डाक्टर अरुण कुकसाल, वरिष्ठ पत्रकार
सामाजिक सरोकारों के अग्रणी, सफल प्रशासक, योग्य अध्येता, कुशल अन्वेषक, विद्वत इतिहासकार डाक्टर रघुनंदन सिंह टोलिया की आज तृतीय पुण्यतिथि है. हमारे पास आज उनकी यादों और उनके लिखे साहित्य का अद्भुत खजाना है जो हमें अपने जीवन के कर्तव्य पथ पर उनके विचारों और सपनों को साकार करने की नित्य प्रेरणा और स्फूर्ति प्रदान करते हैं.
यह प्रेरणा और स्फूर्ति हमेशा हर हिमालयवासी के मन–मस्तिष्क में सजीव रहे इसके लिए उनके व्यक्तित्व और कृतित्व के आत्मीय स्पर्श को आगे की पीढ़ीतक पहुंचाने का माध्यम आज हम सब बने हैं.
हम सब यह भली भांति जानते हैं कि डाक्टर टोलिया जी का ओढ़ना–बिछौना, उठना–बैठना, सुबह–शाम हर वक्त उत्तराखण्ड विकास के लिए प्रयास औरचिन्तन करना था. वो हम सब हिमालयवासियों के अभिभावक थे.
पहाड़ की सभी संस्थाओें में उनकी मार्गदर्शी भागेदारी रहती थी. उत्तर प्रदेश में पर्वतीय विकास सचिव रहते हुए वे पहाड़ के विकास के लिए उत्तराखण्ड राज्यके आज के संपूर्ण शासन–प्रशासन से कहीं ज्यादा प्रतिबद्ध, सशक्त, प्रभावी और सक्रिय थे.
उनका व्यक्तित्व ही ऐसा था कि वे सामने वाले व्यक्ति में सकारात्मक सोच के साथ नयी ऊर्जा का संचार कर देते थे. उत्तराखण्ड राज्य की नींव मजबूत हो, यह राज्य सही दिशा में सर्वागींण प्रगति करे इसके लिए उनकी दिन–रात की प्रतिबद्धता और कड़ी मेहनत किसी से छुपी नहीं है.
अपने कदमों से गढ़वाल–कुमायूं के हर हिस्से को उन्होनें नापा, पहचाना और वहां विकास की संभावनाओं को तलाशा और उसे अमली जामा पहनाया.
आम आदमी, कर्मचारी और अधिकारियों से अपनेपन, सहजता, सरलता से मिलना, उनकी परेशानियों को समझना और उनका त्वरित निदान उनकेशासकीय कार्यों को करने का प्रभावी अंदाज था.
याददाश्त के वे धनी थे. असहज स्थिति को कैसे सहज किया जाता है, ऐसा कई बार हमने उनसे सीखा. रोज 16 घंटे काम करने के बाद भी उनके चेहरे परमुस्कराहट चमकती रहती.
कई दिनों व रातों के लम्बे टूर पर राह चलते कहीं किसी नुक्कड पर खुद ही समोसे लाकर खाते–खिलाते हुये उनका सरकारी कांरवा आगे बढता रहता था.
राज्य बनने के बाद की उपलब्धियों को वो हर समय बताते रहते. यह जानते हुए भी राजनेताओं और अधिकारियों का एक बड़ा तबका उनसे असहमत सेबढ़कर हमेशा खिलाफ रहता था, वो वाकिफ थे कि राज्य में कई स्तरों पर गलत परिपाटियों ने अपनी मजबूत जड़ें जमा दी हैं.
‘उनसे सीधे टकराने के बजाय सच्चे कर्मवीर बनकर अपना काम करते रहो’, यह धारणा लिए वे निष्फिक्र हो जाते थे.
उत्तराखंड राज्य के तीसरे मुख्य सचिव के बाद प्रथम मुख्य सूचना आयुक्त के कार्यकाल ने उनकी योग्यता, कार्यक्षमता, प्रतिबद्धिता और दूरदर्शिता को औरभी गरिमा प्रदान की.
‘सूचना के अधिकार’ को आम जन में लोकप्रिय बनाने एवं सरकारी अभिकर्मियों को प्रशिक्षित कराने के लिए उनके द्वारा विकसित एवं प्रकाशित साहित्यकी प्रासंगिकता और उपयोगिता उत्तराखण्ड से बाहर देश के अन्य राज्यों में भी मार्गदर्शी की भूमिका में लोकप्रिय है.
सरकारी सेवा से निवृत होकर अपने पैतृक इलाके में स्थिति मुनस्यारी में उन्होने अपना ‘थोलिंग निवास’ बनाया. मुनस्यारी में रहते हुए स्वःअध्ययन औरचिन्तन के साथ–साथ अपने सामाजिक दायित्वों से वे परे नहीं हटे, वरन और भी गम्भीरता से उसमें तल्लीन हो गये.
अपनी पैतृक सामाजिक जड़ों में जीवन के संध्याकाल में उनके वापस लौटने का सुखद अहसास हम सबने महसूस किया था. राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पत्र–पत्रिकाओं में नियमित लेखन के साथ उन्होने क्षेत्रीय लेखन से कभी नाता नहीं तोड़ा.
हिमालयी साहित्य पर ‘बिट्रिश कुमाऊं–गढ़वाल (2 खण्ड)’, ‘द मरतोलिया लाज’, ‘जोहार का इतिहास’, ‘नैन सिंह रावत–अध्यापक, प्रशिक्षक व लेखक’ और ‘धामू बुढ़ा के वंशज’ उनकी प्रमुख प्रकाशित पुस्तकें हैं.
देहरादून में 15 नवम्बर, 1947 में जन्मे और देहरादून में ही 6 दिसम्बर, 2016 में दुनिया से अलविदा होने की 69 वर्षों की उनकी सांसारिक यात्रा अदभुत थी.
जीवनभर एक सच्चे हिमालय पुत्र होने का उन्होने फर्ज निभाया. वे बता गये कि सफलता की वैश्विक ऊंचाईयों को हासिल करने के बाद जीवन का सकूनतो अपने मूल समाज में लौट कर ही मिलता है.
‘थिंक ग्लोबल एक्ट लोकल’ के वे प्रतिमूर्ति थे. गणित और इतिहास विषयों से परास्नातक यह विद्यार्थी ताउम्र निरंतर अध्ययनशील और घुम्मकड़ी में रहा. उत्तराखण्ड राज्य का सौभाग्य है कि उसके गठन के शुरूवाती दौर के नीति–नियन्ताओं में डाक्टर आरएस टोलिया जी का मार्गदर्शन मिला है.
आशा की जानी चाहिए कि उत्तराखण्ड में उनके जैसा प्रशासक, नीति–निर्धारक और शिक्षाविद नयी पीढ़ी से सामने आयेगा.
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