कोरोना महामारी के कठिन दौर में जिस वक्त सरकार की ‘सक्रियता’ की सबसे ज्यादा जरूरत है, उस वक्त खुद सरकार ‘क्वारंटाइन’ हो कर घर में बंद हो जाए, तो राज्य के लिए इससे बड़ी त्रासदी और क्या हो सकती है ?
इस त्रासदी का शिकार होने वाला उत्तराखंड देश का पहला प्रदेश बन गया है.
प्रदेशभर में हर दिन बड़ी संख्या में कोरोना संक्रमण के मामले सामने आ रहे हैं, तमाम क्वारंटाइन केंद्रों से अव्यवस्थाओं की खबरें आ रही हैं, चारों ओर भय और अनिश्चितता पसरी हुई है.
इस सबके बीच जिस सरकार को लोगों के बीच आकर हौसला बढ़ाना चाहिए, मोर्चा संभाल कर स्थितियों को सुधारना चाहिए, वह सरकार खुद कोरोना के प्रकोप से क्वारंटाइन होकर घर बैठ गई है.
उत्तराखंड सरकार में नंबर दो की हैसियत रखने वाले कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज और उनके दर्जनभर से ज्यादा करीबियों के कोरोना वायरस से संक्रमित होने की घटना ने त्रिवेंद्र सरकार के ‘जीरो टालरेंस’ को पूरी तरह बेपर्दा कर दिया है.
कहां तो अब तक होम क्वारंटाइन का उल्लंघन करने पर कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज के खिलाफ गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज हो जाना चाहिए था, मगर असलियत यह है कि मुकदमा दर्ज होना तो दूर इस मामले में सरकार ऐसे चुप है, मानो कुछ हुआ ही न हो.
कितनी निराशाजनक बात है कि इस असमंजस भरे वक्त में जब लोग तरह-तरह की चिंता और आशंकाओं के भंवर में उलझे हैं, तब एक सच्चे लीडर की तरह सामने आकर लोगों से संवाद करने के बजाय मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत पूरे परिदृश्य से ही गायब हैं.
सतपाल महाराज के कोरोना पाजिटिव पाए जाने के बाद मुख्यमंत्री और तीन अन्य मंत्री अपने घरों में क्वारंटाइन हो गए हैं. कोरोना संक्रमित पाए गए सतपाल महाराज ने बीती 21 और 31 मई को हुई राज्य कैबिनेट की बैठकों में शिरकत की थी.
इस वाकये के बाद मुख्यमंत्री और मंत्री तो होम क्वारंटाइन हैं ही, मुख्यमंत्री का दफ्तर भी तीन दिन के लिए बंद कर दिया गया है. उहापोह का अलम यह है कि पहले दिन अफसरों के भी क्वारंटाइन होने की खबर आती है तो दूसरे दिन पता चलता है कि अफसर अपने दफ्तरों में बैठेंगे. इन स्थितियों के बीच पूरा तंत्र अराजकता का शिकार हो गया है.
सवाल उठता है कि क्या इस सबके लिए कोरोना महामारी ही जिम्मेदार है ? जवाब है, नहीं.
असल बात यह है कि ये ‘जिम्मेदारी’ और ‘जवाबदेही’ की असफलता का परिणाम है, राज्य की प्रशासनिक नाकामी का परिणाम है, सिस्टम के ध्वस्त होने का परिणाम है.
कोरोना संकट के बीच उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत लगभग हर दिन लॉकडाउन और क्वारंटाइन नियमों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की बात कहते आ रहे हैं.
दूसरे राज्यों से अपने घर-गांव आ रहे लोगों पर नजर रखने के लिए तो वे बकायदा ग्राम प्रधानों को पूरा अधिकार तक दे चुके हैं. इसी तरह पुलिस प्रशासन को भी उन्होंने नियम कानून तोड़ने वालों के खिलाफ जीरो टालरेंस की नीति अपनाते हुए गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज करने के निर्देश जारी किए हैं.
मुख्यमंत्री के इन आदेशों का ही असर मानें, तो एक जून तक उत्तराखंड में होम क्वारंटाइन का उल्लंघन करने पर डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट के तहत 414 लोगों के खिलाफ 298 मुकदमे दर्ज किए जा चुके हैं.
इसी तरह 24 मार्च से एक जून तक लॉकडाउन का उल्लंघन करने पर प्रदेशभऱ में 3500 से अधिक मुकदमे, 25 हजार से ज्यादा लोगों की गिरफ्तारी, 50 हजार से ज्यादा वाहनों का चालान, सात हजार से ज्यादा वाहन सीज तथा 2 करोड़ 90 लाख रुपये से ज्यादा की जुर्माना राशि वसूली जा चुकी है.
ये आंकड़े बताते हैं कि लॉकडाउन और क्वारंटाइन नियमों को तोड़ने वालों के खिलाफ उत्तराखंड सरकार कितनी मुखर और मुस्तैद है.
मगर जब सरकार खुद ही लॉकडाउन और क्वारंटाइन नियमों की धज्जियां उड़ा कर प्रदेश में अभूतपूर्व संकट पैदा कर दे, तो इस मुखरता और मुस्तैदी की असलियत सामने आ जाती है?
जो मुख्यमंत्री होम क्वारंटाइन का पालन न करने पर कड़ी कार्रवाई करने की बात कहते हों, अपनी ही कैबिनेट के एक सदस्य के इतने गंभीर कृत्य पर वे आखिर चुप क्यों हैं ?
जो प्रशासान अब तक हजारों लोगों खिलाफ मुकदमा लिख चुका है, बड़ी संख्या में लोगों को गिरफ्तार कर चुका है, उस प्रशासन ने सतपाल महाराज के मामले में अब तक क्या कार्रवाई की है ?
ये वो सवाल हैं जिनका जवाब आज प्रदेश का हर जागरूक नागरिक चाहता है, मगर आखिर पूछा किससे जाए ?
26 मई को प्रशासन ने सतपाल महाराज के देहरादून स्थित आवास के बाहर होम क्वारंटीन का नोटिस चस्पा किया था. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक नोटिस चिपकाए जाने के हफ्तेभर पहले 19 मई को दिल्ली से कुछ लोग सतपाल महाराज के घर आए थे.
इसके दो दिन बाद 21 मई को सतपाल महाराज राज्य कैबिनेट की बैठक में शामिल हुए. चूंकि तब तक उनकी दिल्ली से आए लोगों से मुलाकात की बात सार्वजनिक नहीं हुई थी, इसलिए मामला दब गया.
इसके बाद जब प्रशासन को 19 मई की मुलाकात की जानकारी मिली तो 26 मई को सतपाल महाराज के आवास के बाहर होम क्वारंटाइन का नोटिस चस्पा कर दिया गया. नोटिस में लिखा गया कि 20 मई से तीन जून तक इस घर में रहने वाले सभी लोग घर पर ही रहें और बाहरी व्यक्तियों से न मिलें.
26 मई को नोटिस चिपकाए जाने के तीन दिन बाद ही 29 मई को सतपाल महाराज देहरादून स्थित राज्य सचिवालय में हुई कैबिनेट बैठक में शामिल हुए.
घर के बाहर होम क्वारंटाइन का नोटिस चस्पा होने के बावजूद सतपाल महाराज का कैबिनेट बैठक में शामिल होना अपने आप में बेहद गंभीर घटना थी.
दो दिन बाद 31 मई की शाम को सतपाल महाराज की पत्नी और पूर्व मंत्री अमृता रावत के कोरोना पाजिटिव होने की खबर ने सतपाल के कैबिनेट मीटिंग में शामिल होने की गंभीरता को और बढ़ा दिया. अगले दिन सतपाल महाराज की कोरोना जांच हुई जिसके बाद सब कुछ पब्लिक डोमेन में आ चुका है.
सतपाल महाराज और उनके परिवार व स्टाफ के लोगों का कोरोना संक्रमित पाया जाना न तो कोई अपराध है और न ही कोई शर्मिंगदी की बात. इस संकट भरे वक्त में हर कोई उनके और कोरोना पाजिटिव पाए गए सभी लोगों के स्वस्थ होने की कामना कर रहा है.
मगर सवाल यह है कि आखिर होम क्वारंटाइन की हिदायत के बावजूद सतपाल महाराज ने घर की दहलीज क्यों लांघी ?
आध्यात्मिक गुरु के तौर पर दुनिया-जहां को नियम, संयम और आचरण का उपदेश देने वाले सतपाल महाराज ने खुद क्यों ऐसे वक्त में इस सब का पालन नहीं किया, जब इसकी सबसे ज्यादा जरूरत थी ?
कोरोना काल में जब लगातार सामाजिक दूरी बरतने की सलाह दी जा रही है तब सतपाल महाराज क्या दिल्ली के आगंतुकों से साथ मुलाकात टाल नहीं सकते थे ?
जिस वक्त दुनियाभर में सब कुछ थमा हुआ है, बड़े-बड़े कार्यक्रम स्थगित हो चुके हैं, वैश्विक नेताओं की मुलाकातें टल गई हैं, ऐसे वक्त में दिल्ली के आगंतुकों से सतपाल महाराज को आखिर ऐसी कौन सी वार्ता करनी थी, जो सिर्फ आमने–सामने बैठ कर ही हो सकती थी ?
इसके बाद भी जब 26 मई को उनके घर के बाहर नोटिस लग गया तब भी उन्होंने गंभीरता क्यों नहीं दिखाई ?
क्या सत्ता की हनक में वे यह भूल गए कि उनका घर से बाहर निकलना न केवल उनके लिए बल्कि और भी कई लोगों के लिए मुश्किल पैदा कर सकता है ? उन्होंने कितने लोगों के स्वास्थ्य को लेकर आशंका पैदा कर दी है, क्या उन्हें इसका अंदाजा है ?
सतपाल महाराज का यह कृत्य चूक नहीं बल्कि एक जन प्रतिनिधि के रूप में बेहद गैर जिम्मेदाराना रवैया है. इस कृत्य के लिए उनके खिलाफ तत्काल कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए थी, मगर जिस प्रशासन को ऐसा करना चाहिए, वह अब तक मौन है.
प्रशासन की भूमिका को लेकर एक सवाल यह भी है कि 19 मई को सतपाल महाराज के घर दिल्ली के आगुंतुकों के आने की घटना के बाद उनके गेट पर होम क्वारंटाइन का नोटिस चिपकाने में हफ्ताभर क्यों लग गया ?
दूसरा सवाल यह कि नोटिस चिपकाने के बाद क्यों यह सुनिश्चित नहीं किया गया कि सतपाल महाराज अथवा कोई भी अन्य व्यक्ति क्वारंटाइन अवधि पूरी होने तक घर से बाहर न निकले ?
तीसरा तथा सबसे अहम सवाल कि जो प्रशासन लॉकडाउन और होम क्वारंटाइन का उल्लंघन करने पर हजारों लोगों के खिलाफ कार्रवाई कर चुका है, करोड़ों रुपये का जुर्माना वसूल चुका है, कई लोगों के खिलाफ आईपीसी की धारा 307 के तहत मुकदमा दर्ज करवा चुका है, सतपाल महाराज के इस कृत्य पर उस प्रशासन ने उनके खिलाफ एक्शन क्यों नहीं लिया ?
प्रशासन की यह नाकामी राज्य पर कितनी भारी पड़ी है इसका इससे बड़ा प्रमाण क्या होगा कि जिन मुख्यमंत्री महोदय को इस वक्त ‘मोर्चे’ पर होना चाहिए था, वे और उनके तीन मंत्री होम क्वारंटाइन हो गए हैं.
सवाल तो मुख्यमंत्री की भूमिका पर भी उठते हैं. क्या मुख्यमंत्री को सतपाल महाराज के घर के बाहर नोटिस चस्पा होने की खबर नहीं थी, या फिर यह सब जानते हुए भी उन्होंने उन्हें कैबिनेट बैठक में शामिल होने दिया ?
सतपाल महाराज का कैबिनेट बैठक में शामिल होना यदि इतना ही जरूरी था तो क्या इसके लिए वीडियो कांफ्रेसिंग का सहारा नहीं लिया जा सकता था ?
आम जनता को सोशल डिस्टेंसिंग, लॉकडाउन और होम क्वारंटीन के नियमों की नसीहत देने वाली सरकार अपनी बारी आने पर क्यों इन नियमों का पालन करने से चूक गई ?
ये वो अहम सवाल हैं जिनका मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को खुद सामने आकर जवाब देना चाहिए था, मगर कितनी हैरानी की बात है, इस घटना के दो दिन बीत जाने के बाद भी उन्होंने इस पर एक शब्द तक नहीं कहा है.
जिस सरकार पर लोगों को कोराना वायरस संक्रमण से बचाने की जिम्मेदारी है, उसी सरकार के एक मंत्री की इतनी बड़ी गलती और उस पर मुखिया की चुप्पी ने प्रदेश के समूचे तंत्र की असलियत उजागर कर दी है.
यह भी पढ़ें : कोरोना संकट : पहाड़ को पहाड़ पर ‘पहाड़’ सी उम्मीद
Discussion about this post