उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत द्वारा गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की घोषणा उत्तराखंड के शहीदों का अपमान और राज्य की संघर्षशील जनता की भावनाओं के साथ खिलवाड़ है.
हम लोग लंबे समय से गैरसैंण को स्थाई राजधानी बनाये जाने के आंदोलन के साथ शामिल रहे हैं. उस समय से जब 1992 में उत्तरायणी के मेले के अवसर पर बागेश्वर में गैरसैंण को वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली के नाम पर ‘चन्द्रनगर’ शहर के रूप में नामकरण करने का प्रस्ताव हुआ था.
गैरसैंण (चन्द्रनगर) को राज्य की राजधानी बनाने के लिये तार्किक और व्यावहारिक तरीके से समझा गया. श्रीदेव सुमन के शहादत दिवस पर 24-25 जुलाई 1992 को गैरसैंण को राजधानी और इस जगह को ‘चंन्द्रनगर’ बनाये जाने के लिये रामलीला मैदान में भूमि पूजन किया गया था.
वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली की सौवीं जयन्ती 25 दिसंबर 1992 को हम सब लोग उनकी आदमकद मूर्ति को लगाते समय भी वहां मौजूद थे. यह कार्यक्रम हालांकि उत्तराखंड क्रान्ति दल का था, लेकिन इसमें उत्तराखंड के सभी आंदोलनकारी संगठनों ने हिस्सा लिया था.
उस समय देश के विभिन्न हिस्सों में चल रहे राज्य आंदोलनों के नेताओं में भी इसमें प्रतिभाग किया. झारखंड मुक्ति मोर्चा के तत्कालीन उपाध्यक्ष और सांसद सूरज मंडल भी इस आयोजन में शामिल हुये.
हालांकि गैरसैंण को प्रस्तावित राज्य की राजधानी बनाने का विचार इससे पहले आ चुका था, लेकिन इसे यहां से नई गति मिली. राज्य आंदोलन के दौरान जब भी राज्य के प्रारूप पर बातचीत हुयी या कोई बहस हुई तो उसमें गैरसैंण के बारे में बहुत तथ्यात्मक तरीके से बातें रखी गई. यहां तक कि एक पहाड़ी शिल्प के शहर और हमारी चेतना के अग्रदूत वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली की भावनाओं की राजधानी की कल्पना इसमें की गई.
जब 1994 में राज्य आंदोलन अपने चरम पर पहुंचा तो उस समय से लगातार गैरसैंण का सवाल उठता रहा. राज्य आंदोलन में बेलमती चौहान और हंसा धनाई सहित 42 लोगों ने अपनी शहादत दी.
गैरसैंण को स्थाई राजधानी बनाने के लिये 13 बार भूख हड़ताल करने वाले बाबा मोहन उत्तराखंडी को अपनी शहादत देनी पड़ी. राज्य के विभिन्न आंदोलनकारी संगठनों ने राज्य बनने के बाद गैरसैंण के सवाल को ताकत के साथ उठाया.
आज जब मुख्यमंत्री ने गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की घोषणा की तो यह इतिहास और वर्तमान के उन तमाम लोगों की भावनाओं के साथ मजाक है जो गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाने के संघर्ष में लगे हैं.
वह इसलिये कि हमारे लिये गैरसैंण (चन्द्रनगर) कोई स्थान नहीं, बल्कि राज्य के विकास के विकेन्द्रीकरण का माडल और पर्वतीय राज्य की परिकल्पना है. अवधारणा है.
यह कैसा मजाक है, यह कैसी नादानी भरा फैसला है? जिस राज्य की अभी तक कोई राजधानी नहीं है, उसकी ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाई जा रही है.
अभी मुख्यमंत्री ने अपनी टोपी बचाने और अपनी पार्टी में उपज रहे असंतोष से अपने को बाहर निकालने को यह कदम उठाया है. यह जनता के सवालों को दरकिनार करने और जनता की भावनाओं के खिलाफ अलोकतांत्रिक समझ का परिचायक है.
यह पहली बार नहीं हुआ है. गैरसैंण (चन्द्रनगर) को खारजि करने और उसे उलझाये रखने का काम भाजपा की अंतरिम सरकार राज्य बनने के बाद ही कर चुकी थी. उसने ही स्थायी राजधानी घोषणा करने की बजाय ‘दीक्षित आयोग’ का गठन कर इसे हमेशा उलझाये रखने का काम किया.
बाद में कांग्रेस ने इसे आगे बढ़ाया. जिस ‘दीक्षित आयोग’ को छह महीने में अपनी रिपोर्ट देनी थी, वह 11 बार विस्तारित किया गया और नौ वर्ष तक जनता के पैसों का दुरुपयोग करता रहा. जब उसने अपनी राय रखी तो वह भी जनता को चिढ़ाने वाली थी.
कुल मिलाकर भाजपा-कांग्रेस ने राजधानी के सवाल को फुटबाल के रूप में इस्तेमाल किया. गैरसैंण (चन्द्रनगर) को राजधानी बनाने की न इनकी पहले मंशा थी और न आज है. इसलिये ग्रीष्मकालीन का शिगूफा हमेशा बनाये रखा.
हमारे राज्य में भाजपा और कांग्रेस दोनों कितनी धूर्तता करते हैं इसे इसी बात से समझा जा सकता है कि जब हमारे साथ दो राज्य झारखंड और छत्तीसगढ़ बने तो उन्होंने उसी दिन अपनी राजधानियों की घोषणा कर दी थी. और उन्हें विकसित करना शुरू कर दिया.
आज नया रायपुर एक आधुनिक शहर के रूप में छत्तीसगढ़ की राजधानी है. आन्ध्र प्रदेश ने अपनी राजधानी अमरावती को घोषित किया है. वे इस शहर को अपने अनुरूप बनाने बनाने में जुटे हैं. लेकिन उत्तराखंड के नेता कहते रहे हैं कि पहले ढांचागत विकास करेंगे फिर राजधानी घोषित करेंगे.
आंदोलनकारियों की मांग रही है कि पहले स्थायी राजधानी घोषित करो फिर उसके विकास की बात करो.
जब गैरसैंण (चन्द्रनगर) को राजधानी बनाने का विचार आया था तो उस समय ही इसके 50 किलोमीटर के क्षेत्र को विकसित करने और उसे एक पहाड़ी शिल्प का शहर बनाने की बात भी प्रमुखता से रखी गई थी.
गैरसैंण (चन्द्रनगर) को राजधानी बनाने की कल्पना करने वाले लोगों ने हमेशा उसे राज्य के विकास की अवधारणा के रूप में परिभाषित किया. गैरसैंण के आलोक में पहाड़ के तमाम सवालों को देखने की कोशिश की है.
आंदोलनकारियों के लिये गैरसैंण कोई पिकनिक स्पॉट नहीं है, उसमें हमारे आंदोलनकारियों की शहादत का मर्म है. आत्मा है. वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली की चेतना है. राज्य के लोगों के सपने हैं, बाबा मोहन उत्तराखंडी की शहादत की गूंजें हैं.
इसलिये गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन नहीं बल्कि राज्य की स्थायी और एकमात्र राजधानी घोषित किया जाना चाहिए. इस छोटे से राज्य में दो राजधानियां बेमानी है. जनविरोधी विचार है.
यह भी पढें : सिर्फ एक जगह नहीं, पहाड़ी राज्य की अवधारणा का केंद्र है गैरसैंण
Discussion about this post