पूरी दुनिया खौफजदा है. चीन और अमेरिका जैसी महाशक्तियां आज एक वायरस के आगे बेबस हैं. चीन की धरती से निकला नोवल कोरोना वायरस(कोविड-19) चार महीने के भीतर दुनिया की बड़ी आबादी को चपेट में ले चुका है. कहर थमने का नाम नहीं ले रहा है. सब कुछ थम सा गया है.
दुनिया भर के दो सौ से अधिक देशों में कोरोना वायरस के चलते दुनिया भर तीन अरब लोग अभूतपूर्व लॉकडाउन में हैं. सौ से ज्यादा देशों ने अपने यहां के नागरिकों पर तरह तरह के प्रतिबंध लगाए हैं.
एक देश से दूसरे देश की यात्रा लगभग ठप है. जरूरत के सामान की आपूर्ति भी बुरी तरह बाधित है. इस महामारी से निपटने के लिए तमाम देशों की सरकारों के पास एक मात्र तरीका सिर्फ ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ है.
‘साइलेंट किलर’ बने एक वायरस ने इंसानों को शहरों, गांवों, गलियों में कैद कर दिया है. महज चार महीनों में ही दुनिया भर में मौत का आधिकारिक आंकड़ा दो लाख के पार पहुंच गया है. 25 लाख से अधिक लोग संक्रमित बताये जा रहे हैं. हालांकि असल आंकड़े का अनुमान तो इससे कहीं ज्यादा का है.
ग्राफ : डब्ल्यूएचओ
भारत भी इस त्रासदी से अछूता नहीं है. यहां भी यह वायरस जोरदार दस्तक दे चुका है. किसी को अंदाजा नहीं है कि क्या होने जा रहा है. सरकारें सकते में हैं.
जिस तरह एक वायरस के आगे सरकारें बेबस हैं, उससे सरकारों के होने के मायने तलाशे जाने लगे हैं. ऐसा भी लग रहा है मानो सब खत्म हो जाएगा, कुछ नहीं बचेगा. खौफ के साये में दुनिया का हर देश या तो इस अनदेखे दुश्मन के साथ जंग लड़ रहा है या उसकी तैयारी में है.
संकट इतना बड़ा है कि लोग ये सोच ही नहीं पा रहे हैं कि इस महामारी के संकट के बाद जो दुनिया बचेगी वो कैसी होगी ? असमंजस और भय के माहौल में पूरी दुनिया हालात सामान्य होने के इंतजार में है. आज सबसे बड़ा प्रश्न भी यही है कि क्या हालात पहले जैसे सामान्य हो पाएंगे ?
इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह वायरस देश-दुनिया की सुरक्षा, शांति और अर्थव्यवस्था के लिए खतरा बन चुका है, मगर ऐसा भी नहीं है कि सब खत्म हो जाएगा. हां, बहुत कुछ बदल जरुर जाएगा.
यह महामारियों का इतिहास है, जब-जब इंसानी सभ्यता और महामारी की भिड़ंत हुई है तो अंततः जीत मानव की ही हुई, भले ही हर बार इसके लिए बड़ी कीमत ही क्यों न चुकायी गयी हो.
महामारियां जब भी आती हैं तो सिर्फ इंसानी जिंदगियां नहीं लीलती बल्कि पूरी एक सभ्यता, संस्कृति और साम्राज्य को तबाह कर देती हैं.
महामारियां अकेले नहीं आतीं, वो गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी और तमाम बीमारियों को अपने साथ लाती हैं. वे अर्थव्यवस्था के लिए चुनौती बन जाती हैं. इंसानी तरक्की के तमाम प्रतीकों को ध्वस्त कर देती हैं. आज देखिए, दुनिया भर में चारों ओर क्या हो रहा है.
अभी यहां भारत की बात नहीं करेंगे. खुद पर फक्र करने वाला इटली बबार्द हो चुका है, जापान संकट की ओर बढ़ रहा है तो इंग्लैड बुरी तरह से घिर चुका है और अमेरिका बर्बादी की कगार पर पहुंचने को है.
अमेरिका में तो कोराना संक्रमितों की संख्या स्पेन, जर्मनी, इटली और फ्रांस के कुल संक्रमितों से भी ज्यादा पहुंच चुकी है. अधिकारिक तौर पर ही वहां संक्रमितों की संख्या दस लाख के पार पहुंच गयी है तो मरने वालों का आंकड़ा पचास हजार लांघ चुका है.
अमेरिका की आर्थिक राजधानी न्यूयार्क कोरोना वायरस का केंद्र बन गयी है. अपनी अर्थव्यवस्था पर इतराने वाले अमेरिका में तकरीबन दो करोड़ लोग नौकरियां गंवा बैठे हैं.
कहा तो यह जा रहा है कि कोराना वायरस का जनक चीन है, यह आर्थिक महाशक्ति बनने की उसकी साजिश है मगर सच्चाई यह है कि चीन के भी हालात बहुत सही नहीं हैं.
चीन की अर्थव्यवस्था भी डूबी हुई है, वहां की सही खबरें दुनिया के सामने नहीं आ पा रही हैं. दुनिया भर में चीन को इस वक्त खलनायक के तौर पर देखा जा रहा है, इस बीच खबर यह है कि चीन में कोरोना वापस लौट चुका है. कोरोना संक्रमितों की संख्या वहां बढ़ने लगी है.
कोराना प्रभावित देशों में ईरान की हालात भी बेहद नाजुक बतायी जा रही है. माना जा रहा है कि ईरान में कोरोना का कहर काफी भयावह स्थिति में है लेकिन वह अपने यहां इससे हुई त्रासदी को छिपाने की कोशिश कर रहा है.
ईरान की स्थिति का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि वहां स्थानीय फुटबाल स्टेडियम को अस्पताल में तब्दील किया गया है.
कोरोना से वहां डाक्टरों और मेडिकल स्टाफ की मौत की खबरें अब लगातार आने लगी हैं. ईरान के स्वास्थ्य मंत्री हरिर्ची खुद कोरोना की चपेट में हैं.
यहां बता दें कि अमेरिकी प्रतिबंधों के चलते ईरान की कमर पहले से ही टूटी हुई है. दुनिया भर में हाहाकार मचा है. अभी तक वायरस के खात्मे या उसके कहर को रोकने के लिए न कोई दवा है और न टीका.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के मुताबिक दुनिया भर की सप्लाई चेन पर असर पड़ा है, जिसके कारण अर्थव्यवस्था, सुरक्षा और शांति पर संकट है. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ऐसी भी आशंका व्यक्त की जा रही है कि कोरोना वायरस से उपजे संकट का इस्तेमाल आतंकी जैविक हथियार के तौर पर कर सकते हैं.
नियंत्रण से बाहर होते हालात में विश्व स्वास्थ्य संगठन पर भी सवाल उठ रहे हैं .इस सबके बीच बड़ा सच यह है कि दुनिया इस वायरस के लिए तैयार ही नहीं थी.
आज दुनिया के अधिकांश देश कोरोना से जंग लड़ रहे हैं और जंग चाहे कैसी भी हो जंग की कीमत तो पीढ़ियों को चुकानी ही होती है.
महामारियों से जंग में दुनिया को कीमत इसलिए भी चुकानी पड़ती है क्योंकि विकास की अंधी दौड़ में इंसान ने महामारियों से कभी सबक ही नहीं लिया.
महामारी से बाहर निकलकर हर बार इंसान ने नयी दुनिया बसायी, प्रकृति का दोहन किया, बड़े साम्राज्य खड़े किये, खुद को सर्वशक्तिमान और विश्वविजेता बनने की अंधीदौड़ में दौड़ता रहा.
इस दौड़ में वह हर बार यह समझने चूक करता रहा कि फिर किसी दिन कोई महामारी आएगी, और उसकी बसायी रंगीन दुनिया को ताश के पत्तों की मानिंद बिखेर देगी.
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