कामकाजी लोग वक्त के अभाव में रेगुलर मोड में पढ़ाई नहीं कर पाते लिहाजा ज्ञान बढ़ाने अथवा आकादमिक रिकॉर्ड में इजाफे के लोग मुक्त विश्वविद्यालयों में दाखिला लेते हैं.
लेकिन ऐसे शिक्षण संस्थान भी हैं जो उनकी जिंदगी ‘ऑफिस-ऑफिस’ बनाकर रख देते हैं.
गलत तरीके से भर्तियों को लेकर सुर्खियों में रही उत्तराखंड ओपन यूनिवर्सिटी भी कुछ ऐसा ही कर रही है.
दरअसल मुक्त विश्वविद्यालय में दाखिला लेने वाले छात्रों की शिकायत है कि पूरी फीस भरने के बावजूद उन्हें वक्त पर किताबें नहीं मिल पाई हैं.
परीक्षाएं सर पर हैं और एमए के छात्रों को अभी तक किताबें नहीं मिल पाई है.
एमए के एक छात्र ने किताबों की जानकारी के लिए जब विश्विविद्यालय से संपर्क किया तो उन्हें बताया गया कि विश्वविद्यालय की तरफ से किताबें 27 मई को ही अध्ययन केन्द्र UIHMT मोहकमपुर भेज दी गयी हैं.
जिसके बाद छात्र ने कॉलेज स्थित यूनिवर्सिटी के स्डटी सेंटर में संपर्क किया तो वहां के प्रभारी ने स्टडी मटिरियल उपलब्ध न होने की बात कही.
जब छात्र ने कॉलेज पर गुमराह करने का आरोप लगाया तो मौजूदा प्रभारी ने नवनियुक्त होने के कारण जानकारी न होने की बात कही.
मौजूदा प्रभारी ने यूनिवर्सिटी पर कम मात्रा में स्टडी मटीरियल भेजने का आरोप लगाया. उनके मुताबिक हर साल इस तरह की दिक्कत पेश आती हैं.
कॉलेज में बात करने के बाद छात्र ने दोबारा यूनिवर्सिटी में संपर्क किया लेकिन वहां से भी उन्हें अभी तक कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला है.
बहरहाल मामले में खामी विश्वविद्यालय की हो या स्टडी सेंटर की, लेकिन उसकी कीमत छात्र को चुकानी पड़ रही है.
ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि कामकाजी छात्रों को इस तरह के झंझटों से दो चार होना पड़े तो मुक्त विश्वविद्यालय की संकल्पना कैसे सार्थक होगी ?
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