कोरोना काल में बेपर्दा हो चुकी प्रदेश की लचर स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर एक और चिंताजनक खुलासा हुआ है.
देहरादून स्थित ‘सोशल डेवलपमेंट फॉर कम्युनिटीज डेवपलमेंट’ (एसडीसी फाउंडेशन) द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट, ‘स्टेट ऑफ़ स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स इन उत्तराखंड-2021’ में खुलासा हुआ है कि प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में स्पेशलिस्ट चिकित्सकों के 57 फीसदी के करीब पद खाली हैं.
एसडीसी फाउंडेशन ने यह रिपोर्ट ‘सूचना का अधिकार अधिनियम 2005’ (आरटीआई) के जरिए प्राप्त जानकारी के आधार पर जारी की है.
रिपोर्ट बताती है कि प्रदेश के 13 जिलों में कोविड-19 संक्रमण के बीच कुल 15 अलग- अलग स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की श्रेणी मे जरूरत के मात्र 43 प्रतिशत स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की सेवाएं ही उपलब्ध हैं.
रिपोर्ट बताती है कि टिहरी, चमोली और पौड़ी जैसे पहाड़ी जिलों में स्वीकृत पदों की तुलना मे सबसे कम स्पेशलिस्ट डॉक्टर कार्यरत हैं.
एसडीसी फाउंडेशन के मुताबिक राज्य के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग द्वारा उपलब्ध किये गए डेटा के अनुसार राज्य में स्पेशलिस्ट डॉक्टरों के कुल 1147 स्वीकृत पदों में से मात्र 493 ही कार्यरत हैं और 654 पद खाली हैं.
30 अप्रैल, 2021 तक के आंकड़ों पर मिली इस आरटीआी के आधार पर एसडीसी फाउंडेशन ने ‘स्टेट ऑफ़ स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स इन उत्तराखंड-2021’ विषय पर एक अध्ययन रिपोर्ट तैयार की है.
इस रिपोर्ट के पहले हिस्से (पार्ट-1) में टिहरी जिले की स्थिति बताई गई है.
रिपोर्ट के मुताबिक टिहरी जिले मे 98 स्पेशलिस्ट डॉक्टर के स्वीकृत पदों पर सिर्फ 13 ही चिकित्सक तैनात हैं. जिले में स्पेशलिस्ट डॉक्टर के 85 पद (87 प्रतिशत) पद खाली हैं.
जिले में एक भी सर्जन, ईएनटी, फॉरेंसिक, स्किन, माइक्रोबायोलॉजी और मनोरोग विशेषज्ञ नहीं है.
जिले में बालरोग विशेषज्ञ, फिजिशियन और जन स्वास्थ्य विशेषज्ञ के केवल एक-एक पद पर नियुक्ति हुई हैं, जबकि स्वीकृत पदों की संख्या क्रमशः 14, 15 और 12 है.
इसके अलावा, जिले में 15 स्वीकृत पदों में से केवल दो स्त्री रोग विशेषज्ञ हैं.
प्रदेशभर की बात करें तो देहरादून जिले में सबसे ज्यादा 92 प्रतिशत स्पेशलिस्ट डॉक्टर उपलब्ध हैं. उपलब्धता के मामले में 63 प्रतिशत डॉक्टरों के साथ रुद्रप्रयाग दूसरे स्थान पर है.
टिहरी, चमोली और पौड़ी जिले में स्वीकृत पदों की तुलना मे क्रमश 13%, 27% और 28% स्पेशलिस्ट डॉक्टर ही हैं.

एसडीसी फाउंडेशन द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में फोरेंसिक स्पेशलिस्ट के कुल स्वीकृत 25 पदों में से केवल एक फोरेंसिक स्पेशलिस्ट ही कार्यरत हैं.
स्किन डिजीज के 38 और साइक्रेटिस्ट के 28 पद स्वीकृत होने के बावजूद इन दोनों पदों पर केवल चार-चार स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की ही नियुक्ति की गई है.
ऐसे वक्त में जबकि कोविड-19 तीसरी लहर का खतरा मंडरा रहा है, उत्तराखंड में जन स्वास्थ्य विशेषज्ञ मात्र 14 प्रतिशत और बाल रोग विशेषज्ञ केवल 41 प्रतिशत हैं. स्त्री रोग विशेषज्ञ केवल 36 प्रतिशत हैं.
एसडीसी फाउंडेशन के संस्थापक अनूप नौटियाल का कहना है, ‘यह कमी बेहद चिंताजनक है, खासकर ऐसे समय में जबकि हम महामारी के दौर से गुजर रहे हैं.’
अनूप नौटियाल ने राज्य सरकार से मांग की है कि जल्द से जल्द विशेषज्ञ डॉक्टरों के खाली पदों पर नियुक्तियां की जाए.
उन्होंने कहा, ‘स्वास्थ्य सुविधाओं की उचित व्यवस्था न होने से कोविड-19 के दौर में किए जाने वाले हमारे प्रयास बेअसर साबित हो सकते हैं. इन स्थितियों का ग्रामीण और पहाड़ी क्षेत्रों पर अधिक असर पड़ता है, जिसे अनदेखा किया जाता है.’
अनूप नौटियाल ने उम्मीद जताई कि यह अध्ययन राज्य सरकार को स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में निर्णय लेते समय मदद करेगा.
उन्होंने कहा कि कुछ दिन पहले कई विधायकों ने प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर धन सिंह रावत से मिल कर राज्य में विशेषज्ञ डॉक्टरों की तैनाती का मुद्दा उठाया था.
नौटियाल ने कहा कि इससे पहले वर्ष 2018 में नीति आयोग की एक रिपोर्ट में विशेषज्ञ डॉक्टरों की नियुक्ति के मामले में भी उत्तराखंड को तीन सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले राज्यों की श्रेणी में रखा गया था.
उन्होंने कहा कि सरकार को इस पर ध्यान देने की जरूरत है.

एसडीसी फाउंडेशन की अध्ययन टीम के सदस्य और शोधकर्ता विदुष पांडे का कहना है कि राज्य के जिला अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टरों के लगभग 60 प्रतिशत पद खाली हैं.
उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री को इस तरफ तुरंत ध्यान देने की जरूरत है.
उन्होंने कहा, ‘पर्याप्त स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की नियुक्ति से न सिर्फ हमें कोविड-19 के संक्रमण जैसे कठिन वक्त से निपटने में मदद मिलेगी, बल्कि इससे हमारी स्वास्थ्य प्रणाली भी मजबूत होगी। खासकर ग्रामीण और पर्वतीय क्षेत्रों को इससे लाभ मिलेगा.’
एसडीसी फाउंडेशन के रिसर्च एंड कम्युनिकेशंस हेड ऋषभ श्रीवास्तव ने कहा कि राज्य में स्त्री रोग विशेषज्ञों की केवल 36 प्रतिशत उपलब्धता दर्शाती है कि हालात बेहद खराब हैं और इसका सीधा प्रभाव महिलाओं के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है.
उन्होंने कहा कि नए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की नियुक्ति के बाद राज्य को पूर्णकालिक स्वास्थ्य मंत्री मिल चुके हैं जिसके बाद उम्मीद है कि सरकार प्रदेश में स्वास्थ व्यवस्थाओं की बेहरती की दिशा में महत्वपूर्ण निर्णय लेगी.
फाउंडेशन की रिपोर्ट के बाकी हिस्सों को आने वाले कुछ हफ्तों में साझा किया जाएगा.
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