आज स्वामी विवेकानंद की जंयती है. आज का दिन राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है.
“उठो जागो और तब तक मतो रुको जब तक कि लक्ष्य को प्राप्त न कर लो”
ये स्वामी विवेकानंद का प्रसिद्ध वक्तव्य है, जिसे नेता सार्वजनिक मंचों पर खूब दोहराते हैं औऱ युवाओं को इसे ध्येयवाक्य बनाने की नसीहत देते हैं.
ये बात और है कि इन नेताओं ने ऐसा कोई काम नहीं किया. जिससे कि लक्ष्य प्राप्त करने की राह आसान हो सके.
अलबत्ता इनकी नीतियों का असर है कि युवाओं के लिए लक्ष्य प्राप्ति का सफर वक्त के साथ और लंबा होता चला जाता है.
उत्तराखंड की बात करें तो आलम ये है कि सूबे में हर साल करीब 8 लाख युवा बेरोजगारों की जमात में दर्ज हो जाते हैं.
इनमें से 1 फीसद को भी रोजगार नसीब न हो पाता.
इस साल अब तक आठ लाख में से केवल 1 हज़ार 398 युवाओं को रोजगार मिला है.जिस राज्य में युवा रोजगार के लिए भटक रहे हैं.युवा दिवस मनाना बेईमानी लगता है.
चुनाव से पहले युवाओं को रिझाने के लिए खूब घोषणाएं की जाती है,भर्ती निकाली जाती है.लेकिन लेटलतीफी,धांधली,कोर्ट-कचहरी के चंगुल में फंसकर रह जाती है.
और नौजवानों के बहुमुल्य साल बरबाद हो जाते हैं.यही हाल निजी क्षेत्र का भी है.
सूबे में रोजगार को बढ़वा देने के नाम पर इन्वेस्टर्स समिट जैसे मेगा इवेंट भी करवाए जाते हैं.
लेकिन धरातल तक नतीजा उम्मीदों के अनुरूप नहीं नजर आता.
आलम ये है कि उत्तराखंड में पिछले पांच साल में प्राइवेट सेक्टर में रोजगार के मौके 50 फीसदी तक घट गए हैं.
जो सेवायोजन विभाग हर साल औसतन 100 से 150 रोजगार मेले लगाया करता था, वही अब 50 रोजगार मेले भी नहीं लगा पा रहा है.
वर्ष 2016-17 में उत्तराखंड में 106, 2017-18 में 172, 2018-19 में 105, 2019-20 में महज 84 और 2020-21 में 46 रोजगार मेले लग सके.
आंकड़ों की बात करें तो पिछले पांच सालों में केवल 20 हज़ार 47 युवाओं को ही रोजगार मिल पाया.
जबकि, हर साल बेरोजगारों की संख्या सात लाख से ऊपर ही रही है.
सरकारें सेवायोजन विभाग की तरफ से रोजगार मेले करवाने पर खुद की पीठ थपथपाती तो हैं.
लेकिन ये पूरी कवायद कितनी असरदार रही इसकी समीक्षा शायद ही होती है.
2016-17 से लेकर अब तक ऐसा कोई साल नहीं रहा. जिसमें रोजगार मेलों के माध्यम से बेरोजगारों की संख्या के 1% को नौकरी मिली हो.
हकीकत बयां करते आंकड़े
वर्ष पंजीकृत बेरोजगार रोजगार मेले रोजगार मिला रोजगार %
2016-17 9,26,308 106 2773 0.29
2017-18 8,91,141 172 7489 0.84
2018-19 8,29,139 105 5678 0.68
2019-20 7,78,077 84 2709 0.34
2020-21 8,07,722 46 1398 0.17
ये आकंडे सरकारी दावों,भाषणबाज़ियों की पोल खोलने के लिए काफी हैं.
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