ये कहानी है उत्तराखंड के चमोली जिले के कर्णप्रयाग विकासखंड के सकंड गांव की, जो आजादी के सात दशक बीतने के बाद भी एक अदद सड़क का इंतजार कर रहा है.
सड़क न होने की मार इस गांव पर इस कदर पड़ी है कि कभी पूरी तरह आबाद रहने वाले इस गांव में अब महज 16 परिवार ही रह गए हैं.
इलाज के अभाव में इस गांव के आधा दर्जन से अधिक लोगों की अस्पताल पहुंचने से पहले ही रास्ते में मौत हो चुकी है.
गांव में चारों तरफ निराशा ही निराशा पसरी है. अपनी उपेक्षा से इस गांव के लोग इस कदर आहत है कि सरकार से इच्छामृत्यु की मांग कर रहे हैं.
ग्रामीणों को अपने स्थानीय बाजार गौचर और कर्णप्रयाग आने के लिए सड़क तक पहुंचने के लिए करीब 10 किलोमीटर का पैदल सफर करना पड़ता है.
गांव तक पहुंचने का पैदल मार्ग बेहद कष्टकारी है. उत्तराखंड के तमाम दूसरे गांवों की तरह सकंड गांव की युवा पीढ़ी भी रोजगार और बेहतर भविष्य की उम्मीद में पलायन कर शहरों का रूख कर चुकी है.
पहाड़ के दूसरे गांवों की तरह सकंड गांव में भी बुनियादी सुविधाओं का भारी अभाव है.
गांव में जो लोग बच गए हैं उनमें बड़ी संख्या बुजुर्गों और महिलाओं की है. ग्रामीणों का कहना है कि उत्तराखंड राज्य बनने के बाद उन्हें उम्मीद जगी थी कि अब तो उनके गांव की तकदीर जरूर बदल जाएगी, मगर राज्य गठन के 19 साल बीतने के बाद भी उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं हैं.
ग्रामीणों का कहना है कि चुनाव के वक्त हर दल के नेता गांव आकर विकास के लंबे चौड़े वादे करते हैं, मगर चुनाव जीतने के बाद कोई भी जन प्रतिनिधि गांव की सुध लेने नहीं आता है.
गौचर नगर पालिका के पूर्व अध्यक्ष मुकेश नेगी कहते हैं कि आजादी के सात दशक बीतने के बाद भी उत्तराखंड के पर्वतीय अंचलों में लोग एक अदद सकड़ के मोहताज हैं, यह बेहद दुखद है.
वे कहते हैं कि सकंड गांव तक सड़क निर्माण के लिए जनप्रतिनिधियों से लेकर अधिकारियों से न जाने कितनी बार गुहार लगाई जा चुकी है, मगर अब तक कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही है. यही वजह है कि गांव से लगातार पलायन हो रहा है.
बहरहाल देखने वाली बात यह होगी कि रिवर्स पलायन के लंबे-चौड़े वादों और दावों के बीच सकंड गांव की एक अदद सड़क की मांग कब तक पूरी हो पाती है.
यह भी देखें : मुख्यमंत्री आवास से महज 15 किलोमीटर दूर, ‘कालापानी’ की सजा झेलते गांव
Discussion about this post