उत्तराखंड में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली और चिकित्सकों की कमी को लेकर सोशल डेवलपमेंट फॉर कम्युनिटीज डेवपलमेंट (एसडीसी फाउंडेशन) की दूसरी रिपोर्ट में और भी चिंताजनक हकीकत उजागर हुई है.
रिपोर्ट बताती है कि प्रदेश के सभी जिलों में स्पेशलिस्ट डाक्टरों का भारी अकाल है.
रिपोर्ट बताती है कि प्रदेश के 13 में से 11 जिलों में एक भी स्पेशलिस्ट मनोचिकित्सक नहीं है.
मौजूदा दौर में जब मानसिक स्वास्थय अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बना हुआ है,ऐसे में सूबे के 13 में 11 जिलों में एक भी सरकारी मनोचिकित्सक न होना बड़े सवाल खड़े करता है.
एसडीसी फाउंडेशन ने RTI के आधार पर ‘स्टेट ऑफ स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स इन उत्तराखंड-2021’ रिपोर्ट जारी की है.रिपोर्ट बताती है कि राज्य के सीमांत जनपद चमोली में विशेषज्ञ डॉक्टरों के कुल स्वीकृत 62 पदों में से केवल 17 पदों पर ही नियुक्तियां हुई हैं.
इसी तरह पौड़ी जिले में विशेषज्ञ डॉक्टरों के स्वीकृत 152 पदों में से मात्र 42 पदों पर नियुक्ति की गई है.
अल्मोड़ा में विशेषज्ञ डॉक्टरों के स्वीकृत 127 पदों में से केवल 49 विशेषज्ञ डॉक्टर काम कर रहे हैं.
पिथौरागढ़ जिले में स्वीकृत 59 मे से केवल 22 विशेषज्ञ डॉक्टर उपलब्ध हैं.
चंपवात में स्वीकृत 45 पदों के सापेक्ष 22 डॉक्टर सेवाएं दे रहे हैं. बागेश्वर में 37 डॉक्टरों की जगह 15 जबकि नैनीताल में 157 के सापेक्ष महज 59 डॉक्टर ही नियुक्त हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक चार जिलों में तैनात डॉक्टरों की तदात स्वीकृत पदों के सापेक्ष पचास फीसदी से ज्यादा है.
देहरादून में 127 डॉक्टरों के सापेक्ष 117, रूद्रप्रयाग में 30 डॉक्टरों के सापेक्ष 19, ऊधम सिंह नगर में 102 के सापेक्ष 54 तथा उत्तरकाशी में 46 के सापेक्ष 24 स्पेशलिस्ट डॉक्टर तैनात हैं.
चंपवात में स्वीकृत 45 पदों के सापेक्ष 22 डॉक्टर सेवाएं दे रहे हैं. बागेश्वर में 37 डॉक्टरों की जगह 15 जबकि नैनीताल में 157 के सापेक्ष महज 59 डॉक्टर ही नियुक्त हैं.
एसडीसी फाउंडेशन ने कुछ दिन पहले ही इस रिपोर्ट का पहला हिस्सा जारी किया था जिसमें खुलासा हुआ था कि कोरोना काल में भी उत्तराखंड सरकार प्रदेश के अस्पतालों में स्पेशलिस्ट डाक्टरों की नियुक्ति करने में नाकाम रही है.
रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि राज्य में स्पेशलिस्ट डॉक्टरों के कुल 1147 स्वीकृत पदों में से मात्र 493 ही कार्यरत हैं जबकि 654 पद (57 फीसदी) खाली हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक टिहरी जिले की स्थिति सबसे ज्यादा खराब है जहां 98 स्पेशलिस्ट डॉक्टर के स्वीकृत पदों पर सिर्फ 13 ही चिकित्सक तैनात हैं. जिले में स्पेशलिस्ट डॉक्टर के 85 पद (87 प्रतिशत) पद खाली हैं.
जिले में एक भी सर्जन, ईएनटी, फॉरेंसिक, स्किन, माइक्रोबायोलॉजी और मनोरोग विशेषज्ञ नहीं है.
जिले में बालरोग विशेषज्ञ, फिजिशियन और जन स्वास्थ्य विशेषज्ञ के केवल एक-एक पद पर नियुक्ति हुई हैं, जबकि स्वीकृत पदों की संख्या क्रमशः 14, 15 और 12 है.
इसके अलावा, जिले में 15 स्वीकृत पदों में से केवल दो स्त्री रोग विशेषज्ञ हैं.
एसडीसी फाउंडेशन के संस्थापक अनूप नौटियाल कहते हैं कि राज्य सरकार को भारत सरकार के साथ आईपीएचएस ढांचे की समीक्षा और पुनर्मूल्यांकन करना चाहिए.
वे कहते हैं कि कम जनसंख्या के बावजूद नैनीताल और पौड़ी में सर्वाधिक स्वीकृत पदों पर पुनर्विचार किया जा सकता है .
उन्होंने कहा कि हमें अपने मानव संसाधनों को विवेकपूर्ण तरीके से उपयोग करने और उन जगहों पर अधिक ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है जहां स्वास्थ्य सुविधाओं पर बोझ अधिक है.
एसडीसी फाउंडेशन के रिसर्च एंड कम्युनिकेशंस हेड ऋषभ श्रीवास्तव कहते हैं कि फाउंडेशन द्वारा तैयार किए गए विश्लेषण के अनुसार, बाल विशेषज्ञों और स्त्री रोग विशेषज्ञों के मामले में राज्य की स्थिति बेहद चिंताजनक है.
स्वीकृत पदों के मुकाबले केवल 40 प्रतिशत बाल रोग और महिला रोग विशेषज्ञ राज्य के अस्पतालों में काम कर रहे हैं.
ऋषभ के अनुसार पर्वतीय इलाकों में महिलाओं के लिए स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध होना लगातार चुनौती बनता जा रहा है.
महिला डॉक्टरों की अनुपलब्धता इस मुद्दे को और बढ़ा रही है और संस्थागत प्रसव, प्रसव पूर्व देखभाल, बाल पोषण आदि मामलों में राज्य की स्थिति मे इस कारण से अपेक्षित सुधार नहीं हो पा रहा है.
एसडीसी फाउंडेशन के शोध अध्ययन के सदस्य विदुष पांडे कहते हैं कि कई विशेषज्ञों को प्रशासनिक कार्य मे लगाया गया है.
राज्य सरकार को इस तरफ विशेष ध्यान देने की जरूरत है और विशेषज्ञों की सेवाओं को मरीजों के उपचार मे लगाने के अलावा और नए विशेषज्ञों क़ी नियुक्तियों पर आगे बढ़ने की ज़रूरत है.
बहरहाल ऐसा नहीं है कि एसडीसी फउंडेशन ने सूबे में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा की जो सूरत पेश की है उससे सरकार वाकिफ नहीं है,
बावजूद इसके न तो प्रशासन की तरफ से कोई ज़रूरी कदम उठाए गए हैं और न ही शासन ने कोई संज्ञान लिया,
लिहाज़ा अब जब प्रदेश को पूर्णकालिक स्वास्थ्य मंत्री मिल गया है, तो सूबे में स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधा के हालात सुधरने ही चाहिए.
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