग-घाट सड़क आंदोलन के समर्थन में उमड़ा जन सैलाब

नंदप्रयाग-घाट सड़क आंदोलन के समर्थन में उमड़ा जन सैलाब

उत्तराखंड के दिनभर के प्रमुख समाचार : 19 जनवरी 2021

उत्तराखंड के दिनभर के प्रमुख समाचार : 19 जनवरी 2021

उत्तराखंड के दिनभर के प्रमुख समाचार : 14 दिसंबर 2020

उत्तराखंड के दिनभर के प्रमुख समाचार : 18 जनवरी 2021

हाशिए पर जनसरोकार, कटघरे में ‘ताकतवर’ सरकार

हाशिए पर जनसरोकार, कटघरे में ‘ताकतवर’ सरकार

Recent Posts

  • किसान आंदोलन की तरह उत्तराखण्ड में चल रहा ये आंदोलन
  • नंदप्रयाग-घाट सड़क आंदोलन के समर्थन में उमड़ा जन सैलाब
  • उत्तराखंड के दिनभर के प्रमुख समाचार : 19 जनवरी 2021
  • उत्तराखंड के दिनभर के प्रमुख समाचार : 18 जनवरी 2021
  • हाशिए पर जनसरोकार, कटघरे में ‘ताकतवर’ सरकार
Facebook Twitter Instagram Youtube

Copyright © 2019 Uttarakhand Gazetteer - Designed and Developed by Struckhigh Solutions.

No Result
View All Result
  • मुख पृष्ठ
  • उत्तराखंड
  • देश-दुनिया
  • जनपक्ष
  • समाज-संस्कृति
  • इतिहास
  • वीडियो

Copyright © 2019 Uttarakhand Gazetteer - Designed and Developed by Struckhigh Solutions.

Login to your account below

Forgotten Password?

Fill the forms bellow to register

All fields are required. Log In

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In
error: Content is protected !!