उत्तराखंड की अस्थाई राजधानी देहरादून में स्थित राज्य की विधानसभा, मुख्यमंत्री के सराकारी आवास और सबसे बड़े प्रशासनिक दफ्तर यानी सचिवालय से लगभग 15-20 किलोमीटर दूर मालदेवता इलाके के दर्जनभर गांव ऐसे हैं, जिनके लिए बरसात का सीजन कालापानी की सजा की तरह है.
इस इलाके में बहने वाली सौंग नदी बरसात के मौसम में इस कदर उफान पर होती है कि इस इलाके को देहरादून शहर से जोड़ने वाली सड़क के बड़े हिस्से को बहा ले जाती है.
सड़क के बह जाने से लोगों के सामने आवाजाही का भीषण संकट खड़ा हो जाता है और उन्हें नदी के आर-पास पहुंचने के लिए कई किलोमीटर पैदल सफर तय करना पड़ता है.
इसके अलवा नदी पर बनाई गई एक ट्राली ही तीन-चार महीने तक इनकी आवा-जाही का जरिया होती है.
इस पूरे इलाके में लगभग दस हजार की आबादी रहती है. एक अदद सड़क न होने के चलते ये पूरी आबादी हर साल तीन-चार महीने तक लाचार और बेबस होने को मजबूर रहती है.
आजादी के सात दशक बीतने के बाद भी इतनी बड़ी आबादी के लिए एक पक्की सड़क नहीं बन पाई है, यह अपने आप में हुक्मरानों की ‘असलियत’ उजागर करने के लिए लिए पर्याप्त है.
पृथक उत्तराखंड राज्य बनने के बाद इस क्षेत्र के लोगों के मन में उम्मीद जगी कि अपना राज्य बन जाने के बाद तो उनके दिन जरूर बहुर जाएंगे. मगर उनकी उम्मीदें राज्य बनने के बीस बरस बीतने के बाद भी पूरी नहीं हो पाई है.
इलाके के लोगों का कहना है कि चुनाव के बाद राजनेता इस इलाके की तरफ देखते तक नहीं हैं.
कहते हैं कि जिस जगह सत्ता का केंद्र होता है उसके चारों ओर विकास स्वाभाविक रूप से पहुंत जाता है, मगर प्रदेश की सत्ता के केंद्र के इतने नजदीक होने के बाद भी यह इलाका एक अदद सड़क के न होने की इतनी बड़ी सजा भुगत रहा है.
अंदाजा लगाइए, जब राज्य की विधानसभा, मुख्यमंत्री के सराकारी आवास और सबसे बड़े प्रशासनिक दफ्तर यानी सचिवालय के इतने नजदीक स्थित क्षेत्र की यह हकीकत है तो प्रदेश के दूरस्थ इलाकों की क्या स्थिति होगी ?
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