वरिष्ठ पत्रकार व उत्तराखण्ड के विभिन्न जनान्दोलनों में सक्रिय भागीदारी निभाने वाले पुरुषोत्तम असनोड़ा का बड़े गमगीन माहौल में वृहस्पतिवार (16 अप्रैल) को गैरसैंण के दुनारघाट पर अंतिम संस्कार किया गया.
बुधवार की शाम (15 अप्रैल) को ऋषिकेश एम्स में निधन उनका हो गया था. उन्हें गत 12 अप्रैल को ह्रदयाघात के बाद गैरसैंण से हैलीकॉप्टर से ऋषिकेश एम्स में भर्ती किया गया था, जहं उनके हृदय के दो वाल्व में ब्लाकेज पाया गया और उनकी सफल एन्जियोप्लास्टी भी हो गई थी.
उनके स्वास्थ्य में भी निरन्तर सुधार हो रहा था. वे 15 अप्रैल की दोपहर तक बिल्कुल ठीक थे और परिवार के लोगों के साथ बातचीत भी कर रहे थे.
डाक्टरों के बताए अनुसार उन्होंने दिन में अल्पाहार भी किया. पर शाम को लगभग चार बजे उन्हें एक बार फिर से हृदयघात हुआ और एम्स के आईसीयू में भर्ती पुरुषोत्तम असनोड़ा जी को डाक्टर लाख कोशिशों के बाद भी बचा नहीं सके.
उनके पार्थिव शरीर को 15 अप्रैल की देर शाम को गैरसैंण ले जाया गया. अगले दिन 16 अप्रैल को दुनारघाट में उनका अंतिम संस्कार किया गया. उनके पुत्र दीपक असनोड़ा ने उनके पार्थिव शरीर को मुखाग्नि दी.
गैरसैंण के रहने वाले असनोड़ा जी पिछले लगभग साढ़े चार दशक से पत्रकारिता से जुड़े थे और गैरसैंण जैसे चमोली जिले के दूरस्थ स्थान से नवभारत टाइम्स , अमर उजाला ( बरेल , देहरादून व मेरठ संस्करण ) उत्तर उजाला, युगवाणी, नैनीताल समाचार आदि कई पत्र-पत्रिकाओं से जुड़े रहे.
वर्तमान समय में वे श्रीनगर ( गढ़वाल ) से प्रकाशित मासिक पत्रिका ‘रीजनल रिपोर्टर’ का संपादन भी कर रहे थे. उत्तराखण्ड बनने से पहले उत्तर प्रदेश के समय उन्होंने गैरसैंण जैसी बेहद संशाधन विहीन जगह से पत्रकारिता कर अपनी एक अलग जगह बनाई थी.
अपनी पत्रकारिता के माध्यम से उन्होंने पहाड़ की पीड़ा को जो स्वर दिए, उसने उत्तराखण्ड आन्दोलन को खाद और पानी दिया. गैरसैंण को राजधानी के तौर पर देखने की उनकी अपनी एक मुहिम थी और वे गैरसैंण को लेकर बहुत ही संजीदा थे. असनोड़ा जी का मानना था कि जब तक राज्य की राजधानी गैरसैंण नहीं बनेगी, तब तक उत्तराखण्ड राज्य का सपना साकार रुप नहीं ले सकेगा.
वे गैरसैंण को राजधानी बनाने की मुहिम के एक आन्दोलनकारी के तौर पर भी हमेशा खड़े रहे. यही कारण है कि गैरसैंण को लेकर जितनी भी आन्दोलनात्नक गतिविधियां गैरसैंण और उसके बाहर उत्तराखण्ड में कहीं भी हुई, वे सभी घटनाएं उनके दिलोदिमाग में हमेशा रहती थीं. वे खड़े-खड़े गैरसैंण राजधानी आन्दोलन के घटनाक्रम को बता सकते थे.
पुरुषोत्तम असनोड़ा का जन्म अल्मोड़ा जिले के भिकियासैंण ब्लॉक के फयाटनौला गॉव में 29 नवम्बर 1955 को हुआ था. गत 29 नवम्बर 2019 को उन्होंने अपनी फेसबुक वॉल पर जीवन के 64 वर्ष पूरे होने की जानकारी दी थी.
उनकी मॉ का नाम यशोदा देवी असनोड़ा व पिता का नाम तारादत्त असनोड़ा था . उनका विवाह लीला से हुआ. उनके तीन पुत्रियॉ और एक पुत्र हैं. उनकी सबसे बड़ी बेटी गंगा असनोड़ा थपलियाल श्रीनगर ( गढ़वाल ) में रहती हैं और वरिष्ठ पत्रकार हैं.
गंगा श्रीनगर में रीजनल रिपोर्टर पत्रिका का सम्पादन व प्रबंधन का कार्य करती हैं. गंगा के बाद बेटी गीता, बेटा दीपक व फिर बेटी प्रियंका हैं. चारों बच्चों का विवाह हो चुका है. बेटे के दो बच्चे एक बेटा और एक बेटी हैं. बेटा दीपक ग्रामीण बैंक बाजपुर ( ऊधमसिंह नगर ) में कार्यरत है.
तीन भाईयों में पुरुषोत्तम असनोड़ा सबसे बड़े थे. उसके बाद उनके दो भाई लीलाधर और भोला दत्त असनोड़ा हैं. लीलाधर व पुष्पा असनोड़ा का बेटा हिमांशु असनोड़ा क्रिकेट का खिलाड़ी है और रणजी ट्राफी में खेल चुका है.
अपनी राजनैतिक विचारधारा के कारण पुरुषोत्तम असनोड़ा हमेशा जनचेतना की राजनीति के वाहक बने रहे. यही कारण था कि कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के कई स्थापित नेताओं से उनके व्यक्तिगत और पारिवारिक सम्बंध होने के बाद भी उन्होंने राजनीति के लिए इन दोनों पार्टियों को नहीं चुना.
वे चुनावी राजनीति कर के विधायक बनने की बजाय लोगों व उत्तराखण्ड की ज्वलंत समस्याओं के निराकरण के लिए जनचेतना की राजनीति के पक्षधर बने रहे. इसी वजह से वे पहले उत्तराखण्ड लोक वाहिनी और वर्तमान समय में उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी से जुड़े थे.
उन्होंने 1980 के दशक में उत्तराखण्ड के सबसे चर्चित ‘नशा नहीं, रोजगार दो’ आन्दोलन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया.
पुरुषोत्तम असनोड़ा के असामयिक निधन से उत्तराखण्ड का पत्रकार जगत ही नहीं, बल्कि जनपक्षधरता के हिमायती बेहद शोकाकुल हैं. उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी के अध्यक्ष पीसी तिवारी ने कहा, ‘विश्वास करना कठिन है. यकीन कैसे करें, कैसे नहीं! असनोड़ा हमारे उत्तराखण्ड संघर्ष वाहिनी के साथी, नशा नहीं रोजगार दो आन्दोलन में बेहद सक्रिय रहे. उनके व्यक्तितव, लेखनी का ही प्रताप है कि गैरसैंण आज गैरसैंण है. उत्तराखण्ड परिवर्तन अभियान से गैरसैंण में उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी की स्थापना और उसके विकास में उनका मार्गदर्शन और सहयोग हमारी ताकत रहा. असनोड़ा जी एक सामाजिक, राजनीतिक कार्यकर्ता और मुखर पत्रकार रहे. उनके निधन से उत्तराखण्ड ने जनसरोकारों का एक स्तम्भ खो दिया है. मेरा उनसे घनिष्ठ पारिवारिक सम्बंध रहा है.’
नैनीताल समाचार के संपादक व वरिष्ठ पत्रकार राजीव लोचन साह ने कहा, ‘यह बेहद तकलीफदेह है. मैं तो समझ रहा था कि वे जल्दी ही घर आ जायेंगे. क्या कहें ? उत्तराखण्ड के लिए उनका योगदान कभी नहीं भुलाया जा सकेगा.’
रामनगर के वरिष्ठ पत्रकार हरिमोहन ‘हरि’ ने कहा कि उनके निधन की खबर पाकर मैं नि:शब्द हूं. हल्द्वानी के वरिष्ठ पत्रकार हरीश पंत व उमेश तिवारी ‘विश्वास’ ने कहा कि असनोड़ा जी ने पहाड़ की पत्रकारिता को जो मुकाम दिया, वह हमेशा याद रखा जाएगा.
असनोड़ा जी का असामयिक निधन इन पंक्तियों के लेखक के लिए भी व्यक्तिगत क्षति की तरह है. उनसे मेरा लगभग तीन दशक का परिचय था. वे पत्रकारिता में मेरे लिए हमेशा बड़े भाई की भूमिका में रहे.
वे जब से श्रीनगर (गढ़वाल) से प्रकाशित रीजनल रिपोर्टर पत्रिका का सम्पादन कर रहे थे, तब से निरन्तर उत्तराखण्ड के विभिन्न विषयों पर मुझसे आलेख, रिपोर्ट व राजनैतिक समीक्षात्मक रिपोर्टें लिखवाते रहे.
इसके लिए दो-तीन महीने के अन्तराल पर उनका फोन आ जाता और वे बड़े भाई की तरह आदेशात्मक स्वर में कहते, जगमोहन भाई , इस बार के अंक के लिए फलां विषय पर आपको लिखना है. कई बार समय की दुविधा में जब मैं उन्हें लिखने में असमर्थता जतलाता तो वे कहते, ‘नहीं जगमोहन भाई ! ये तो आपको ही लिखना है, भले ही एक – दो दिन का और वक्त ले लो, पर लिखना तो आपको ही है.’
रीजनल रिपोर्टर पत्रिका के लिए लिखने के लिए आने वाले फोन के अलावा भी उत्तराखण्ड के विभिन्न ज्वलन्त मुद्दों पर भी हम दोनों के बीच लगातार संवाद होता रहता था. उत्तराखण्ड की जनसमस्याओं के प्रति हमेशा संवेदनशील रहने वाले बड़े भाई सरीखे आत्मीय पुरुषोत्तम असनोड़ा जी को भावपूर्ण अंतिम नमन !
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