जानिए कौन हैं रैट माइनर्स? जो उत्तरकाशी हादसे में बने देवदूत..
उत्तराखंड: उत्तरकाशी के सिलक्यारा में टनल में फंसे मजदूरों को बाहर निकालने में आज 16 दिन के संघर्ष के बाद कामयाबी हाथ लगी है। जल्द ही रैंप तैयार होने के बाद मजदूरों को सुरंग से बाहर निकाल लिया जाएगा। इन्हें निकालने में रैट माइनर्स ने अहम भूमिका निभाई है। ऑगर मशीन के खराब होने के बाद रैट माइनर्स ने मजदूरों को सुंरग खोदकर बाहर निकालने में बेहद ही अहम भूमिका निभाई है। रैट माइनर्स का नाम सुनकर आपके दिमाग में एक ही सवाल आ रहा होगा कि ये कौन हैं और कैसे काम करते हैं ? रैट शब्द यानी चूहा इनके नाम से ही इनके काम का अंदाजा लगाया जा सकता है। रैट माइनर्स चूहे की तरह कम जगह में तेज खुदाई करने वाले विशेषज्ञ हैं। रैट माइनर्स सुंरग के अंदर खुदाई करते हैं।
छोटी जगह में खुदाई के लिए रैट माईनर्स माने जाते हैं बेस्ट..
आपको बता दें कि रैट माईनर्स को छोटी जगहों पर खुदाई के लिए बेस्ट माना जाता है। जिन जगहों पर मशीन से खुदाई करना संभव नहीं होता है उन जगहों पर रैट माईनर्स को भेजा जाता है। इस तकनीक में मजदूर हाथ से धीरे-धीरे खुदाई करते हैं।ज्यादातर रैट माइनिंक तकनीक का इस्तेमाल अवैध कोयला खदान के लिए किया जाता है। प्रशासन की नजर मशीनों और अन्य उपकरणों की मौजूदगी पर आसानी से पड़ सकती है। इसलिए चोरी-छिपे इंसानों से कोयले की छोटी-छोटी खदानों में रैट माइनिंग कराई जाती है।
उत्तरकाशी में रैट माइनर्स 41 मजदूरों को बाहर निकालने में देवदूत बनकर सामने आए। रैट माइनर्स की छह सदस्यीय टीम उत्तरकाशी पहुंची। टीम में से सबसे पहले दो लोग पाइपलाइन के अंदर गए। इन दोनों में से एक ने आगे का रास्ता बनाया जबकि दूसरा मलबे को ट्रॉली में भर रहा था। बाकी बाहर खड़े चार लोग पाइप के अंदर से मलबे वाली ट्रॉली को रस्सी के सहारे बाहर की तरफ खींचकर मलबा बाहर निकाल रहे थे। एक बार में छह से सात किलो मलबा बाहर निकाला गया।
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