तीन दशक से भी ज्यादा (34 साल) वक्त के अंतराल के बाद नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 को केंद्र सरकार की मंजूरी मिल गई है. बीते रोज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में नई शिक्षा नीति को मंजूरी दी गई.
कैबिनेट बैठक के बाद केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक और केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने प्रेस वार्ता कर नई शिक्षा नीति के बारे में जानकारी दी.
नई शिक्षा नीति में प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक कई बड़े बदलाव किए गए हैं. नई शिक्षा नीति में मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदल कर शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है.
नई शिक्षा नीति में देश की कुल जीडीपी का छह प्रतिशत शिक्षा क्षेत्र में खर्च करने की बात कही गई है। वर्तमान में शिक्षा पर कुल जीडीपी लगभग साढे चार प्रतिशत खर्च किया जा रहा है.
नई शिक्षा नीति में वर्ष 2030 तक स्कूली शिक्षा में 100 प्रतिशत पंजीकरण के साथ ही माध्यमिक स्तर तक सभी के लिए अनिवार्य शिक्षा का लक्ष्य रखा गया है.
शिक्षा नीति में कक्षा पांच तक पढाई का माध्यम मातृभाषा अथवा स्थानीय भाषा में रखने का निर्णय लिया गया है. इसे आठवीं कक्षा तक भी बढ़ाया जा सकता है.
नई शिक्षा नीति में तीन से छह साल के बच्चों को अनिवार्य रूप से स्कूली पाठ्यक्रम के तहत लाने का प्रावधान किया गया है.
नीति के मुताबिक अब प्री-स्कूलिंग के साथ 12 साल की स्कूली शिक्षा और तीन साल की आंगनवाड़ी शिक्षा होगी.
इसके तहत पहले चरण में तीन साल की प्री-प्राइमरी, पहली तथा दूसरी कक्षा को रखा गया है. दूसरे चरण में तीसरी, चौथी और पांचवीं कक्षा होगी. तीसरे चरण में 6 से 8 तक की कक्षाएं रखी गई हैं.
नई शिक्षा नीति के परीक्षा के पैटर्न में भी बदलाव किए गए हैं. अब केवल तीसरी, पांचवी और आठवी कक्षा में ही परीक्षा होगी.10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षा पहले की तरह जारी रहेगी.
नई शिक्षा नीति के तहत एनसीईआरटी 8 वर्ष की आयु तक के बच्चों के लिए प्रारंभिक बचपन देखभाल और शिक्षा (एनसीपीएफफईसीसीई) के लिए एक राष्ट्रीय पाठ्यक्रम और शैक्षणिक ढांचा विकसित करेगा.
सामाजिक और आर्थिक नज़रिए से कमजोर तबकों की शिक्षा पर विशेष ज़ोर दिया जाएगा.
नई शिक्षा नीति में कक्षा छह से वोकेशनल कोर्स शुरू करने की बात कहीं गई है. संगीत और कला जैसे विषयों बढ़ावा देने की बात भी नई शिक्षा नीति में कही गई है.
उच्च शिक्षा को लेकर भी नई शिक्षा नीति में कई अहम निर्णय लिए गए हैं. वर्ष 2035 तक उच्च शिक्षा में पंजीकरण 50 प्रतिशत पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है. इसके लिए 3.5 करोड़ नई सीटें जोड़ी जाएंगी.
मेडिकल और कानून को छोड़ कर सभी क्षेत्रों के लिए एक सिंगल रेगुलेटरी निकाय के तौर पर भारत उच्च शिक्षा आयोग (एचईसीआई) का गठन किया जाएगा.
उच्च शिक्षा में मल्टीपल एंट्री और एग्जिट सिस्टम लागू किया जाएगा. इसके तहत किसी कोर्स को पूरा न कर पाने की स्थिति में एक साल के बाद सर्टिफिकेट और दो साल के बाद डिप्लोमा मिल जाएगा.
नई शिक्षा नीति में छात्रों को एक कोर्स बीच में छोड़कर दूसरे कोर्स मेंएडमिशन लेने की अनुमति भी होगी. इसके तहत इच्छुक छात्र-छात्रा पहले कोर्स से ब्रेक लेकर दूसरा कोर्स ज्वाइन कर सकते हैं. रिसर्च के इच्छुक विद्यार्थियों के लिए चार साल का डिग्री प्रोग्राम होगा.
रिसर्च में जाने के इच्छुक विद्यार्थी एक साल के एमए के साथ चार साल के डिग्री प्रोग्राम के बाद सीधे पीएचडी कर सकते हैं. ऐसे विद्यार्थियों को एम फिल करना अनिवार्य नहीं होगा.
उच्च शिक्षा के क्षेत्र में रिसर्च को बढ़ावा देने के लिए नेशनल रिसर्च फ़ाउंडेशन (एनआरएफफ) की स्थापना की जाएगी.
नई शिक्षा नीति में ई-पाठ्यक्रमों को क्षेत्रीय भाषाओं में विकसित करने की बात कही गई है. इसके लिए राष्ट्रीय शैक्षिक टेक्नोलॉजी फोरम (NETF) बनाने के साथ ही वर्चुअल लैब विकसित की जा रही है.
कोरोना महामारी को देखते हुए ऑनलाइन शिक्षा को बढ़ावा देने की बात भी नई शिक्षा नीति में कहीं गई है.
गौरतलब है कि पूर्व इसरो प्रमुख के कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में विशेषज्ञों की एक समिति ने नई शक्षा नीति तैयार की है.
इससे पहले सन 1986 में शिक्षा नीति लागू की गई थी. 1992 में इस नीति में कुछ संशोधन किए गए थे जिसके बाद अब नई शिक्षा नीति लाई गई है.
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