उत्तराखंड में सरकार जो तस्वीर दिखा रही है उसमें झोल है. चार साल पूरे होने जा रहे हैं लेकिन सरकार सिर्फ जुमलों पर अटकी लटकी नजर आ रही है.
राजधानी की सड़कों और पहाड़ी मोड़ों पर खड़े होर्डिगों, अखबारी पन्नों और न्यूज पोर्टलों के मत्थे के अलावा सरकार कहीं असरकार नजर नहीं आती.
सुशासन, अनुशासन, खुशहाली और नए प्रभात के सरकारी दावे व्यावहारिक धरातल पर कहीं नहीं टिकते. काबिलियत, अनुभव, वरिष्ठता, ईमानदारी, निष्ठा के कोई मायने न नौकरशाही में हैं और न सियासत में .
चंद नौकरशाहों को सरकार का ‘फ्री हैंड’ है. पूरा सिस्टम भी बस उन्हीं के इर्द गिर्द घूमता नजर आता है.
सरकार की योजनाओं में व्यवहारिकता नहीं है तो फैसलों में जनसहभागिता और गंभीर विमर्श कहीं नजर नहीं आता.
राजकाज में पारदर्शिता और दूरदर्शिता का आभाव साफ दिखाई देता है. नतीजतन सरकारी कामकाज और फैसलों में न्यायालय का दखल बढ़ा है.
दरअसल प्लानिंग से लेकर क्रियान्वयन तक सब कुछ हवा हवाई है, सरकार का न फीड बैक सिस्टम है और न डिलीवरी सिस्टम. सरकारी योजनाएं बनते के साथ ही या तो औंधे मुंह गिर जाती हैं या घपले घोटालों की भेंट चढ़ जाती हैं.
पूरा सिस्टम चंद ऐसे अफसरों और सलाहकारों के भरोसे है, जिनकी या तो राज्य के प्रति निष्ठा पर सवाल हैं या राज्य को लेकर समझ ही बौनी है.
सही तो यह है कि कोई संतुष्ट नहीं है, न मंत्री, विधायक और कार्यकर्ता और न पब्लिक और अफसर. सरकार भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेंस आदि जुमले गढ़ती है तो जनता भी अंधेर नगरी चैपट राजा जैसे मुहावरे दोहरा रही है.
सियासत में एक बड़ा तबका इसे मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र की नाकामी प्रचारित करने में जुटा है, जबकि खोट त्रिवेंद्र में नहीं, उनके सिस्टम में है.
यह जो आप पढ़ रहे हैं वह किसी सर्वे रिपोर्ट का हिस्सा नहीं बल्कि सरकार की लोकप्रियता की ग्राउंड रिपोर्ट है.
किसी भी सरकार की लोकप्रियता का अंदाजा राज्य की खुशहाली, सुशासन और अनुशासन से ही लगाया जाता है. सरकारी तंत्र तक यह संदेश है या नहीं लेकिन हकीकत यह है कि पिछली सरकारों के मुकाबले भ्रष्टाचार में कमी के बावजूद तीनों ही मोर्चों पर सरकार नाकाम साबित रही है.
चलिए सबसे पहले बात खुशहाली की, क्योंकि खुशहाली का सीधा संबंध आम आदमी की तरक्की से है. सरकार जो भी दावे करे मगर हकीकत यह है कि खुशहाली आम आदमी से बहुत दूर है.
अभी तीन महीने पहले जारी हुई ‘इंडिया हैप्पीनेस रिपोर्ट 2020’ के अनुसार तो कुल 36 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की सूची में उत्तराखंड 35 वें पायेदन पर है .
गुरुग्राम स्थित प्रबंधन विकास संस्थान के प्रोफेसर डाक्टर राजेश पिलानिया द्वारा तैयार की गई इस रिपोर्ट में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को 6 मानकों पर रैंकिंग दी गई है, जिनमें आय और विकास के साथ ही शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के साथ ही सामाजिक मुददे और खुशहाली पर कोविड-19 के प्रभाव का आकलन भी किया गया.
इस रैंकिंग में पहले स्थान पर मिजोरम, दूसरे पर पंजाब और तीसरे पर अंडमान निकोबार हैं . निचले स्थानों में उत्तराखंड के बाद 36वें स्थान पर छत्तीसगढ़ बताया जा रहा है.
हालांकि सरकार के दावे इस रिपोर्ट को पूरी तरह खारिज करते हैं . सरकार के मुताबिक तो उत्तराखंड की औसत प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत से अधिक है.
यही नहीं, राज्य की प्रति व्यक्ति आय समृद्ध व सबसे बेहतरीन मॉडल माने जाने वाले गुजरात से भी अधिक है. यह सही है कि राज्य की प्रति व्यक्ति औसत आय बीस साल में पंद्रह हजार से बढ़कर सालना दो लाख तक पहुंच चुकी है.
तकरीबन साढ़े चौदह हजार करोड़ रुपये की अर्थव्यवस्था से शुरु हुआ राज्य लगभग ढाई लाख करोड़ की अर्थव्यवस्था वाला राज्य बन चुका है. मा़त्र चार हजार करोड़ का सालाना बजट पचास हजार करोड़ से उपर पहुंचने जा रहा है.
इस लिहाज से देखा जाए तो निसंदेह उत्तराखंड खुशहाल प्रदेश होना चाहिए. मगर सच्चाई यह है कि उत्तराखंड की खुशहाली हाथी दांत सरीखी है.
जितना हमारा सालाना बजट यानि सालाना खर्च है, तकरीबन उतना ही उत्तराखंड पर कर्जा है. किसी तरह खींचतान कर सरकार वेतन-भत्ते दे पा रही है.
असल में राज्य की औसत आय राष्ट्रीय औसत से अधिक जरुर है, मगर अमीरी और गरीबी का फासला बहुत गहरा है.
आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक आज भी राज्य में लगभग 64 फीसदी परिवार तो ऐसे हैं जो पांच हजार रुपये प्रति माह से भी कम पर गुजारा कर रहे हैं. राज्य के 21 फीसदी परिवारों की मासिक आमदनी दस हजार भी पूरी नहीं है, मात्र 14 फीसदी परिवार ही ऐसे हैं जिनकी मासिक आय दस हजार से अधिक है.
सरकार यह तस्वीर तो दिखाती है कि राज्य की प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत से अधिक है, मगर यह नहीं बताती कि राज्य पर महंगाई की मार और बेरोजगारी की दर भी राष्ट्रीय औसत से कहीं ज्यादा है.
महंगाई का राष्ट्रीय औसत तकरीबन साढ़े सात के आसपास है जबकि उत्तराखंड में महंगाई की मार आठ फीसदी के करीब है.
साफ है कि जो खुशहाली दिखाई देती है वह चंद लोगो के कब्जे में है, एक बडी आबादी तो इससे बहुत दूर है.
आर्थिक सर्वेक्षण के आंकड़ों पर ही यकीन करें तो वर्षों से चले आ रहे विकास के मॉडल पर भी सवाल खड़ा होता है.
बीते वर्षों में राज्य में विकास का जो मॉडल तैयार हुआ है वह सिर्फ राजनेताओं, नौकरशाहों , ठेकेदारों, माफिया और बिचैलियों के फायदे का है. उसमें आखिरी आदमी की तो चिंता ही नहीं है, आम आदमी भी हाशिए पर है.
दुर्भाग्य देखिए, खुशहाली का दावा करने वाली सरकारें बीस साल बाद भी पलायन का रोना रोती हैं . विडंबना यह है कि पलायन रोकने के लिए पलायन आयोग गठित किया जाता है और विकास योजनाएं राजनेताओं और नौकरशाहों के फायदे की बनाई जाती हैं.
ऐसा नहीं है कि सरकार को यह नहीं पता कि पलायन का बड़ा कारण निर्धनता और बेराजगारी यानी खुशहाली का न होना ही है.
सरकार को पता है कि राज्य की कुल आबादी का 24 फीसदी पलायन हुआ है जिसमें 41 फीसदी पलायन निर्धनता और 16 फीसदी बेरोजगारी के कारण है.
सच यह है कि उत्तराखंड इतना खुशहाल नहीं है जहां से निर्धनता और बेरोजगारी के कारण पलायन रुक पाए.
काश, सरकार भी इस सच को स्वीकार करती तो बहुत संभव है कि कोरोनोकाल में घर वापस लौटे लोग जनजीवन पटरी पर आते ही वापस नहीं लौटते.
यहां बता दें कि कोरोनाकाल के वक्त अपने घरों को लौटे युवा वापस काम पर लौटने लगे हैं. सरकार की उन्हें अपने गांवों में रोकने की तमाम योजनांए, घोषणाएं नाकाम साबित हुई हैं.
सरकार और सियासतदां हैं कि किसी भी हाल में मानने को तैयार ही नहीं हैं कि दिशा गलत है.
मौजूदा सरकार का यह दावा है कि वह अप्रैल 2017 से सिंतंबर 2020 तक विभिन्न विभागों में सात लाख 12 हजार लोगों को रोजगार उपलब्ध करा चुकी है.
सरकार के तो यह नारे चल रहे हैं, ‘बीत गई बेरोजगारी की रात, हुआ रोजगार का प्रभात’ जबकि ह्यूमन डेवलपमेंट रिपोर्ट के मुताबित तकरीबन साढ़े स़़त्रह फीसदी शिक्षित युवा बेरोजगार हैं.
तकरीबन साढ़े सात लाख युवा रोजगार कार्यालयों में पंजीकृत हैं. यही नहीं स्वरोजगार अपनाने वाले युवाओं की संख्या में भी कमी आई है.
सरकार को समझना ही होगा कि खुशहाली सिर्फ दावों या प्रचार से नहीं आती. खुशहाली आती है रोजगार से आर्थिक तरक्की से.
कम से कम उत्तराखंड में तो रोजगार के अवसर तभी संभव हैं जब कृषि, उद्योग, और पर्यटन का विकास व विस्तार हो. इसके लिए जरूरी यह है कि नीति से पहले सरकार की नीयत साफ हो.
यह भी पढ़ें : हाशिए पर जनसरोकार, कटघरे में ‘ताकतवर’ सरकार
Discussion about this post