ढैंचा बीच घोटाले से जुड़े बयान के बाद कैबिनेट मंत्री डॉ.हरक सिंह रावत खासा सुर्खियों में बने हुए हैं.
उनके बयान से भाजपा और कांग्रेस समेत वे खुद विपक्षी दलों के निशाने पर आ गए हैं.
सीपीआई(माले) ने भाजपा-कांग्रेस समेत हरक सिंह रावत पर निशाना साधा है.
सीपीआई (माले) के गढ़वाल सचिव इन्द्रेश मैखुरी ने हरक सिंह रावत के आचरण को गलत और गैरकानूनी करार देते हुए उन्हें मंत्री पद से बर्खास्त करने और उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की मांग की है.
मैखुरी ने कहा कि हरक सिंह रावत के मुताबिक सरकार में रहते हुए उन्होंने दूसरे दल के भ्रष्टाचार के आरोपी को बचाने की कोशिश की, जिससे साफ होता है कि भाजपा-कांग्रेस में भ्रष्टाचार के आरोपियों को बचाने के लिए अलिखित समझौता है.
मैखुरी ने कहा कि बीते दिनों एक टीवी चैनल के साथ साक्षात्कार में उत्तराखंड के कैबिनेट मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत ने जो बातें कही,वे बेहद आपत्तिजनक और मंत्री के तौर पर ली गयी गोपनीयता की शपथ का खुला उल्लंघन हैं.
गौरतलब है कि जिस समय की बात हरक सिंह रावत कर रहे हैं, उस समय वे कांग्रेस की सरकार में मंत्री थे और त्रिवेंद्र रावत भाजपा में थे
प्रश्न यह है कि दूसरी पार्टी के भ्रष्टाचार के आरोपी व्यक्ति को वे क्यों बचाना चाह रहे थे ?
यह इस बात का सबूत है कि भाजपा-कांग्रेस में उत्तराखंड में भ्रष्टाचार और उसके आरोपियों को बचाने को लेकर अलिखित समझौता है.’
मैखुरी ने कहा कि हरक सिंह रावत के बयान का दूसरा हिस्सा ज्यादा आपत्तिजनक, विधि विरुद्ध और मंत्री के तौर पर उनके द्वारा ली गयी पद व गोपनीयता की शपथ का खुला उल्लंघन है.
मैखुरी ने कहा, ‘हरक सिंह रावत ने दो वरिष्ठ भाजपा नेताओं का नाम लेते हुए कहा कि दो पेज का नोट बनाने के बाद,उक्त दो नेताओं को उन्होंने दिखाया.
स्पष्ट तौर पर यह कृत्य गैरकानूनी है और मंत्री के रूप में ली गई गोपनीयता की शपथ का खुला उल्लंघन है.
गोपनीयता की शपथ के अंतर्गत यह निहित होता है कि मंत्री के रूप में किये गए किसी कार्य को सार्वजनिक नहीं किया जाएगा,न किसी ऐसे व्यक्ति से प्रकट किया जाएगा, जो उसके लिए अधिकृत न हो, लेकिन हरक सिंह रावत स्वयं अपने मुंह से स्वीकार कर रहे हैं कि उन्होंने दो ऐसे भाजपा नेताओं को फ़ाइल का नोट दिखाया, जिनको इसे दिखाना विधि विरुद्ध था,गैरकानूनी था.’
मैखुरी ने कहा कि मंत्री हरक सिंह रावत ने खुद इस बात को स्कीवीकार किया है लिहाजा उन्हें तत्काल मंत्री पद से बर्खास्त किया जाना चाहिए और उनके विरुद्ध गोपनीयता की शपथ भंग करने के लिए मुकदमा दर्ज करते हुए वैधानिक कार्यवाही अमल में लायी जानी चाहिए.
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