इंद्रेश मैखुरी
उत्तराखंड में त्रिवेन्द्र सिंह रावत के नेतृत्व में जब से भाजपा सरकार सत्तासीन हुई है, उनके मुख्य नारों में से एक है- भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टालरेंस.
पर जैसा कि आम तौर पर चलन है कि सरकार के नारे और हकीकत में जमीन आसमान का फर्क होता है. वही हश्र इस ज़ीरो टॉलरेंस का भी दिखाई दे रहा है.
नारे और भाषण में भ्रष्टाचार के खिलाफ ज़ीरो टॉलरेंस और काम के वक्त भ्रष्टाचार दफ्तरों के अंदर सरपट दौड़ रहा है और ज़ीरो टॉलरेंस फ़्लैक्स और होर्डिंग पर लटका हुआ,हवा में झूल रहा है.
उत्तराखंड सरकार के शिक्षा विभाग की वाइरल हुई एक ऑडियो रिकॉर्डिंग पुनः यह सिद्ध कर रही है कि भ्रष्टाचार दफ्तरों के एसी में नोटों की गर्मी की छत्रछाया में फलफूल रहा है और ज़ीरो टॉलरेंस हाड़ कंपाती शीत लहर में ठंड के मारे फड़फड़ा रहा है.
वाइरल हुए ऑडियो में एक स्कूल संचालक और एक सरकारी अफसर आपस में बात करते सुनाई दे रहे हैं. अफसर सरकारी व्यवस्था में काम करवाने के गुर स्कूल संचालक को समझाता प्रतीत हो रहा है. स्कूल संचालक को स्कूल की मान्यता के लिए अफसर से बात कर रहा है और उससे खर्चा पूछ रहा है.
संचालक पूछ रहा है कि मंत्री जी भी लेंगे क्या ? तो अफसर कह रहा है कि मंत्री जी का स्टाफ तो लेगा. फिर वह शिक्षा मंत्री के निजी सचिव से बात करने को कह रहा है,निजी सचिव का नंबर भी बता रहा है. मंत्री जी के संपर्क में रहने की सलाह दे रहा है.
निजी सचिव और अनुभाग में खर्चा पानी देने को कह रहा है. अफसर यह भी कह रहा है कि जिनके मानक पूरे होते हैं और वो खर्चा पानी नहीं देते,उनकी फ़ाइल महीनों लटकी रहती हैं.
यह पूरी बातचीत स्कूलों को मान्यता देने में होने वाले भ्रष्टाचार के खेल की तरफ साफ इशारा करती है. इससे यह भी समझ में आता है कि उच्च पदस्थ लोगों के संरक्षण में ही उत्तराखंड में भ्रष्टाचार फलफूल रहा है.
जब सरकारी अफसर यह कहता है कि मानक पूरे होने के बाद जो स्कूल संचालक पैसा नहीं खर्च करते,उनकी फ़ाइल लटकी रहती है तो इसका सीधा अर्थ है कि मानक गुणवत्ता के लिए आवश्यक नहीं समझे जा रहे हैं बल्कि वे धनवसूली के लिए आड़ हैं.
सरकारी तंत्र का सीधा संदेश है कि मानक पूरे करो-न करो,लेकिन खर्चे पानी का इंतजाम पूरा करो !
जिन स्कूलों को मान्यता मानक के आधार पर नहीं पैसा खर्च करके मिलेगी,वे क्या खाक गुणवत्ता परक शिक्षा देंगे ? ऐसे संस्थानों की मनमानी सरकारी अमला कैसे रोकेगा,जिनकी रिश्वत के ढेर के नीचे उसकी नैतिकता कुचली पड़ी है ? सरकारी अमला निजी स्कूल वालों की जेब काटता है और बदले में स्कूल वाले अभिभावकों की जेब काटते हैं.
दबंग और बाहुबली श्रेणी के शिक्षा मंत्री अरविंद पाण्डेय भी निजी स्कूलों की मनमानी के खिलाफ जबानी जमा खर्च से ज्यादा नहीं कर पाते. तो क्या उसकी वजह वह खर्चा पानी है,जिसके बारे में ऑडियो में अफसर कह रहा है कि मंत्री के निजी सचिव तक पहुंचता है ?
मंत्री की मजबूरी हो सकती है पर भ्रष्टाचार के खिलाफ ज़ीरो टॉलरेंस के नारे का जाप करने वाले मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत में पैसा का खेल करने वाले इस कॉकस के खिलाफ कार्यवाही करने का साहस क्यूँ नहीं है ?
इस मसले पर कार्यवाही के नाम पर सिर्फ इतना ही हुआ है कि माध्यमिक शिक्षा के संयुक्त सचिव कविंद्र सिंह को पद से हटा कर उनके विरुद्ध सचिवालय प्रशासन से कार्यवाही करने की संस्तुति की गयी है.
विद्यालयी शिक्षा के सचिव आर मीनाक्षी सुंदरम की ओर से जारी, इस आशय के पत्र में कहा गया है कि इस मामले में कविंद्र सिंह द्वारा पद का दुरुपयोग परिलक्षित हो रहा है !
न्यूज़ चैनल कह रहा है कि वो ऑडियो की पुष्टि नहीं करता,लेकिन सचिव के पत्र से पुष्टि और शिनाख्त दोनों ही हो गई हैं.
उत्तराखंड सरकार को यह भी बताना चाहिए कि पद का दुरुपयोग कविंद्र सिंह द्वारा धन के लेनदेन की प्रक्रिया विस्तार से बताने में हुआ या कि मंत्री जी के सचिव तक यह चेन है,ऐसा बताने में हुआ या फिर लेनदेन की इस चेन की गोपनीयता भंग हो जाने को पद का दुरुपयोग माना गया !
इंतहा है,यह ! खुलेआम घूस लेनदेन की बात हो रही है और जो अफसर इस बातचीत में लिप्त है,उसके विरुद्ध कार्यवाही के नाम पर इतना कि वह उस कुर्सी से हटा भर दिया गया,जिस पर बैठ कर वह भ्रष्टाचार की बात कर रहा था !
सबक क्या है कि भ्रष्टाचार करो पर बात लीक मत होने दो !
यह भ्रष्टाचार के खिलाफ ज़ीरो टॉलरेंस नहीं भ्रष्टाचार के विरुद्ध जीरो एक्शन है,कार्यवाही के नाम पर बड़ा सा शून्य है. भ्रष्टाचार के खिलाफ स्वर के नाम पर निल बट्टे सन्नाटा है !
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