अवसाद
हो जा तू हो जा तू आज हो जा उठ खड़ा,
जाग जा तू जाग जा तू कब से है सोया पड़ा,
अवसाद की जंजीर ने तुझको है जकड़ा हुआ।
तोड़ दे जंजीर ये और शस्त्र तू अपने उठा
जीवन एक संघर्ष है और सफलता उसका लक्ष्य है,
शक्तियों को साथ ले तू जो कब से था भूला पड़ा।
हो जा तू हो जा तू…………
साध ले स्वयं को तू और जग को फिर से जीत ले,
जीत ले सम्मान फिर वो जो कब से था हारा हुआ।
ज़िंदगी की राह में आएगें ऐसे मोड़ भी,
भटकाएगें हालात भी और भरमाएगें कुछ लोग भी।
लेकिन क्या लोग ये और ये हालात क्या…?
बता सामने तेरे…है इनकी बिसात क्या…..?
पग –पग पर उलझने और फैसलों के द्वंद जब,
खड़े होते सामने तो,
इस पल उत्साह,अगले पल अवसाद तब ।
बंद कमरे में….. दिन हो या रात में,
घोर सन्नाटे के बीच…..!
तूफान सा…उठता है इस मस्तिष्क में,
ठहर सा गया हो वक्त जैसे….और फिर कुछ देर में..!
खुद से नाता टूट गया हो, खो गया हूं शून्य में।
और फिर कुछ देर में…!
फिर वो ही संघर्ष खुद से इस जगत की भीड़ में ।
लेकिन ये जगत तो सूक्ष्म है..,
अभाव या दबाव में इसके प्रभाव तो गौण है,
ब्रह्माण्ड है तेरे भीतर,ऊर्जा भी अपार है।
तू ही अपना शत्रु है और तू ही खुद का मित्र भी
मन के बंधन तोड़ दे,तोड़ दे जंजीर ये,
और शक्तियों को साथ ले,शस्त्र तू अपने उठा।
हो जा तू हो जा तू आज हो उठ खड़ा,
जाग जा तू जाग जा तू कब से है सोया पड़ा,
साध ले स्वयं को तू और जग को फिर से जीत ले,
जीत ले सम्मान फिर वो जो कब से था हारा हुआ।
-अंकित लखेड़ा
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