चौधरी पुष्पेन्द्र सिंह
एक फरवरी को वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के दूसरे बजट को संसद में पेश किया. वर्ष 2020 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य को लेकर गांव, कृषि और किसानों के लिए वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में 16 सूत्रीय योजनाओं की घोषणा की.
परंतु बजट का अर्थ केवल बड़ी-बड़ी घोषणाएं करना नहीं होता बल्कि घोषणाओं के पीछे किये धनराशि आवंटन का आंकलन ही बजट का असली विश्लेषण होता है.
वर्ष 2019-20 का देश का कुल बजट लगभग 27.86 लाख करोड़ रुपये था, परन्तु संशोधित अनुमान के अनुसार केवल 26.98 लाख करोड़ रुपये ही इस वित्त वर्ष में खर्च किये जायेंगे.
लगभग नौ प्रतिशत बढ़ोतरी के साथ वर्ष 2020-21 का कुल बजट लगभग 30.42 लाख करोड़ रुपये है. इस बजट में ग्रामीण भारत को क्या मिला और इससे किसानों की आय दोगुनी करने में कितनी मदद मिलेगी इसका विश्लेषण करते हैं.
वर्ष 2019-20 में कृषि मंत्रालय का बजट 138,564 करोड़ रुपये था, परन्तु इसे संशोधित बजट में कम करके 109,750 करोड़ रुपये कर दिया गया. इसका मुख्य कारण यह रहा कि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान) के तहत 75,000 करोड़ रुपये के बजट में से केवल 54,370 करोड़ रुपये ही खर्च किये गए.
इसका कारण पात्र किसानों का धीमी गति से सत्यापन होना बताया गया है. अब तक इस योजना में कुल लक्षित लगभग 14.5 करोड़ किसानों में से केवल 9.5 करोड़ किसानों का ही पंजीकरण हुआ है. इनमें से अभी तक केवल 7.5 करोड़ किसानों का ही सत्यापन हो पाया है.
बंगाल जैसे कुछ राज्यों ने राजनीतिक कारणों से अभी तक अपने एक भी किसान का पंजीकरण इस योजना में नहीं करवाया है, जो वहां के किसानों के साथ एक अन्याय है. परंतु खेती की बढ़ती लागत को देखते हुए इस वर्ष के बजट में इस योजना के अंतर्गत दी जाने वाली राशि को 6,000 रुपये से बढ़ाकर 24,000 रुपये प्रति किसान प्रति वर्ष किया जाना चाहिए था.
भविष्य में भी इस योजना की राशि को महंगाई दर के सापेक्ष प्रत्येक वर्ष बढ़ाना चाहिए.
प्रत्येक किसान को 24,000 रुपये मिलने से ग्रामीण क्षेत्रों में तुरंत क्रय-शक्ति बढ़ती, खर्च बढ़ने से मांग बढ़ती और अर्थव्यवस्था की गाड़ी तेजी से आगे बढ़ जाती. परंतु अफसोस है कि सरकार ने इस महत्वपूर्ण योजना का बजट इस वर्ष की तरह अगले वित्त वर्ष में भी 75,000 करोड़ रुपये ही रखा है.
आशा है कि सरकार अगले वर्ष के लिए आवंटित इस सारी धनराशि को खर्च करेगी.
पिछले साल सरकार द्वारा घरेलू कंपनियों की आयकर की दर को 30 प्रतिशत से घटाकर 22 प्रतिशत करने से सरकार पर लगभग 1.5 लाख करोड़ रुपये का बोझ पड़ा था. सरकार को आशा थी कि आयकर कम करने से कम्पनियां निवेश बढाएंगी परंतु ऐसा नहीं हुआ.
मांग के अभाव में जब अधिकांश उद्योग अपनी पूरी क्षमता पर उत्पादन ना कर रहे हों तो नए उद्योगों में निवेश का कोई सवाल ही नहीं उठता. ग्रामीण क्षेत्रों में पैसा उपलब्ध कराने से मांग बढ़ती तो औद्योगिक उत्पादन भी बढ़ता और नये निवेश की संभावना भी बढ़ती.
आशा है सरकार बजट पारित करते समय इस बिंदु पर गौर अवश्य करेगी और पीएम- किसान योजना का बजट आवंटन बढ़ाएगी.
वर्ष 2020-21 के लिए कृषि मंत्रालय का बजट मामूली सा बढ़ाकर 142,762 करोड़ रुपये कर दिया गया है. आशा है कि सरकार इस वर्ष इस बजट को पूरा खर्च करेगी.
इस वर्ष कृषि मंत्रालय के अंतर्गत कृषि अनुसंधान एव शिक्षा विभाग का बजट 8,362 करोड़ रुपये है. कृषि अनुसंधान और विस्तार पर हम बहुत कम खर्च कर रहे हैं.
भविष्य में पर्यावरण बदलाव और बढ़ते तापमान से होने वाले फसलों के नुकसान से बचने, बढ़ती आबादी के लिए भोजन उपलब्ध कराने, कृषि उत्पादकता बढ़ाने, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने और किसानों की आय बढ़ाने के लिए कृषि अनुसंधान के बजट में भारी वृद्धि करने की आवश्यकता है.
वर्ष 2020-21 में कृषि ऋण का लक्ष्य 15 लाख करोड़ रुपये रखा गया है, तथा पीएम- किसान के अंतर्गत पात्र किसानों को भी किसान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से कृषि ऋण उपलब्ध होगा, जो स्वागत योग्य कदम है.
ग्रामीण विकास मंत्रालय का बजट 122,398 करोड़ रुपये है। इसमें ग्रामीण रोजगार उपलब्ध कराने की मनरेगा योजना के लिए 61,500 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है, जबकि इस योजना में इस वर्ष 71,000 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं.
इस योजना में होने वाले अपव्यय को रोकने के लिए इसको खेती किसानी से जोड़ने की आवश्यकता है ताकि किसानों की कृषि-श्रम लागत कम हो और इस योजना में गैर उत्पादक कार्यों में होने वाली धन की बर्बादी को रोका जा सके.
इस मंत्रालय के अंतर्गत पीएम ग्राम सड़क योजना का बजट 19,500 करोड़ रुपये, तो प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) का बजट भी 19,500 करोड़ रुपये ही प्रस्तावित है.
ग्रामीण भारत के लिए ये दोनों योजनाएं अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, अतः इनके बजट को बढ़ाने की आवश्यकता है.
रसायन और उर्वरक मंत्रालय द्वारा कृषि में इस्तेमाल होने वाले रासायनिक उर्वरकों के लिए दी जाने वाली सब्सिडी को पिछले वर्ष के 80,035 करोड़ से घटाकर 71,345 करोड़ रुपये कर दिया गया है.
इसके पीछे जीरो बजट खेती, जैविक खेती और परंपरागत कृषि को प्रोत्साहन देने की सोच है. यूरिया खाद पर अत्यधिक सब्सिडी के कारण इस खाद का जरूरत से ज्यादा प्रयोग हो रहा है जिससे जमीन और पर्यावरण दोनों का क्षरण हो रहा है.
इस विषय में नीति निर्धारकों का विचार है कि आने वाले समय में खाद सब्सिडी को भी सीधे पीएम-किसान योजना की तरह किसानों के खातों में नकद प्रति एकड़ के हिसाब से भेजा जाए तो खाद सब्सिडी में भारी बचत भी होगी और खाद का अत्यधिक मात्रा में दुरुपयोग भी नहीं होगा.
मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय का बजट 3,737 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 4,114 करोड़ रुपये कर दिया गया है. पशुपालन और दुग्ध उत्पादन कृषि का अभिन्न अंग है और कृषि जीडीपी में इसकी लगभग 30 प्रतिशत हिस्सेदारी है.
मत्स्य उत्पादन और दुग्ध प्रसंस्करण के लिए घोषित महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को देखते हुए यह बहुत कम आवंटन है. इस मंत्रालय का बजट कृषि बजट का कम से कम 30 प्रतिशत यानी लगभग 40,000 करोड़ रुपये होना चाहिए.
ग्रामीण क्षेत्र में अमूल, इफको जैसी किसानों की अपनी सहकारी संस्थाएं काम कर रही हैं. पिछले साल सरकार ने घरेलू कंपनियों के आयकर की दर को 30 प्रतिशत से घटाकर 22 प्रतिशत कर दिया था, परन्तु इन सहकारी संस्थाओं पर आयकर पहले की तरह 30 प्रतिशत की दर से ही लग रहा था.
इस विसंगति को इस बजट में दूर कर दिया गया है जो स्वागत योग्य है. परन्तु वर्ष 2005-06 तक इन सहकारी संस्थाओं पर कंपनियों के मुकाबले पांच प्रतिशत कम दर से आयकर लगता था. आशा है अगले बजट में इसे 2005-06 से पहले वाली व्यवस्था के अनुरूप यानी 17 प्रतिशत कर दिया जायेगा.
किसानों और ग्रामीण भारत से सरोकार रखने वाले कृषि मंत्रालय, ग्रामीण विकास मंत्रालय, रसायन और उर्वरक मंत्रालय के उर्वरक विभाग तथा मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय का पिछले वित्तीय वर्ष का संयुक्त कुल बजट लगभग 342,000 करोड़ रुपये था जो सम्पूर्ण बजट का लगभग 12 प्रतिशत था.
इस वर्ष उपरोक्त मंत्रालयों का कुल बजट 340,600 करोड़ रुपये है जो सम्पूर्ण बजट का मात्र 11 प्रतिशत है.
इस बार के संपूर्ण बजट में की गई बढ़ोतरी की तरह ग्रामीण भारत के बजट में भी यदि नौ प्रतिशत की बढ़ोतरी की जाती तो यह 371,000 करोड़ रुपये होता. अर्थात बड़ी-बड़ी घोषणाओं के बावजूद ग्रामीण भारत के बजट में वास्तव में कटौती कर दी गई है.
ग्रामीण भारत में बसने वाली 70 प्रतिशत आबादी के लिए केवल 11 प्रतिशत बजट कितना उपयुक्त है, और क्या सरकार इतनी कम धनराशि आवंटन से वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी कर पाएगी, यह चिंतन का विषय है.
(लेखक किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष हैं)
Discussion about this post