बीते रोज प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत नैनीताल जिले के दौरे पर थे. जिले के सबसे बड़े शहर हल्द्वानी में प्रशासनिक अमले की बैठक लेने के बाद मुख्यमंत्री ने कोरोना से निपटने को लेकर सरकार की तैयारियों का खूब बखान किया.
मुख्यमंत्री ने कहा कि कोरोना संकट से निपटने के लिए तैयारियां पूरी हैं और उनकी सरकार सभी नागरिकों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है.
जिस वक्त मुख्यमंत्री अपनी सरकार की तैयारियों का गुणगान कर रहे थे, ठीक उसी समय वहां से लगभग 85 किलोमीटर दूर नैनीताल जिले के ही बेतालघाट इलाके में एक परिवार अपनी चार वर्षीय बच्ची की मौत के सदमे में गमगीन था.
कोरोना संकट के बीच पहाड़ लौटे इस परिवार की बच्ची को तल्ली सेठी गांव के प्राइमरी स्कूल में बनाए गए क्वारंटाइन सेंटर में सांप ने काट लिया. बच्ची को आपातकालीन सेवा 108 की मदद से अस्पताल ले जाया गया मगर उसकी जान नहीं बचाई जा सकी.
कोरोना महामारी के बीच नए सिरे से जिंदगी शुरू करने की उम्मीद लिए, हजारों लोगों की तरह नैनीताल जिले के बेतालघाट इलाके का यह परिवार भी पहाड़ लौटा था. मगर क्या पता था कि उनकी यह उम्मीद मातम में तब्दील हो जाएगी.
इस घटना के बाद से बच्ची के माता-पिता दीपा देवी और महेंद्र सिंह सदमे में हैं. जिस गांव में इस दंपति को अपनी बच्ची का भविष्य सुरक्षित नजर आया था, उसी गांव के क्वारंटाइन सेंटर ने उनकी बच्ची को हमेशा के लिए उनसे, छीन लिया.
कोरोना महामारी ने उन्हें पहले ही शहर से बेदखल कर दिया था, और अब बेटी की मौत के बाद उनके लिए गांव में रह पाना कितना मुश्किल होगा इसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता है.
इस दर्दनाक घटना ने कोरोना संकट के बीच सरकार के इंतजामों और प्रदेश के पर्वतीय अंचलों में स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की असलियत उजागर कर दी है।
कितनी हैरत की बात है कि जिस दिन जिले में मुख्यमंत्री का दौरा हुआ उसी दिन सिस्टम के नकारेपन ने एक मासूम की जिंदगी छीन ली.
तल्ली सेठी गांव के प्राइमरी स्कूल में बनाए गए इस क्वारंटाइन सेंटर की बदहाली से प्रशासन को कई बार अवगत कराया जा चुका था. मगर जिन ‘जिम्मेदार’ कारिदों को इस पर एक्शन लेना था, वे बेपरवाह होकर चैंन की नींद सोए रहे.
बच्ची की मौत के बाद प्रशासनिक अमले की नींद टूटी और एक राजस्व निरीक्षक, एक ग्राम पंचायत विकास अधिकारी तथा एक अध्यापक के खिलाफ खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया।
मगर सवाल यह है कि निचले दर्जे के इन सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने भर से ही सरकार की जिम्मेदारी पूरी हो जाती है ?
संवेदनहीनता की पराकाष्ठा देखिए कि 24 घंटे बीतने के बाद भी प्रदेश के मुख्यमत्री तथा अन्य ‘जनसेवकों’ ने इस घटना पर मुंह नहीं खोला है. ये वही जनसेवक हैं जो चुनाव से पहले जनता का हर दुख दूर करने का वादा करते हैं.
ये वही जनसेवक हैं जो सत्ता से बाहर होने पर इस तरह की दुखद घटनाओं पर सबसे पहले शोक व्यक्त कर संवेदना जताते हैं. ये वही जनसेवक हैं जो ‘ईरान से लेकर तुरान तक’ की घटनाओं पर ‘क्विक’ रिएक्शन देते हैं. मगर बेतालघाट की घटना पर इन्होंने चुप्पी ओढ़ ली.
कोरोना संकट को देखते हुए लाखों की संख्या में दूसरे राज्यों में रह रहे उत्तराखंडी अपने गांवों को लौटे हैं. इस दौरान बहुत से लोग होम क्वारंटाइन में हैं तो बड़ी संख्या में लोगों को प्राइमरी स्कूलों, पंचायत भवनों आदि में बनाए गए क्वारंटाइन केंद्रों में रह रहे हैं.
इन क्वारंटाइन केंद्रों की बदहाली की खबरों से सोशल मीडिया भरा पड़ा है. कहीं लोग जानवरों की तरह जमीन पर पड़े हुए हैं तो कहीं खाने-पीने की व्यवस्थाएं खस्ताहाल हैं. कहीं शौचालय की सुविधा नहीं है तो कहीं खाने में कीड़े पाए जा रहे हैं.
प्रदेश के सुदूरवर्ती गांवों में ही ऐसी हालत नहीं है बल्कि जिस देहरादून में सरकार और नौकरशाही के बड़े नाम रहते हैं, वहां के रायपुर स्थित महाराणा प्रताप स्पोर्ट्स कालेज में बनाए गए क्वारंटाइन सेंटर की असलियत भी सामने आ चुकी है.
बीते दिनों वहां रह रहे लोगों ने कुछ वीडियो सोशल मीडिया पर सार्वजनिक किए जिनसे पता चलता है कि कोरोना से निपटने के मामले में हमारा तंत्र कितना निकम्मा साबित हो रहा है. इसी तरह प्रदेश की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित किए गए गैरसैंण में बनाए गए क्वारंटाइन सेंटर की बदहाली भी कुछ दिन पहले उजागर हो चुकी है.
कोरोना महामारी से निपटने के लिए जो ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ अब तक का एकमात्र उपाय है, इन क्वारंटाइन केंद्रों की अव्यवस्थाओं ने उसकी धज्जियां उड़ा कर रख दी हैं.
कल्पना कीजिए जब एक कमरे में कई-कई लोग ठूंसे गए हों और उनके लिए एक ही शौचालय की व्यवस्था गई हो तो क्या होगा ? क्या यह संक्रमण को खुली दावत देना नहीं है ?
सवाल यह है कि आखिर प्रदेश में ‘जवाबदेही’ शब्द के कोई मायने रह भी गए हैं या नहीं ? क्या जनसुरक्षा के क्रम में सरकार की जिम्मेदारी तभी शुरू होगी जब कोई व्यक्ति कोरोना संक्रमित होकर अस्पताल पहुंच जाएगा ?
प्रदेश के मुख्यमंत्री लगातार कह रहे हैं कि कोरोना से निपटने के लिए राज्य में व्यवस्थाएं दुरुस्त हैं. बीते दिनों एक आनलाइन चर्चा में उन्होंने तमाम दावे किए जिनका सार यह था कि यदि प्रदेश में 25 हजार से भी ज्यादा कोरोना संक्रमित पाए जाते हैं, तब भी सरकार इससे निपट लेगी.
मगर असलियत यह है कि कोरोना वायरस से पहले सिस्टम का निकम्मापन लोगों की जान लेने को आतुर है.
बेतालघाट में सांप से काटने से जिस बच्ची की मौत हुई क्या उसकी जान नहीं बचाई जा सकती थी ? बिल्कुल बचाई जा सकती थी, यदि लोगों को क्वारंटाइन सेंटरों में ठूंसने से पहले वहां बुनियादी सुविधाओं के साथ ही आपातकालीन स्थितियों से निपटने के इंतजाम भी किए जाते.
मगर मेडिकल सुविधाएं जुटाने की बात तो छोड़िए क्वारंटाइन सेंटर के आस-पास की झाड़ियों तक को काटने की जहमत नहीं उठाई गई.
कोरोना महामारी का असर कम होने के बाद जब स्थितियां सामान्य होंगी तो तल्ली सेठी गांव का यह प्राइमरी स्कूल फिर से खुलेगा. गांव के छोटे-छोटे बच्चे स्कूल में पढ़ने आएंगे.
सिस्टम जरा सा भी संवेदनशील होता तो, चार साल की उस मासूम की अकाल मृत्यु न होती. तब वह भी शायद इस स्कूल में पढ़ती, जीवन पथ पर आगे बढती, भरपूर जीवन जीती. काश, ये नकारा तंत्र उस मासूम की जान बचा पाता !
यह भी देखें : ‘बीमार’ क्वारंटाइन सेंटर में आपका स्वागत है !
Discussion about this post