भारत सांस्कृतिक विविधताओं से भरा देश है, यहां के हर प्रदेश की अपनी एक सांस्कृतिक विशिष्टता है.
उत्तराखंड की भी गीत-संगीत,बोली-भाषा से लेकर खान-पान के लिहाज़ से अलग पहचान है.तो वहीं अब राज्य के उत्पादों को अंतर्राष्ट्रीय पटल पर पहचान मिलने जा रही है.
दरअसल राज्य के सात उत्पादों को जीआई यानि ज्योग्राफिकल इंडिकेशन टैग मिला है.
सचिवालय में कुमांऊ च्यूरा ऑयल, मुनस्यारी राजमा, उत्तराखण्ड का भोटिया दन, उत्तराखण्ड ऐंपण, उत्तराखण्ड रिंगाल क्राफ्ट, उत्तराखण्ड ताम्र उत्पाद और उत्तराखण्ड थुलमा को जीआई प्रमाण पत्र वितरित किए गए.
बता दें कि जीआई यानि ज्योग्राफिकल इंडिकेशन किसी उत्पाद की भौगोलिक और सांस्कृतिक पहचान होता है.
सांस्कृतिक रूप से किसी उत्पाद विशेष को जीआई टैग मिलने का अर्थ है कि कोई दूसरा राज्य की सांस्कृतिक संपदा बताने का दावा नहीं कर सकता.
भारत में वाणिज्य मंत्रालय का इंडस्ट्री प्रमोशन एंड इंटरनल ट्रेड विभाग राज्यों को जीआई टैग जारी करता है.
पहला जीआई टैग साल 2004 में दार्जिलिंग चाय को मिला था.कड़कनाथ मुर्गे को मिलाकर भारत में अभी तक 272 वस्तुओं को जीआई टैग मिल चुका है.
तो वहीं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर WIPO यानि विश्व बौद्धिक संपदा संगठन विभिन्न देशों को जीआई टैग जारी करता है. भारत को अब तक 365 जीआई टैग मिल चुके हैं.
जर्मनी के पास सबसे ज्यादा जीआई टैग हैं उसने 9,499 वस्तुओं के लिए इस टैग को हासिल किया है.
गौरतलब है कि इन सात उत्पादों के अलावा उत्तराखण्ड लाल चावल, बेरीनाग चाय, उत्तराखण्ड गहत, उत्तराखण्ड मण्डुआ, उत्तराखण्ड झंगोरा, उत्तराखण्ड बुरांस सरबत, उत्तराखण्ड काला भट्ट,
उत्तराखण्ड चौलाई/रामदाना, अल्मोड़ा लाखोरी मिर्च, उत्तराखण्ड पहाड़ी तोर दाल, उत्तराखण्ड माल्टा फ्रूट जैसे 11 उत्पादों के लिए भी GI टैग का दावा किया गया है.जिन्हें जल्द ही मंजूरी मिल सकती है.
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