उत्तराखंड एक विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान वाला राज्य है.जिसे बचाने के लिए हमारे पुरखों ने सालों तक संघर्ष और कई लोगों के बलिदान के बाद औपचारिक रूप से इस पहाड़ी राज्य को पहचान मिली.
लेकिन बाहरी लोगों नज़र यहां कि सुंदर पहाड़ों और मैदानों पर पड़ी और उन्होंने यहां धडल्ले से ज़मीने खरीदना शुरू कर दिया.
जो कि लंबे संघर्ष के बाद अर्जित की गयी उत्तराखंडी पहचान के लिए खतरा है.
लिहाज़ा एक बार फिर नौजवानों ने सोशल मीडिया पर भू-कानून की मांग उठायी.और आज ये दोबारा मुद्दा बन गया है.
विपक्ष दल भी अब सशक्त भू-कानून के लिए आवाज उठा रहे हैं. सत्ता पक्ष के लोग खुलकर भू-कानून पर कुछ नहीं कह रहे हैं.
लेकिन भू-कानून के लिए जुनूनी नौजवान का मानना है अगर सशक्त भू कानून न लागू किया गया तो उत्तराखंडी अपनी ज़मीनों से महरूम हो जाएगें और बाहरी धन्ना सेठ यहां की जमीनों के मालिक बन बैठेगें.
इसके अलावा भू-कानून में अब राज्य के भूमिहीन परिवारों को जमीन आंवटन की व्यवस्था किये जाने की मांग भी उठने लगी है.
केदारनाथ विधायक मनोज रावत ने प्रस्तावित भू-कानून में भूमिहीनों को घर बनाने और गुज़र-बसर के लिए जमीन आवंटन की व्यवस्था की जरूरत बताई.
उन्होंने कहा कि अब जब उत्तराखंड में है नए कठोर भू कानून को बनाने की मांग हो रही है,
तो उस समय हमारा ध्यान जनसंख्या के उस बड़े हिस्से की ओर भी जाना चाहिए जिनके पास मुट्ठी भर याने थोड़ा भी जमीन नहीं है.
रावत ने बताया कि केदारनाथ विधान सभा क्षेत्र में पड़ने वाले क्योंजा के चारी तोक में अनुसूचित जाति के 15 परिवारों पर मौसम की मार पड़ी और बरसात में हुए भू-धंसाव के चलते अब रहने लायक नहीं बचे.
इन परिवारों को पुनर्वासित किया जाना है लेकिन इनके पास गांव में कहीं और थोड़ी भी जमीन नहीं है,जहां पर ये मकान बना सकें.
उन्होंने बताया कि बरसों पहले भी ये भूमि-हीन ही थे.
ये जमीन भी इन्हें लगभग 50 साल पहले इंदिरा सरकार के भू-आवंटन के कार्यक्रमों के तहत मिली थी.
अब सवाल ये है कि इस जगह पर भू धंसाव हो जाने के बाद इन परिवारों को कैसे और कहां पुनर्वासित किया जाए?
लिहाज़ा मनोज रावत का मानना है अब जब सशक्त भू-कानून के लिए आवाज़ बुलंद हो रही है तो उस कानून में ऐसे भूमिहीन लोगों का भी खयाल रखा जाना चाहिए.
और भू-कानून में भू-आवंटन का इंतजाम होना चाहिए.तभी नया भू-कानून उसके पीछे की नियत के लिहाज़ से सार्थक होगा.
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