बीजों की खरीद में गड़बड़ी के लिए कुख्यात प्रदेश के उद्यान विभाग का एक और ‘कारनामा’ सामने आया है.
विभागीय अधिकारियों की ‘मेहरबानी’ कहें या लापरवाही, ओडिशा की एक कंपनी ने टेंडर की शर्तों के उलट खराब गुणवत्ता वाले लहसुन की खेप उत्तराखंड पहुंचा दी.
इससे भी हैरानी की बात यह है कि विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों ने आंख मूंद कर इस लहसुन की सप्लाई पहाड़ी जिलों में कर दी.
सवाल यह है कि आंख मूंदने का काम कहीं बीज सप्लाई करने वाली कंपनी को फायदा पहुंचाने के लिए तो नहीं किया गया ?
ये पूरा मामला डेढ करोड़ रुपये के घपले की तरफ इशारा कर रहा है.
दरअसल राज्य बनने के बाद एक भी सरकार ऐसी नहीं रही जिसके कार्यकाल में उद्यान विभाग में बीज खरीद को लेकर कोई गड़बड़झाला न हुआ हो.
विधानसभा में उद्यान विभाग में बीज खरीद घोटालों के मुद्दे पर हंगामों का लंबा इतिहास है.
इसी कड़ी में अब लहसुन खरीद का ये मामला भी बड़े खेल की तरफ इशारा कर रहा है.
क्या है पूरा मामला ?
19 जून 2021 को उद्यान विभाग द्वारा लहसुन के बीजों की सप्लाई के लिए टेंडर निकाला गया.
टेंडर निकाले जाने के बाद ओडिशा की एक कंपनी ओसीसीएफ को लहसुन के बीजों की सप्लाई का टेंडर दिया गया.
टेंडर के मुताबिक पहाड़ों के लिए एग्रीफाउउंड पार्वती लहसुन के बीजों की सप्लाई की जानी थी, जिसमें लहसुन का आकार 55 एमएम से 60 एमएम तक होना चाहिए था.
इसके अलावा जो बीज आना था उसमें कलियों की संख्या 12 से 15 होनी चाहिए थी.
लेकिन कंपनी ने इन शर्तों के उलट घटिया किस्म का लहसुन सप्लाई कर दिया जो कि टेंडर की शर्तों और मानकों पर खरा नहीं उतरता था.
सवाल यह है कि आखिर टेंडर की शर्तों के उलट जो घटिया किस्म का लहसुन कंपनी द्वारा उपलब्ध कराया गया, विभागीय अधिकारियों ने उसे किस बिनाह पर स्वीकार कर पौड़ी भेज दिया ?
क्या कहते हैं अधिकारी ?
कंपनी के इस कारनामे के खिलाफ उद्यान विभाग के अधिकारियों को कड़ा एक्शन लेना चाहिए था, लेकिन ऐसा करने के बजाय बिना फिजिकल वैरिफिकेशन के 102 कुंटल बीज को पौड़ी जिले के लिए रवाना कर दिया गया.
पौड़ी पहुंचने के बाद विभाग के ज्वाइंट डायरेक्टर रतन कुमार ने लहसुन का गुणवत्ता का फिजिकल वैरिफिकेशन किया और उसके आधार पर रिपोर्ट तैयार की.
उन्होंने बताया कि देहरादून से भेजी गई लहसुन के बीज की खेप, टेंडर में दी गई शर्तों से मेल नहीं खाती है जिसकी रिपोर्ट उन्होंने विभाग के निदेशालय रानीखेत भेज दी है.
इसके बाद लहसुन के बीज की जो खेप देहरादून से पौड़ी भेजी गई उसे विभाग के ही जिला स्तरीय अधिकारियों ने रिजेक्ट कर वापस देहरादून भेज दिया है.
इस रिपोर्ट के लिखे जाने से ठीक पहले जब हम पौड़ी स्थित जिला उद्यान विभाग के दफ्तर पहुँचे तो लहसुन के 102 कुंटल घटिया बीज को वापस देहरादून भेजने के लिए ट्रक पर लादा जा रहा था.
इस बारे में पौड़ी जिले के मुख्य उद्यान अधिकारी से बात की तो उन्होंने बताया कि कंपनी द्वारा जो बीज भेजा गया है वो मानकों पर खरा नहीं उतरता है लिहाजा उसे वापस भेजा जा रहा है.
वहीं जब इस पूरे मामले में उद्यान विभाग के निदेशक एचएस बवेजा से बातचीत की गई तो उनके जवाबों में विरोधाभास दिखाई दिया.
उनसे पूछा गया कि आखिर 102 कुंतल घटिया लहसुन पौड़ी कैसे पहुंच गया, तो उनका कहना था कि घटिया या सब स्टेंडर्ड शब्द गलत है.
बकौल एचएस बवेजा, क्योंकि लहसुन आकार में ही छोटा है, उसे सब स्टेंडर्ड कहना गलत होगा.
बावेजा ने कहा कि उन्हें 14 सितंबर की शाम को ही इस बाबत जानकारी मिली है जिसके बाद उन्होंने उद्यान अधिकारी पौड़ी से बात भी की है.
बावेजा ने कहा कि जो भी अधिकारी या फिर कंपनी इसके लिए जिम्मेदार होगे उनके खिलाफ सख्त एक्शन लिया जाएगा.
एचएस बवेजा कंपनी के बजाए विभागीय अधिकारियों पर अपना गुस्सा निकालते हुए दिखाई दिए और घटिया लहसुन की सप्लाई के लिए विभाग के अंदर की राजनीति और अपने अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराने लगे.
वहीं जब उनसे पूछा गया कि आखिर लहसुन का खराब बीज पौड़ी कैसे पहुंच गया, जबकि देहरादून में इसका फिजिकल वैरिफिकेशन किया जाना था ?
इस पर गोल-मोल जवाब देते हुए बावेजा ने कहा कि ज्वांइंट डायरेक्टर रतन कुमार ने इस बीज को अप्रूव किया है.
लेकिन जब ज्वाइंट डायरेक्टर रतन कुमार से इस बारे में पूछा गया तो उनका साफ कहना ता कि उन्होंने इस लहसुन को टेंडर की शर्तों के अनुरुप नहीं पाया है और उसकी रिपोर्ट रानीखेत भेज दी है.
आखिर कौन है जिम्मेदार ?
उद्यान विभाग के निदेशक एचएस बवेजा के मुताबिक पहले फिजिकल वैरिफिकेशन रानीखेत में किया जाता था लेकिन निदेशक बनने के बाद उन्होंने देहरादून में फिजिकल वैरिफिकेशन की व्यवस्था करवा दी है.
ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि आखिर जिस देहरादूंन में वे खुद बैठते हैं, वहीं उनकी नाक के नीचा इतना बड़ी गड़बड़ी कैसे हुई ?
जिस तरह से खराब क्वालिटी का बीज देहरादून से पौड़ी पहुंच कर वापस देहरादून लौटा दिया गया है उसे देख कर यही सिद्ध होता है कि या तो देहरादून में फिजिकल वैरिफिकेशन में खेल किया गया या फिर वैरिफिकेशन हुआ ही नहीं.
पौड़ी जिले में लहसुन की खेती पर लगभग 2 हजार किसान परिवार निर्भर हैं.
जो खराब गुणवत्ता का बीज पौड़ी भेजा गया यदि वह किसानों तक वितरित हो जाता तो जी तोड़ मेहनत के बाद उनके हिस्से कुछ नहीं आता.
पौड़ी जिले की तर्ज पर प्रदेश के अन्य जिलों में भी लहसुन के बीचों की खेप पहुंचाई जानी है.
सवाय यह है कि क्या उन जिलों तक भी क्या इसी तरह की खराब गुणवत्ता वाला बीज पहुंचाया जाएगा ?
कुल मिलाकर इस पूरे खुसाले से एक बार फिर उद्यान विभाग की कार्यप्रणाली और जवाबदेही को सवालों के घेरे में ला दिया है.
यह भी पढ़ें : उत्तराखंड में बागवानी की हकीकत : भाग -1
Discussion about this post