सरकारी और दरबारी मीडिया की नजरों से दूर प्रदेश के चमोली जिले के सुदूरवर्ती विकासखंड घाट में इन दिनों जबर्दस्त आंदोलन चल रहा है.
19 किलोमीटर लंबी सिंगल लेन सड़क को डेढ़ लेन किए जाने की मांग को लेकर महीनेभर पहले शुरू हुए इस आंदोलन ने बीती 10 जनवरी को ऐसा मुकाम हासिल किया, जो आंदोलनों के इतिहास में हमेशा के लिए दर्ज हो गया है.
नकली राजधानी देहरादून से लगभग ढाई सौ किलोमीटर दूर विकासखंड घाट, जो कि मेरा गृहक्षेत्र भी है, की जनता ने ऐसा जीवट दिखाया, जिसने बचपन के दिनों में देखे उत्तराखंड राज्य आंदोलन की यादें ताजा कर दीं.
अपने अधिकारों के लिए सात हजार से ज्यादा लोगों ने 19 किलोमीटर लंबी मानव श्रंखला बना कर त्रिवेंद्र सरकार के खिलाफ आर-पार की लड़ाई की मुनादी कर दी.
संघर्ष का ऐलान इसलिए, क्योंकि खुद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने लगभग साढ़े तीन साल पहले इस सड़क के चौड़ीकरण की घोषणा कर लोगों की बहुप्रतीक्षित मांग पूरी करने का भरोसा दिलाया था.
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से पहले उनके पूर्ववर्ती हरीश रावत ने भी 19 किलोमीटर लंबे नंदप्रयाग-घाट सड़क मार्ग के चौड़ीकरण की घोषणा की थी.
लेकिन अब कानूनी पेचीदगियों की आड़ लेकर इस सिंगल लेन सड़क मार्ग को डेढ़ लेन किए जाने की मांग कूड़ेदान में डालने की तैयारी कर दी गई है.
इस बीच 10 जनवरी को हुए ऐतिहासिक प्रदर्शन के बाद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने आंदोलन का संज्ञान लेने की बात कहते हुए कहा कि उन्होंने अधिकारियों को उक्त मांग के संदर्भ में परीक्षण करने और उचित कार्रवाई करने के निर्देश दे दिए हैं.
मगर मुख्यमंत्री के उक्त बयान को आंदोलनकारियों ने ‘कोरा आश्वासन’ बताकर खारिज कर दिया और आंदोलन जारी रखने का ऐलान कर दिया.
इतना ही नहीं आंदोलन को और धार देने के लिए आंदोलनकारियों का धरना भूख हड़ताल में तब्दील हो चुका है.
बीती 14 जनवरी की सुबह पुलिस भूख हड़ताल पर बैठे आंदोलनकारियों को उठाने पहुंची तो आंदोलनकारी रोष से भर उठे.
इसी सुबह लगभग 11 बजे दो आंदोलनकारी घाट क्षेत्र में स्थित मोबाइल टावर पर चढ़ गए जिसके बाद से प्रशासन के हाथ-पैर फूले हुए हैं.
ताजा स्थिति यह है कि इनमें से एक आंदोलनकारी अभी भी टावर पर ही मौजूद हैं. सवाल उठता है कि आखिर यह नौबत क्यों आई ?
10 दिसंबर को हुए विशाल प्रदर्शन के अगले दिन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के आश्वासन के बाद भी आंदोलन जारी रहने की वजह क्या है?
आंदोलनकारियों की मानें तो इसकी वजह मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का वही आश्वासन है जिसे आंदोलनकारियों की मांग पूरी करने के तौर पर प्रचारित किया जा रहा है.
दरअसल मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 10 जनवरी के प्रदर्शन के बाद जो कहा उसकी ईमानदारी से पड़ताल की जाए तो उनकी मंशा पर सवाल खड़े होना लाजमी है.
बड़ा सवाल यह है कि जिस सड़क मार्ग के चौड़ीकरण की मुख्यमंत्री तीन साल पहले घोषणा कर चुके हैं, अब वे आखिर उसको लेकर किस तरह का परीक्षण करवाना चाहते हैं ?
क्या तीन साल पहले मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र ने बिना परीक्षण के यूं ही हवा में नंदप्रयाग-घाट सड़क को लेकर घोषणा कर दी थी ?
यहां पर एक बहुत जरूरी बात याद दिलाना प्रासंगिक होगा. दरअसल मुख्यमंत्री बनने के बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा था कि वे लोकप्रियता पाने के लिए कोई भी कोरी घोषणा नहीं करेंगे.
उन्होंने कहा था कि हर पहलू की पड़ताल करने और पूरी तरह संतुष्ठ होने के बाद ही वे कोई घोषणा करेंगे.
लेकिन गजब देखिए कि अब वे अपनी घोषणा को लेकर किस तरह से रंग बदल रहे हैं.
जो मुख्यमंत्री कोरी घोषणा न करने का दम भरते हों, वही मुख्यमंत्री अपनी घोषणा को लेकर तीन साल बाद परीक्षण की बात कह दें तो इसे दोगलापन न कहा जाए तो क्या कहा जाए ?
बहरहाल नंदप्रयाग-घाट सड़क मार्ग को लेकर चल रहे आंदोलन ने त्रिवेंद्र सरकार के डबल इंजन के दावों की असलियत और दोगलेपन को एक बार फिर बेपर्दा कर दिया है.
आगे बढ़ने से पहले नंदप्रयाग-घाट सड़क चौड़ीकरण की घोषणा को लेकर कुछ अहम तथ्यों का जिक्र करते हैं.
14 सितंबर 2017 को जिला मुख्यालय गोपेश्वर में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस 19 किलोमीटर लंबे सड़क मार्ग के चौड़ीकरण एवं डामरीकरण की घोषणा की थी, जिसके बाद इस काम के लिए 1 करोड़ 28 लाख 44 हजार रुपये की वित्तीय स्वीकृति का आदेश जारी हुआ.
इसके सालभर बाद इस सिंगल लेन सड़क को डेढ़ लेन किए जाने की स्वीकृति दी गई.
तब से अब तक सवा दो साल की अवधि बीत चुकी है. कहां तो अब तक सड़क चौड़ीकरण का काम पूरा हो जाना चाहिए था मगर अब इस घोषणा को ही ठंडे बस्ते में डालने का इंतजाम कर दिया गया है.
दरअसल सरकार ने प्रदेश में सड़क चौड़ीकरण को लेकर मानकों में बदलाव किए हैं जिसके बाद नंदप्रयाग-घाट सड़क चौड़ीकरण की उम्मीद आशंका में तब्दील हो गई है.
प्रदेश सरकार ने दिसंबर 2018 में सड़क चौड़ीकरण के लिए पीसीयू मानकों को नए सिरे से निर्धारित करते हुए एक आदेश जारी किया.
इस आदेश के मुताबिक जिन सड़कों पर रोजाना 3000 से कम वाहनों की आवाजाही है, उनका सिंगल लेन से डेढ लेन चौड़ीकरण नहीं किया जाएगा. इसी तरह जिन सड़कों पर रोजोना 8000 से कम वाहनों की आवाजाही है, उन्हें डबल लेन नहीं किया जाएगा.
बस, इसी आदेश का हवाला देकर अब नंदप्रयाग-घाट सड़क चौड़ीकरण की मांग पर पानी फेरने की तैयारी कर ली गई है.
गौर करने वाली बात यह है कि मानकों में बदलाव संबंधी उक्त आदेश मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा नंदप्रयाग–घाट सड़क चौड़ीकरण की घोषणा के बाद जारी किया गया.
इस आदेश के जारी होने से पहले मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत कई दूसरी सड़कों के चौड़ीकरण की भी घोषणा भी कर चुके थे.
ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि आखिर मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद लोक निर्माण विभाग द्वारा ऐसा आदेश जारी क्यों किया गया जिसने मुख्यमंत्री की घोषणाओं पर ही पलीता लगा दिया ?
हैरानी की बात यह भी है कि जिस लोक निर्माण विभाग द्वारा यह ‘कारनामा’ किया गया, वह खुद खुद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के अधीन आता है.
क्या अधिकारियों को आदेश जारी करने से पहले इस बात की पड़ताल नहीं करनी चाहिए थी कि कहीं इसकी जद में मुखिया की घोषणाएं तो नहीं आ रहीं ?
क्या विभागीय मंत्री होने के नाते मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को इसकी कोई जानकारी नहीं थी ?
या फिर कहीं ऐसा तो नहीं कि घोषणा पूरा न कर पाने की नाकामी से बचने के लिए यह मानकों में बदलाव वाली ‘ट्रिक’ अमल में लाई गई हो ?
वजह जो भी हो, सवाल त्रिवेंद्र सरकार की मंशा पर ही खड़े होते हैं.
एक सवाल यह भी है कि आखिर सड़कों के चौड़ीकरण के लिए 3000 वाहनों की आवाजाही की अनिवार्यता का मानक क्यों तय किया गया ?
प्रदेश के तमाम कठिन भौगोलिक परिस्थितियों वाले इलाकों में ऐसी कई सड़कें हैं जिनमें भले ही रोजोना 3000 से कम वाहनों की आवाजाही है, मगर उनकी खस्ता हालत के चलते ऐए दिन वाहनों के दुर्घटनाग्रस्त होने की खबरें देखने-सुनने को मिलती हैं.
नंदप्रयाग-घाट सड़क मार्ग की बात करें तो 19 किलोमीटर लंबी यह सड़क इस पूरे क्षेत्र की पचास हजार से अधिक आबादी के लिए बाकी दुनिया के साथ तालमेल करने का एकमात्र रास्ता है.
इस सिंगल लेन सड़क की स्थिति इतनी दयनीय है कि आए दिन इस मार्ग पर छोटी-बड़ी दुर्घटनाएं होती रहती हैं. बरसात के दिनों में तो इस सड़क मार्ग से आवाजाही करना मौत को बुलावा देने जैसा होता है.
इतनी बुरी स्थिति के बावजूद वर्षों से इस पूरे इलाके की जनता जान हथेली पर रख कर सफर करने को अभिशप्त है.
सिंगल लेन सड़क के चौड़ीकरण की मांग यहां बड़ा मुद्दा रहा है जिसके लिए समय-समय पर आंदोलन भी हुए. इस बार इस क्षेत्र की जनता ने जो जीवट दिखाया है, उसने साफ बता दिया है कि इस बार लोग जीत कर ही मानेंगे.
त्रिवेंद्र सरकार को चाहिए कि नंदप्रयाग-घाट सड़क को डेढ़ लेन किए जाने की इस वाजिब मांग को मान कर तल्काल इस पर अमल करवाए, वरना इसका जवाब उन्हें अगले विधानसभा चुनाव में मिलना तय है.
अगर यकीन न हो तो मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत जी, एक बार 10 जनवरी की ऐतिहासिक 19 किलोमीटर लंबी मानव श्रंखला की तस्वीरें फिर से देख लीजिए !
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