नैनीताल हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए मीडियाकर्मी उमेश शर्मा के खिलाफ दर्ज राजद्रोह के मामले को निरस्त कर दिया है.
साथ ही उनके द्वारा मुख्यमंत्री पर लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के सीबीआई आदेश भी न्यायालय ने दिए हैं.
जस्टिस रवींद्र मैठाणी की एकल पीठ ने बीते रोज मामले की सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया.
इस साल 31 जुलाई को सेवानिवृत्त प्रोफेसर हरेंद्र सिंह रावत ने देहरादून थाने में उमेश शर्मा के खिलाफ विभिन्न धाराओं में मुकदमा दर्ज कराया था.
शिकायत के मुताबिक उमेश शर्मा ने सोशल मीडिया में एक वीडियो पोस्ट किया था जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि कि प्रोफेसर हरेंद्र सिंह रावत और उनकी पत्नी डाक्टर सविता रावत के खाते में नोटबंदी के दौरान झारखंड से अमृतेश चौहान नाम के व्यक्ति ने पैसे जमा किए और ये पैसे मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को देने को कहा.
उमेश शर्मा द्वारा पोस्ट किए वीडियो में डाक्टर सविता रावत को मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र की रिश्तेदार बताया गया.
डाक्टर हरेंद्र सिंह रावत ने इन आरोपों को गलत बताते हुए उंमेश शर्मा के खिलाऱ मुकदमा दर्ज किया था.
अभी इस मामले में उत्तराखंड सरकार की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है.
गौरतलब है कि ब्लैकमेलिंग के आरोप में जेल की हवा खा चुके मीडियाकर्मी उमेश शर्मा का अतीत विवादों से भरा रहा है.
पिछली कांग्रेस सरकार में मुख्यमंत्री हरीश रावत के स्टिंग को लेकर उमेश शर्मा पर सवाल उठ चुके हैं.
उस स्टिंग में उमेश बिचौलिया बन कर हरीश रावत के साथ सरकार बचाने को लेकर मोलभाव करते दिखे थे.
साथ ही स्टिंग में कुछ ऐसी बातें भी सामने आई थीं, जिनसे पता चलता है कि उमेश शर्मा पहले भी पत्रकारिता की आड़ में बड़े खेल करते रहे हैं.
बहरहाल राजद्रोह का मामला निरस्त होना उमेश शर्मा के लिए बड़ी राहत है.
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