प्रमोशन में आरक्षण के खिलाफ प्रदेश भर के सामान्य और ओबीसी वर्ग के कर्मचारियों ने आर-पार की लड़ाई का ऐलान कर दिया है. आज देहरादून में हुई विशाल रैली के बाद कर्मचारियों ने अगले महीने, दो मार्च से प्रदेशभर में अनिश्चित कालीन हड़ताल की घोषणा की है.
‘उत्तराखंड जनरल ओबीसी इम्प्लाइज एसोसिएशन’ के बैनर तले 70 से अधिक सरकारी विभागों में कार्यरत हजारों की संख्या में कर्मचारी आज देहरादून के परेड ग्राउंड में जुटे और वहां से मुख्यमंत्री आवास कूच किया. मुख्यमंत्री आवास कूच करने से पहले आंदोलनकारी कर्मचारियों ने केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान का पुतला भी जलाया.
मुख्यमंत्री आवास कूच कर रहे कर्मचारियों को पुलिस ने हाथीबड़कला के पास बैरीकेड्स लगाकर रोक लिया. इस दौरान उनकी पुलिस के साथ नोक-झोंक भी हुई. पुलिस द्वारा रोके जाने पर कर्मचारियों ने सड़क पर ही धरना शुरू कर दिया.
इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने प्रमोशन पर लगी रोक हटाए जाने की मांग की और सरकार के खिलाफ खूब नारेबाजी की. आंदोलनकारी कर्मचारियों ने सरकार को चेतावनी दी कि यदि सरकार ने जल्द प्रमोशन पर लगी रोक न हटाई तो बड़ा आंदोलन किया जाएगा.
आंदोलनकारी कर्मचारियों ने आगामी दो मार्च से प्रदेशभर में अनिश्चितकालीन हड़ताल की घोषणा के साथ ही 26 फरवरी को मशाल रैली का आयोजन करने की घोषणा भी की.
आंदोलनकारी कर्मचारियों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद भी राज्य सरकार प्रमोशन से रोक नहीं हटा रही है जिसके चलते कर्मचारी बेहद खफा हैं.
कर्मचारियों ने प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को पत्र लिख कर प्रमोशन पर लगी रोक को तत्काल हटाने तथा नए आरक्षण रोस्टर में किसी भी तरह का बदलाव न करने की मांग की गई है. कर्मचारियों का कहना है कि यदि जल्द ही इन दोनों मांगों पर अमल नहीं किया गया तो उन्हें बड़े आंदोलन के लिए मजबूर होना पड़ेगा.
पदोन्नति में आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बीती सात फरवरी को बेहद अहम फैसला सुनाया था. सुप्रीम कोर्टे ने कहा कि राज्य सरकारें प्रमोशन में आरक्षण लागू करने के लिए बाध्य नहीं हैं.
जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस हेमंत गुप्ता की पीठ ने कहा कि प्रमोशन में आरक्षण न नागरिकों का मौलिक अधिकार नहीं है और इसके लिए राज्य सरकारों को बाध्य नहीं किया जा सकता. कोर्ट ने कहा कि प्रमोशन में आरक्षण लागू करना या न करना राज्य सरकारों के विवेक पर निर्भर करता है.
सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश उत्तराखंड हाईकोर्ट के 15 नवंबर 2019 के उस फैसले पर आया, जिसमें हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को सेवा कानून, 1994 की धारा 3(7) के तहत एससी-एसटी कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण देने के लिए कहा था.
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