पूरी दुनिया की तरह ही भारत भी कोरोना के कहर का सामना कर रहा है. देश में सरकारी प्रयासों के अलावा आम नागरिक भी इस महामारी से निपटने के लिए विभिन्न रूपों में अपनी भूमिका अदा कर रहे हैं.
यह बात आम तौर पर कही जा रही है कि यह राष्ट्रीय आपदा का समय है, इसलिए सब को एकजुट हो कर इस आपदा का सामना करना है. लोग न केवल बढ़-चढ़ कर मदद का हाथ बढ़ा रहे हैं बल्कि प्रधानमंत्री राहत कोष या पीएम केयर फंड में अपने जीवन की सम्पूर्ण जमा पूंजी इस महामारी से लड़ने के लिए दान कर रहे हैं.
उत्तराखंड के गौचर की निवासी बुजुर्ग महिला देवकी भण्डारी ने अपने जीवन भर की जमा पूंजी दस लाख रुपये प्रधानमंत्री केयर फंड में कोरोना से लड़ने के लिए दान कर दी. इस तरह की कई मिसालें हैं, जो संकट की इस घड़ी में अपना सर्वस्व न्यौछावर करने की सीख देती हैं.
लेकिन लगता है कि फार्मा क्षेत्र के दिग्गजों की इस संकट की घड़ी में भी केवल मुनाफे पर ही नजर है. ऐसा सुप्रीम कोर्ट के दो दिन पहले आए फैसले पर फ़ार्मा टाइकूंस यानि कि दवा क्षेत्र के कॉरपोरेट दिग्गजों की प्रतिक्रिया से जाहिर होता है.
दरअसल देश में जब कोरोना का प्रसार होना शुरू हुआ तो सरकारी लैब्स टेस्टिंग के लिए कम लगने लगी तो केंद्र सरकार ने प्राइवेट लैब्स में भी कोरोना के परीक्षण की अनुमति दे दी और परीक्षण का शुल्क निर्धारित किया – 4500 रुपया प्रति टेस्ट.
जब प्राइवेट लैब्स में टेस्ट की यह दर तय की जा रही थी,तब भी इसे बहुत ज्यादा माना गया था.
आठ अप्रैल को एक जनहित याचिका पर फैसला सुनाते हुए उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस रविन्द्र बट ने कहा कि इस राष्ट्रीय आपदा के समय कोरोना की जांच के लिए 4500 रुपये की धनराशि काफी अधिक है, जिसका भार इस देश की आबादी के बड़े हिस्से के लिए वहन करना मुश्किल होगा.
पीठ ने कहा कि, किसी व्यक्ति को जांच से सिर्फ इसलिए वंचित नहीं किया जाना चाहिए कि वह 4500 रुपया नहीं चुका सकता. यह कहते हुए न्यायाधीश गणों ने फैसला सुनाया कि कोरोना की जांच निजी लैब्स में भी निशुल्क होगी.
देश के आम लोगों के लिए यह आंशिक राहत भरा फैसला है. लेकिन फार्मा उद्योग के महारथियों को यह फैसला बहुत नागवार गुजरा है. देश की सबसे बड़ी बायो फार्मा कंपनी बायोकोन की सीईओ किरण मजूमदार शॉ खुल कर इस फैसले के मुखालफत में उतर आई हैं.
बिजनेस टुडे में छपे बयान में वे कहती हैं कि वर्तमान आर्थिक परिदृश्य में निजी लैब्स से मुफ्त जांच की अपेक्षा करना चुनौतीपूर्ण होगा. वे कहती हैं कि जो लोग विदेश जा सकते हैं, वे 4500 रुपये क्यों नहीं चुका सकते और यदि वे नहीं चुका सकते तो उनकी बीमा कंपनियां चुकाएं.
किरण मजूमदार शॉ का यह बयान इनकी इस धारणा को स्पष्ट करता है कि निजी लैब्स में जांच कराने का हक हवाई जहाज में यात्रा करने वालों को ही है, जिनका स्वास्थ्य बीमा हो !
उच्चतम न्यायालय ने सरकार से पूछा कि क्या वह निजी लैब्स द्वारा किए गए टेस्ट के शुल्क की अदायगी कर सकती है ? लेकिन मोहतरमा किरण मजूमदार शॉ तो इसके लिए भी राजी नहीं हैं. वे तुरंत पैसा चाहती हैं.
और इस मामले में किरण मजूमदार शॉ अकेली नहीं हैं. पूर्व स्वास्थ्य सचिव केशव देसिराजू ने भी अंग्रेजी न्यू पोर्टल – द प्रिंट में लिखे लेख में उच्चतम न्यायालय के फैसले को उचित नहीं माना है.
वे लिखते हैं कि प्राइवेट लैब तो मुनाफा कमाने वाले संस्थान हैं. द प्रिंट में ही फोर्टिस, सी-डॉक के चैयरमैन डाक्टर अनूप मिश्रा लिखते हैं कि सरकार टेस्ट किट मुफ्त दे, पीपीई किट का पैसा वहन करे तो प्राइवेट लैब्स 500 रुपये में टेस्ट कर सकते हैं. यानि सरकार यदि बहुत सारा खर्च वहन भी कर ले तब भी प्राइवेट लैब्स मुफ्त में टेस्ट नहीं करेंगे !
तो क्या वाकई फार्मा सैक्टर के कारपोरेट महारथी कंगाल हो जाएंगे यदि वे उच्चतम न्यायालय के फैसले के अनुसार कोरोना का टेस्ट मुफ्त में करेंगे ?
इंडियन ब्रांड इक्विटि फाउंडेशन के अनुसार वर्ष 2018 में भारत के घरेलू फार्मास्यूटिकल बाजार का टर्नओवर था 129015 करोड़ रुपया, जो 2019 के अंत तक बढ़ कर 1.39 लाख करोड़ रुपया हो गया.
दुनिया के लगभग 200 देशों को भारतीय दवाइयों का निर्यात होता है ,जिसमें अमेरिका सबसे बड़ा बाजार है. क्या यह बड़ा बाजार सिर्फ कुछ टेस्ट फ्री करने से धराशायी हो जाएगा ?
फार्मा सेक्टर के महारथियों के बयानों से ऐसा ध्वनित होता है, जैसे सारे दवा उद्योग से सब मुफ्त मांगा जा रहा हो या देश की सारी लैब्स से सारे टेस्ट मुफ्त करने को कहा जा रहा हो !
जबकि हकीकत यह है कि देश में इस समय कोरोना के परीक्षण के लिए केवल 67 प्राइवेट लैब्स को ही सरकार ने अनुमति दी हुई है. इनमें भी केवल एक कोरोना की जांच ही मुफ्त करनी है.
परंतु दवा उद्योग के महारथियों को तो इस भीषण आपदा काल में भी मुनाफा नजर आ रहा है. इसलिए वे जनता के पक्ष में थोड़ी सी राहत वाले उच्चतम न्यायालय के फैसले के खिलाफ उतर आए हैं.
स्वास्थ्य जैसी जनता की बुनियादी जरूरत की चीजें मुनाफा कमाने के लिए बाजार के हवाले कर दी जाएंगी तो जाहिर सी बात है कि लोगों के प्राणों पर भी मुनाफे के गिद्ध तो मंडराएँगे ही !
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