महामारियों की इतनी लंबी कहानी बताने का मकसद यह है कि महामारियां अभिशाप के तौर पर जरुर आती हैं, लेकिन वह नयी शुरुआत और नए संघर्ष का अवसर भी होती हैं. महामारी अपने साथ भुखमरी, गरीबी लाती हैं तो चुनौतियों से निपटने की उर्जा भी लाती हैं. संभावनाओं के नए द्वार भी खोलती हैं.
बताते हैं कि चौदहवीं सदी में यूरोप में फैली महामारी कई यूरोपीय देशों के लिए वरदान साबित हुई. ‘ब्लैक डेथ’ के बाद ही पश्चिमी यूरोप का शक्तिशाली उदय हुआ. अपने नागरिकों की बड़ी तादाद में मौत के बाद यूरोप के लोगों में जोखिम उठाने की क्षमता बढ़ चुकी थी.
इसके बहुत से देशों ने खुद को हर लिहाज से इतना मजबूत बनाया कि वे आज दुनिया के शक्तिशाली देशों के तौर पर पहचान रखते हैं. महामारी के बाद वहां बड़े बदलाव हुए, सामंतवादी व्यवस्था टूटी, नयी प्रथाओं का उदय हुआ, नयी तकनीक विकसित करने और आधुनिकीकरण पर जोर दिया गया.
नयी दुनिया की तलाश में लोग लंबीयात्राओं पर निकले, उन्होंने उपनिवेशवाद को जन्म दिया। आधुनिकीकरण हुआ तो अर्थव्यवस्था में बदलाव भी हुआ. यूरोपीय देशों के साम्राज्यवाद की शुरुआत भी हुई.
इतिहास गवाह है कि महामारियों ने भूगोल भी बदला है. महामारी के बाद अमेरिकी महाद्वीपों में हजारों वर्ग किलोमीटर का इलाका जंगलों में तब्दील हो गया था.
बड़े पैमाने पर जंगल उग आने से वातावरण में कार्बन डाई आक्साइड का स्तर नीचे आया और दुनिया के तमाम हिस्सों में तापमान में गिरावटआयी. इसी तरह उन्नीसवीं सदी में अफ्रीका में पशुओं में फैली एक महामारी के बाद अफ्रीका का ही नक्शा बदल गया।
बताते हैं कि साल 1888 और 1897 के बीचअफ्रीका में ‘राइंडरपेस्ट’ नाम के वायरस का प्रकोप हुआ था. इस वायरस की जद में सीधे तौर पर इंसानी जान तो नहीं थी लेकिन जानवरों पर इसका कह रहा.
इसे जानवरों का प्लेग भी कहा जाता है, अफ्रीका में इस वायरस ने लगभग 90 फीसदी पशुओं को खत्म कर दिया था। जानवरों में फैली इस महामारी का पूरे अफ्रीका पर दुष्प्रभाव पड़ा.
पशुधन की हानि का सीधा असर जब खेती पर पड़ा और हालात बद से बदतर हो गये. समाज में बिखराव आ गया, भुखमरी फैल गयी और नतीजा साल 1900 तक नब्बे फीसदी अफ्रीका पर औपनिवेशिक ताकतों का कब्जा हो गया. यूरोपीय देशों ने अफ्रीका की जमीनें हडप लीं.
दुनिया के इतिहास में इसके भी प्रमाण हैं कि महामारियां दशकों पुरानी बादशाहत के पतन का कारण बनीं हैं. जो चीन आज कोरोना वायरस को लेकर कटघरे में है, वह खुद इसका गवाह है. बताते हैं कि चीन में लगभग तीन सदी तक राज करने वाले मिंग राजवंश का पतन 17वीं सदी में वहां फैली एक महामारी के कारण ही हुआ.
साल 1641 में चीन में प्लेग जैसी महामारी का प्रकोप हुआ जिसके चलते कई इलाकों में पचास फीसदी तक आबादी खत्म होगयी थी.
बहरहाल कोराना वायरस के चलते मानव सभ्यता एक बार फिर चुनौतियों से घिरी है. जाने-अंजाने दुनिया उथले अतीत और आशंकित भविष्य के बीच फंसी है. सही मायनों में तो यह वक्त किसी तरह की आलोचना का नहीं है. न ही मौक़ा सवाल उठाने और सियासत के गुणा भाग लगाने और कोसने का है.
फिलहाल तो यह समझने का वक्त है कि मानव सभ्यता के लिए संकट बने कोरोना वायरस का अगर कोई दोषी है तो कोई देश, जाति, धर्म या समाज नहीं बल्कि जाने-अनजाने में मानव सभ्यता खुद ही है.
खतरा दिनों दिन बढ़ रहा है, पूरी दुनिया लाकडाउन पर है, एक बड़ी आबादी क्वारेंटाइन में है, फिलवक्त बचने के लिए इसकेअलावा कोई विकल्प है भी नहीं है. यह कब तक यह चलेगा कोई नहीं जानता. जो यह समझ बैठे हैं कि बहुत जल्द सब कुछ सामान्य हो जाएगा, वे गलतफहमी में हैं.
जरा महामारियों के इतिहास पर नजर दौडाइये, कोई भी महामारी महज चार-छह महीने की नहीं होती. महामारी तो साल दर साल और कई बार तो कई साल तक चलती है. इस लिहाज से देखा जाए तो कोरोना के दूरगामी परिणाम बेहद भयावह नजर आते हैं. अभी तो महज शुरुआत है, नयी चुनौतियों को भी लाकडाउन खुलने का इंतजार है.
कुल मिलाकर यह वक्त हौसला देने का है, खुद का मनोबल बनाए रखने और कोरोना से मोर्चा ले रहे लोगों का मनोबल बढ़ाने का है. यह वक्त नयी शक्ल में आने वाली चुनौतियों के सामने के लिए खुद को तैयार करने का है.
आज पूरी दुनिया संकट में है मानव और मानवता को बचाने के सवाल के आगे हर सवाल बौना है. यह तय है कि महामारी और मानवता की जंग में जीत अंततः मानवता की होगी. मगर सनद रहे, यह जंग सिर्फ सरकारों के भरोसे नहीं जीती जा सकती. खुद भी हमें बड़े बदलावों और लंबे संघर्ष के लिए तैयार होना होगा.
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