इक्कसवीं सदी की पीढ़ी के लिए कोविड-19 एक बड़ी महामारी हो सकती है लेकिन किसी बड़ी महामारी से साबका दुनिया के लिए यह कोई पहली बार नहीं है. महामारी और मानव का रिश्ता तो सदियों पुराना है.
ऐसा पहली बार नहीं है जब कोई वायरस या बीमारी वैश्विक महामारी बन गयी हो. मानव इतिहास में इससे पहले हैजा, प्लेग, चिकन पाक्स और इंफ्लूएंजा के वायरस बड़ी तबाही मचा चुके हैं.
महामारियों से दुनिया भर में तकरीबन पचास करोड़ लोगों की जान जा चुकी है. ऐसी बीमारियां भी रही हैं जिन्होंने यूरोप की आबादी आधी कर दी, जिन्होंने अमेरिका और अफ्रीका का भूगोल ही बदल दिया.
कोरोना के बहाने बातें तो बहुत होंगी मगर चलिए यहां दुनिया भर में महामारियों के इतिहास पर नजर डालते हैं. यूं तो हर एक सदी के अंतराल पर दुनिया एक बड़ी महामारी का सामना करती आ रही है, लेकिन महामारियों से दुनिया का साबका कभी बीमारी तो कभी वायरस के तौर पर पड़ता ही रहा है.
महामारियों के इतिहास में सबसे पुरानी बड़ी महामारी का जिक्र आता है छठी सदी के साल 541 से 542 के बीच. उस दौरान एक प्लेग ने यूरोप की आधी आबादी को साफ कर दिया था.
यूं तो इससे पूरी दुनिया प्रभावित रही मगर ‘जस्टियन का प्लेग’ के नाम से जाने जाने वाली उस महामारी का सबसे अधिक प्रभाव बिजेटियन सम्राज्य और मेडिटेरियन पोर्ट पर पड़ा था.
बताते हैं कि प्लेग से हर दिन औसतन पांच हजार लोग मरते थे, प्लेग के कहर ने साल भर में ही ढ़ाई करोड़ से अधिक लोगों को मौत की नींद सुला दिया था.
इसकी शुरुआत कहां से हुई इसका कोई पता नहीं. इससे पहले एक जिक्र दूसरी सदी के साल 165 में गेलेने के प्लेग के नाम से जाने जानी वाली बीमारी का भी आता है, जिसने तत्कालीन एशिया, यूनान, मिश्र और इटली में अपना कहर बरपाया. बताते हैं, उस बीमारी ने कई देशों में पचास लाख से अधिक लोगों की जान ली थी.
जब-जब महामारी का जिक्र आता है तो जानकार ब्लैक डेथ का जिक्र जरुर करते हैं. ‘द ब्लैक डेथ’ के नाम से जानी जाने वाली वह महामारी प्लेग थी, जिसकी कहानी बेहद भयावह है.
चौदहवीं सदी में साल 1346 से 1353 के दौरान एशिया से फैली महामारी ने यूरोप में जमकर तांडव मचाया। बताते हैं कि चूहों से फैला यह प्लेग जहाजों के जरिये पूरी दुनिया में पहुंचा. इसके प्रकोप का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि दुनिया भर में इस प्लेग से तकरीबन बीस करोड़ लोगों की मौत हुई.
चलिए अब बात उस महामारी की जिसे बैक्टीरिया या वायरस से फैलने वाली पहली महमारी कहा जाता है. ‘एशियाई फ्लू’ के नाम से जाने जानी वाली इस महामारी का पहला मामला उन्नीसवीं सदी के साल 1889 में मध्य एशिया के तुर्किस्तान में आया.
इसके बाद तो धीरे-धीरे पूरी दुनिया ही इसके चपेट में आती चली गयी. बताते हैं कि एक साल के दौरान ही दस लाख से अधिक लोगों को जान गंवानी पड़ी.
हालांकि इसी सदी में इससे पहले साल 1820 में एशियाई देश कालरा यानी ‘हैजा’ नाम की महामारी से रुबरु हो चुके थे. इस महामारी ने चीन, जापान, भारत, थाईलैंड, इंडोनेशिया और कई अरब देशों को अपनी चपेट में ले लिया था. बताते हैं कि अकेले जावा में ही हैजा से एक लाख से अधिक मौतें हुईं.
अब बीसवीं सदी में आते हैं. इस सदी में बीमारी और माहामारियों की भरमार रही. इस सदी के दौरान फैली महामारियों का कारण रहा इंफ्लूएंजा और कालरा यानी हैजा.
बीसवीं सदी के पहले दशक के अंत में, यानी 1910 में भारत से हैजा की शुरुआत हुई जिसकी चपेट में मध्य पूर्व, उत्तरी अफ्रीका, पूर्वी यूरोप और रुस भी आए. हैजा के कारण आठ लाख से अधिक लोगों की जान गयी.
अभी हैजा का प्रकोप थमा ही था कि इंसेफेलाइटिस लेथार्जिका नाम की महामारी दुनिया भर में फैल गयी. इस बीमारी का प्रकोप सन 1915 से 1925 के बीच रहा.
यूरोप में भले ही यह एक महामारी के रुप में था मगर भारत में इसका प्रभाव इतना अधिक नहीं था. यह एक तेजी से फेलने वाली संक्रामक बीमारी थी जिसका वायरस केंद्रीय तंत्रिका तंत्र पर हमला करता था.
इधर पूरी दुनिया इंसेफेलाइटिस लेथार्जिका नाम की महामारी से लड़ ही रही थी कि बीसवीं सदी के दूसरे दशक के अंत में यानी साल 1918 से 1920 के बीच इंप्लूएंजा ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया.
‘स्पेनिश प्लू’ के नाम से जाने जानी वाली इस महामारी से दुनिया भर में लगभग पांच करोड़ लोगों को मौत की नींद सुलाया और करीब पचास करोड़ लोगों को प्रभावित किया.
बताते हैं कि इस महामारी के पहले सप्ताह में ही तकरीबन ढ़ाई करोड़ लोग काल के गाल में समा गये थे. सामान्यतः इंफ्लूएंजा उम्रदराज लोगों को अधिक प्रभावित करता है मगर यह स्वस्थ युवाओं की जान का दुश्मन था. कहा जाता हैकि यह बीमारी प्रथम विश्व युद्ध से लौटे सैनिकों से फैली. भारत में भी इस महामारी का जबरदस्त प्रकोप रहा.
बीसवीं सदी मे ही स्पेनिश प्लू के तकरीबन 40 साल बाद एक बार फिर इंफ्लूएंजा ने अपना कहर दिखाया. साल 1956 से शुरु होकर यह 1958 तकजारी रहा.
इस प्लू ने दो साल के अंदर तकरीबन बीस लाख लोगों की जान ली, जिनमें तकरीबन 70 हजार अमेरिकी नागरिक थे. इसके बाद इंफ्लूएंजा के कारण ही फिर से महामारी फैली.
जुलाई 1968 में हांगकांग में पहला मामला आया इसीलिए इसे महामारी के इतिहास में ‘हांगकांग फ्लू’ के नाम से जाना गया.
मात्र 17 दिनों में यह वियतानाम और सिंगापुर तक पहुंच गया था और तीन महीने के भीतर भारत, अमेरिका, आस्टेलिया और यूरोप भी इसकी चपेट में आ चुके थे.
बताते हैं कि अकेले हांगकांग में उस वक्त तकरीबन पांच लाख लोग मारे गये थे, जो कि हांगकांग की कुल आबादी का पंद्रह फीसदीसे अधिक थे.
अब बात इक्कीसवीं सदी की, जिसे आधुनिक युग के तौर पर भी जाना जाता है. इस सदी की पहली सबसे गंभीर बीमारी ‘सार्स‘ थी जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में खांसी और छींकने से फैली थी.
सार्स से पहले यहां एचआईवी (एड्स) का जिक्र जरुरी है. बीसवीं सदी के साल 2005 से 2012 के बीच एचआईवी एड्स का प्रभाव दुनिया में सबसे ज्यादा रहा, हालांकि इसकी शुरुआत साल 1976 में अफ्रीकी देश कांगो से हुई थी. एचआईवी एड्स दुनिया भर में अब तक लाखों लोगों की जान ले चुका है.
जागरुकता और इलाज की नयी प्रणालियों से एड्स की रोकथाम तो हुई है मगर यह जड़ से खत्म नहीं हुआ है. माना जाता है कि अभी भी हर साल दुनिया भर में तकरीबन बीस लाख लोग एड्स के कारण अपनी जान गंवाते है.
वापस सार्स पर लौटते हैं. इक्कीसवीं सदी के शुरु में ही सामने आया सार्स कोरोना परिवार का ही वायरस है. माना जा रहा है कि सार्स और कोविड-19 यानी कोरोना वायरस में काफी समानताएं हैं. कोविड-19 को संभवतः इसीलिए नोवल कोरोना वायरस भी कहा जा रहा है.
सार्स भी कोविड-19 की तरह सबसे पहले साल 2002 में चीन में नजर आया था. कुछ ही महीनों में यह पूरी दुनिया में फैल गया मगर जल्द ही इसकी रोकथाम कर ली गयी.
साल 2004 के बाद से सार्स का कोई मामला सामने नहीं आया है लेकिन सार्स जैसे लक्षणों के साथ ही नोवल कोराना वायरस अब नयी ताकत के साथ दुनिया में कोहराम मचा रहा है.
इस वायरस के फैलने की तीव्रता और मारक क्षमता को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित किया है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से ऐसी घोषणा सामान्य तौर पर नहीं होती है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के इतिहास में यह छठा मौका है जब हैल्थ इमरजेंसी घोषित की गयी है. संयुक्त राष्ट ने इसे वैश्विक महामारी घोषित किया है. मतलब मसला बेहद गंभीर है, हालात नियंत्रण में नहीं है.
महामारियों के बारे में यह कहा जा सकता है कि महामारियों ने इंसान को बहुत कुछ सिखाया, अगर कुछ नहीं सिखाया तो वह है महामारियों से निपटने के लिए तैयार रहना. आज जो बेबसी और लाचारी है वो इसी का तो नतीजा है.
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